चर-अचर-जड़ सकल जगतक
आइ प्रकृतिक दिवस आयल ।
सजल ठंढायल रहत, मन-
वर्षभरि रहतै जुरायल ।।
आइ प्रकृतिक दिवस आयल ।
सजल ठंढायल रहत, मन-
वर्षभरि रहतै जुरायल ।।
ज'ल थिक आधार जगतक
विन सलिल किछुओ ने संभव ।
बिना वारिक जीव दुर्लभ
जल-थलहुँ नभ मे असंभव ।। खैब बसिया भात ब'ड़ी जुड़ायब सब वस्तु जन के। खेलायब धुरखेल मिलिक' मिटायब सब मैल मन के ।।
विन सलिल किछुओ ने संभव ।
बिना वारिक जीव दुर्लभ
जल-थलहुँ नभ मे असंभव ।। खैब बसिया भात ब'ड़ी जुड़ायब सब वस्तु जन के। खेलायब धुरखेल मिलिक' मिटायब सब मैल मन के ।।
खबासक पोखरि मे पैसब ज'ल झोंका मारि झगड़ब। पुनः कुस्ती हेतइ कसिक' पटकि प्रतिपक्षी के रगड़ब ।।
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