Saturday, March 9, 2024

क्रोधपर विजय

शिष्य अछि क्रोधी स्वभावक गुरुक सम्मुख आबि बाजल- "क्रोध हमरा सतत आबय बना दैछ निछच्छ पागल ।। गुरु! अहँक व्यवहार उत्तम, सतत मिट्ठे टा बजै छी । क्रोध जितने छी, ने कखनो- कटु वचन ककरो कहै छी ।। हमर भाग्यक रेख की अछि? कृपा क' क' ई बतबितहुँ । संगहि अप्पन क्रोध जितबा के रहस सेहो सुनबितहुँ ।।" संत-"अद्याबधि ने अप्पन, रहस किछुओ हम जनै छी । मुदा तोहर भाग्यरेखा- के रहस सबटा जनै छी ।।" -"अहँक शरणागत छी गुरुवर! चरण-रज सँ सब सिखल । कृपा क' क' बता दीतहुँ, भागमे अछि की लिखल?" -"लिलाटक रेखा कहै छौ, आब बेसी दिन ने बचबैं । यैह लीखल छौ जे साते दिनमे तों प्रस्थान करबैं ।।" आन जँ ई बात कहितै, शिष्य हँसिकय टालि दीतय । मुदा गुरुमुख बात, हिम्मति- भेलै नहि जे काटि सकितय? गुरु चरण स्पर्श क' क', शिष्य मुँह लटका क' चलि गेल । ताहि दिन सँ शिष्य केर- व्यवहार साफे क' बदलि गेल ।। प्रेम सबसँ करय, नहिएँ- क्रोध ककरो पर करै छल । भजन-पूजा-पाठ ध्यानेमे सतत लागल रहै छल ।। पूर्वमे व्यवहार उल्टा- केने छल जिनका संगें । माँगि माफी करय लागल- प्रेम ओ तिनका संगें ।। एलै सातम दिवस तँ ओ- गुरुक सोझाँ जाय बाजल- "क्षमा गुरु! आशीष दीय', देह तजबा समय आयल ।।" -"पुत्र! बाजह सात दिन के- कोन विधि सँ तों बितेलह? की तों पूर्वे जेकाँ सबपर, खूब तामस के देखेलह?" -"गानि-गुथिक' सात टा दिन, शेष जिनगी केर पाओल । पाठ-पूजे-ध्यान-प्रेमें, डूबिक' तकरा बिताओल ।। कष्ट देने छलहुँ उरमे पूर्वमे जकरा सभक हम । क्षमा सबसँ माँगि अयलहुँ गेह जा तकरा सभक हम ।।" -"बूझि गेलह मर्म सबटा, मृदुल व्यवहारक हमर । सात दिन सप्ताहमे अछि, तहीमे सबक्यो मरत ।।" शिष्य गुरु-संकेत बुझि गेल, ताप मोनक मे'टि गे'लै । मृत्युभय तँ छल बहन्ना, सार-जिनगिक भे'टि गे'लै ।। *****************************