Thursday, November 21, 2019

कुजरनी


घर मे
कोनो तरकारी नहिं अछि,
आबि रहल छथि
जमाय-समधि,
भरमा बचाब’बाली
पहुँचि गेली I  

घूमि रहलि छथि
गामे-गाम
बाटे-घाटे
दरबज्जे-दरबज्जे
अंगने-अंगने,
माथ पर पथिया
कोर मे चिलका,
हरियर-हरियर तरकारी
ताजा-ताजा फल
अल्लू-पियाउज..
सब किछु I

कीनि लै छथि,
थोक मे
दू-चारि पथिया भरि
हात-बजार जाक’,
अगिला हाट तक के
वैह छथि आसरा I

कोनो भय नहिं
रौद-बरखाक
अन्हर-बिहाड़िक
कुकुर-बानरक...
गुंडा-मबालीक...!

निर्भीक
घूमि रहलि,
सब मर्द जीरो छथि
हुनकर निर्भीकताक आगू,

ग्रैंड सैल्यूट!!
हुनका श्रम के,
हुनका निर्भीकता के!!!
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बाल्यकाल

हे बाल्यकाल! घुरि आउ हमर,
हे बाल्यकाल! घुरि आउ हमर ।।
नै रौद-बसातक भय कनियो,
बरखा-अछार-फानल-कूदल,
तितली पकड़क लेल दौड़-धूप,
दोस्तक सङ् मे हुड़दंग मचल ।
हे बाल्यकाल! घुरि आउ हमर,
हे बाल्यकाल..........।।
तुरतहिं झगड़ा आ प्रेम तुरत,
नै मोन मे कोनो बात टिकल,
किछुओ चिन्ता ने फिकिर कथुक,
मित्रक झुंडे छल स्वर्ग जकर ।
हे बाल्यकाल! घुरि आउ हमर,
हे.......।।
कबडी-कबडी आ टाइल-पुली,
लुक्का-छिप्पी गोटरस-गोटरस,
पोखरि-झाँखुर सौँसे रपटल,
गुड्डी-बाजी मे सतत रमल ।
हे बाल्यकाल! घुरि आउ हमर,
हे..........।।
ने बैर-द्वेष के नामो छल,
ने जाति-धर्म के भानो छल,
ने नीक-बेजायक ज्ञानो छल,
सब दोस्ते जग मे सगरो छल ।
हे बाल्यकाल ! घुरि आउ हमर,
हे.............।।
खिस्सा नानी-नानाक सूनि,
सपना के राजकुमार बनल,
मायक कोरा स्वर्गोपरि छल,
ओकरे सँ रूसब-बौंसब छल ।
हे बाल्यकाल! घुरि आउ हमर,
हे...............।।
लूडो-लूडो कैरम-गोटी,
गेंदक पाछू बेहाल रहल,
कागत के नौका मे डूबल,
खएबा-पीबा के सुधि बिसरल ।
हे बाल्यकाल! घुरि आउ हमर,
हे.........।।
बाड़िक-केरा-बड़हर-लताम,
खीरा नेबो पर सब लुधकल,
कतबो बाबी-काकी बाजलि,
सब आइन बिसरि कए टूटि पड़ल ।
हे बाल्यकाल! घुरि आउ हमर,
हे बाल्यकाल! घुरि आउ हमर !!!
*****कमलजी, 21.11.19*****

Monday, November 18, 2019

मल्हू




आइर-धूर पर बाधे-बोने
सगरो ओ छिछिआय रहल I
धीया-पूता बाट-बटोही
सब-क्यो छै ढेपियाय रहल II

मैल-कुचैल झुलंग गंजी पर
कुरता सौंसे छै फाटल I
धोती द’ढ़ कतहु नै लागय,
सौंसे छै चेफड़ी लागल II

चिड़इ-चुनमुनिक खोंता सनके
केस ओकर छै लागि रहल I
कारी कम्मल चेथड़ी-चेथड़ी,
कुकुरक ड’रे भागि रहल II

‘मल्हू’ नाम एकर क्यो कहलक,
बूझि पड़य साफे पागल I
लोक कहय ई सिद्ध, कतेको-
एकरा सेवा मे लागल II

क्यो कहलक बहुतो संतति-सुख,
एकरा आशीषें पौलक I
न’बे कुर्ता-धोती-तौनी-
डोपटा एकरा पहिरौलक I

चीर-चारिक’ सबटा कपड़ा,
ईंटा-पाथर फोड़ि रहल I
फे’रो औघर रूप बनाक’
सौंसे अछि ई दौड़ि रहल II
******19.11.19******