Thursday, August 6, 2020

ओकाइत मे रही

ओकाइत जकरा होइ जतबे,
काज समुचित तकरा लेल ततबे ।
पैर ततबे पसारब नीक होअय,
जतबे नमगर अहाँक चद्दरि रहय ।।
" रहय त' ठाँव क' क' पाबी,
नै रहय तँ पबितो जाइ पड़ैतो जाइ ।। "
अनकर ने सेहंता आ ने देखाउँस करी,
जमीने पर सदिखन रही, हवा मे नै उड़ी ।।
कथमपि उचित नहि प्रतिष्ठे प्राण गमायब ।
वाह्याडम्बर अहाँके रसातल मे पहुँचायत ।।
गाछ चढ़ाक' छ' मार'बला बहुत भेटैछ,
असल रस्ता देखाब'बला बड्ड कम रहैछ ।।
उकड़ू भ' गेला पर अपने सम्हार' पड़ैछ,
बेगरता पड़ला पर कियो ने मदति लै अबैछ ।।
सुख मे अनन्त संगी-साथी भेटि जाइछ,
दुःखक घड़ी मे सब दूर-दूर भागि जाइछ ।।
जे अहाँके नीक लागैछ सुखमे सरीक होयत,
अहाँ जकरा नीक लागी सुखमे नहियो आयत ।।
ओ देखाबक आडम्बर नहि क' सकै अछि,
दुःख मे मुदा ओ अहाँके छोड़ि नै सकै अछि ।।
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