Tuesday, January 23, 2018

माँ शारदे

आइ सरस्वती पूजा अछि- माँ वीणावादिनीक/ विद्यादायिनीक पूजा I स्थूल पूजा भेल माँ के चित्र/मूर्तिक पूजा- फूल, अक्षत, सिन्दूर, दूभि, तुलसीदल, नैवेद्य, धुप-दीप, पान-सुपारी.... स श्रद्धापूर्वक माँ के पूजा केनाइ I श्रद्धा-भक्ति स कएल गेल पूजा कहियो व्यर्थ नै जा सकैछ I शूक्ष्म पूजा थिक- खूब मोन लगाक’ अध्ययन/मनन केनाइ, माँ के पूजा बूझि खूब ज्ञान प्राप्त केनाइ- शास्त्र-पुराण के गूढ़ अध्ययन केनाइ I शूक्ष्म पूजा विशिष्ट पूजा थिक, एकरे महत्त्व छैक, मात्र स्थूल पूजा करैत रही आ अध्ययन नै करी त’ ओ पूजा फलदायी नै भ’ सकैछ I
“ विद्वत्वं च नृपत्वं च नैव तुल्यो कदाचन,
स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते I”
जाहि विद्वताक प्रशंसा उक्त श्लोक मे कैल गेल अछि तकर अधिष्ठात्री देवी माँ सरस्वतिए त’ छथि I हिनक आराधना स’ ताहि अमूल्य वस्तुक प्राप्ति होइछ जाहि के सोझाँ नृपत्व पानि भरैछI
             माँ के वाहन हंस छन्हि- ‘ नीर-क्षीर विवेकी ’- दुग्ध मे स’ पानि अलग क’ क’ दूध ग्रहण क’ लै छथि- तात्पर्य अछि जे माँ के पूजा स’ सार-असार के ज्ञान भ’ जाइछ- सार ग्रहण करू, असार के त्यागू I
           माँ के वस्त्र श्वेत छन्हि- दागरहित सादगीपूर्ण जीवन- सात्विक आधार पर ज्ञानक अवतरण होइछ- राजसी, तामसी शूक्ष्म ज्ञान नै प्राप्त क’ सकैछ I
माँ के पूजा स’ चिंतन-मनन, संगीत, कला सब मे निपुणता अबैछ I
माँ के दू हाथ मे वीणा छन्हि- आराधना स’ संगीत कला मे निपुणता आबैछ I एक हाथ मे पुस्तक- शिक्षा/ज्ञान के प्रतीक- दू पैरक पशु शिक्षा/ज्ञान प्राप्त क’ मनुक्ख बनि जाइछ- आन्हर के ज्ञान चक्षु भेटि जाइछ I
एक हाथ मे माला छन्हि- गायत्री जपू, सब ज्ञान अपने दौड़ल आयत I जँ कोनो छात्र प्रतिदिन 108 गायत्री जपि अध्ययन करताह त’ निश्चित विद्वान् बनताह I
माँ के दोसर सवारी मोर छन्हि- मोर कला आ ब्रह्मचर्यक प्रतीक अछि- ब्रह्मचारी के माँ के पूजा स’ कला मे निपुणताक गारंटी I
     माँ के उपासना स’ मंदबुद्धियो प्रकांड विद्वान् भ’ जाइछ- कालिदास,वरदराजाचार्य, बोपदेव... इत्यादि प्रत्यक्ष प्रमाण छथि I
               माँ के पूजन स’ मनन-चिंतन अबैछ- ऋषि-मुनि गूढ़ चिंतन क’ क’ वेद, पुराण, उपनिषद, स्मृति, ब्राह्मण......इत्यादिक रचना क’ सकलाह I

        हमहूँ सब माँ के पूजन- चिंतन-मनन क’ क’ शास्त्रग्य जरूर भ’ सकै छी I                            -------वसन्तपंचमी, २१.०१.२०१८ 

Saturday, January 20, 2018

ढ़ौआ


जखन संग मे पाइ अछि त' दोस्त अनगिन
भोर दुपहर साँझ सदिखन आबि पसरत I
जहाँ घटि गेल वित्त छोड़त संग सब क्यो
बजेबइ कतबो ने आयत, देखि घसकत II
   
  देखि दिवसक फेर के चुपचाप बैसू
  नीक दिन अबिते समरतै सकल बिगरल I      ऐत झट ऋतुराज ठिठुरल डारि सब पर        लाल पीयर पुष्प सदिखन रहत लुधकल II

कष्ट बेसी दैछ असला-आर खसला,
उचित जँ नृप करथि जन-संवाद अपनहिं I
थापड़क आघात के बूझी दुलारे 
अस्त्र-शस्त्रक घात लै अछि प्राण तखनहिं II





Tuesday, January 2, 2018

स्वयं तप स' सत्य-दर्शन

एसगरहिं ऐ जगत मे सब लोक आबय
जीवनक यतराक पथ पर छी चलल हम I
मार्ग मे संग भेल, छुटियो गेल बहुतो,
विना पथ के अंत केने नै रुकब हम II

अंत क’ जीवन के यतरा जखन सब क्यो विदा होइ अछि
संग नै क्यो दैछ सब संगी धनहुँ रहि जैत अइठां I
गेह नारी के कहय तन केर नारी सेहो भागय,
कर्म जं सद्कर्म त’ सद्नाम टा रहि जैत अइठां II

कर्म के सुख लभै अछि सब लोक मिलिक’,
मुदा क्यो फल-भोग लेल नै ऐत आगू I
तैं सतत सद्कर्म सब जन कैल करिऔ,
कर्म फल नहिं बंटय, आबो लोक जागू II

भेटय फल कलिकाल मे एत्तहिं तुरत सब कर्म के,
अहीं के भोग’ पड़त जँ बँचल त’ अगिला जनम मे I
तैं हृदय स’ सतत सब क्यो धर्मपूर्वक कर्मरत भय-
करी मिलि परमार्थ, जै स’ सुख भेटय अगिला जनम मे II

सत्य-दर्शन निज तपक बल प्राप्त होबय,
आन क्यो नै काज ई करबा सकै अछि I
तैं ने अनकर आस, गुरु जे कैल इंगित-                 वैह गुर तपबलें ई करबा सकै अछि II‍