Tuesday, January 2, 2018

स्वयं तप स' सत्य-दर्शन

एसगरहिं ऐ जगत मे सब लोक आबय
जीवनक यतराक पथ पर छी चलल हम I
मार्ग मे संग भेल, छुटियो गेल बहुतो,
विना पथ के अंत केने नै रुकब हम II

अंत क’ जीवन के यतरा जखन सब क्यो विदा होइ अछि
संग नै क्यो दैछ सब संगी धनहुँ रहि जैत अइठां I
गेह नारी के कहय तन केर नारी सेहो भागय,
कर्म जं सद्कर्म त’ सद्नाम टा रहि जैत अइठां II

कर्म के सुख लभै अछि सब लोक मिलिक’,
मुदा क्यो फल-भोग लेल नै ऐत आगू I
तैं सतत सद्कर्म सब जन कैल करिऔ,
कर्म फल नहिं बंटय, आबो लोक जागू II

भेटय फल कलिकाल मे एत्तहिं तुरत सब कर्म के,
अहीं के भोग’ पड़त जँ बँचल त’ अगिला जनम मे I
तैं हृदय स’ सतत सब क्यो धर्मपूर्वक कर्मरत भय-
करी मिलि परमार्थ, जै स’ सुख भेटय अगिला जनम मे II

सत्य-दर्शन निज तपक बल प्राप्त होबय,
आन क्यो नै काज ई करबा सकै अछि I
तैं ने अनकर आस, गुरु जे कैल इंगित-                 वैह गुर तपबलें ई करबा सकै अछि II‍    

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