Sunday, October 27, 2013

माँ दुर्गा

-माँ की माया अपरम्पार है. माँ  के   विना ज्ञान (ब्रह्म ज्ञान ) पाना मुश्किल है. जीव कितना भी विद्वान् हो जाय, अगर माँ की कृपा न  हो तो ज्ञानी नहीं हो सकता. प्रत्येक वर्ष मैया की पूजा करने का उददेश्य यही है कि  भक्ति पर परी  छाई को हटाकर माँ की निश्छल भक्ति सदैव ज्योतित रहे. महिषाशुर, शुम्भ-निशुम्भ, मधु-कैटभ हमारे स्वयं के अन्दर के ऋणात्मक भाव हैं . मैया की भक्ति से उन ऋणात्मक भावों का नाश अवश्यम्भावी है. तत्पश्चात् सद्गुण एवं सत्य-ज्ञान आना ही आना है.  

Saturday, October 26, 2013

चित्त-वृत्ति निरोध

"योगश्चित्त-वृत्ति निरोध:". मन की स्थिरता सबसे बडा योग है. विपरीत से विपरीत परिस्थितियोन् मे भी धैर्य धारण कर सदैव आत्मस्थ रहनेवाला ही ग्यानी है. अस्थिरचित्त का व्यक्ति जो आत्म हत्या तक कर लेता है, वह् भी हत्या के बराबर का ही अपराधी है; फ़र्क शिर्फ़ इतना है कि सजा पानेवाले का पार्थिव शरीर नही रहता है. चित्र वृत्ति का  निरोध ही सभी धर्मो एवन्  सभी शस्त्रोन्  का सार है. कितना ही विद्वान, शास्त्रज्ञ, ज्ञानी क्योन् न हो; अगर अस्थिर चित्त का व्यक्ति है तो उसे अज्ञानी से भी नीचे माना जायगा.