जखन संग मे पाइ अछि त' दोस्त अनगिन
भोर दुपहर साँझ सदिखन आबि पसरत I
जहाँ घटि गेल वित्त छोड़त संग सब क्यो
बजेबइ कतबो ने आयत, देखि घसकत II
देखि दिवसक फेर के
चुपचाप बैसू
नीक दिन अबिते समरतै सकल
बिगरल I ऐत झट ऋतुराज ठिठुरल
डारि सब पर लाल पीयर पुष्प सदिखन रहत लुधकल II
कष्ट बेसी दैछ असला-आर खसला,
उचित जँ नृप करथि जन-संवाद अपनहिं I
थापड़क आघात के बूझी दुलारे
अस्त्र-शस्त्रक घात लै अछि प्राण तखनहिं II
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