Thursday, September 29, 2016

आजुक पीढी


सोमना भागिक’ कलकत्ता चलि गेलै,
बात किछुओ नै छलैक
पढ़ाई-लिखाई छोड़िक' चेंगरा सबहक संग
लफासोटिंग मे लागल रहै छलै
खेतो मे काज करितै, सेहो नै
सूति-ऊठिक’ निकलै त’
एक्के बेर दुपहर मे आबै
फेर ख़ाक’ निकलै त’
दस बजे राइत मे आबै I
चारू दिस स’ उपरागे-उपराग,
आइ त’ आर अतत्त: क’ देलकै
तीन टा चेंगरा निशाभाग राइत मे
ओइ टो’ल मे पकड़ा गेलै
चोर-चोर हल्ला भेलै
दू टा भागि गेलै
सोमना के एकटा रूम मे
बंद क’ क’ रखने छलै
राइते मे पता चललै त’
बाप दौड़ल गेलै
लोक सबके हाथ-पैर पकड़ि क’
कहुना क’ छोड़ेलकै
क्रोध मे सबहक सामने
एक चमेटा कसिक’ देलकै I
पाँच बेटी पर स’
कतेक कौबला-पाती स’
सोमनाक जन्म भेल छलैक
कतेक दुलार स’
छौंड़ा के पोसने छलैक
आइ तक कहियो
जोड़ स’ ललकारनो नै छलै I
चुप-चाप घर मे कतबो मारितै त’-
बर्दास्त क’ लैतै
मुदा सबहक सामने
बापक चमेटा तिलमिला देलकै
ओ रातिए मे कतौ पड़ा गेलै
चारू दिस कतबो ताकल गेलै
नै भेटलै,
भोरे स’ माय-बाप-
पेटकुनियाँ देने छै I
कैक बरखक बाद पता चललै,
बम्बई मे कियो देखलकै
एकटा पैघ होटल मे-
प्लेट साफ़ करै छलै
साँझ क’ सूट-बूट मे
टाई लगाक’
हाकिम-हुकुम जेकाँ
बजार घूम’ निकलै छलै I
गाम पर कोनो वस्तुक कमी नै छै
पोखरिया-पाटन खूब सुन्दर
कोठाक घर
बाप खूब सुभ्यस्त गृहस्थ
अन्न-पानि के कोनो कमी नै
जन-बनिहार सब खटै छै
टहल-टिकोरा मे सदिखन
लागल रहै छै,
आ अइठाम छौंड़ा
प्लेट धोइछ,
बक्खो जेकाँ खोभारी मे
जिनगी काटैछ I
बाप के पता लगलै त’
दौड़ि पड़लै
बम्बई जाक’ देखैत अछि
बेटा प्लेट साफ़ क’ रहल छै
ठोहि पारिक’ कान’ लागल
कतबो कहलकै गाम चल’ लेल
नै अयलैक I
ओकर बापक मीता
बम्बई मे रहैछ
पता चललैक त’
मीता स’ भेट कर’ गेल
होटल मालिक कहलकै-
‘सोमन कहलक अछि जे
पिता नहिं, भिलेजर आयल छथिन्ह’
तैयो भेट केलक त’ देखैछ
ई त’ हमर मीते छथि,
गाम गेलहुँ त’ सोमनाक
पिताक मीता सबटा
खिस्सा कहलाह I
वाह रे आजुक पीढ़ीक मानसिकता !
होटल मे बैराक/प्लेट सफाई-
के काज क’र’ मे सान,
मुदा बाप के बाप कह’-
मे शर्म होइछ,
किऐक त’ बाप किसान छैक
धोती-कुरता पहिरैछ
सूट-बूट, टाइ नै लगबैछ,
मोबाइल नै रखैछ I
वाह रे आजुक पीढी !

Tuesday, September 27, 2016

ठठपाल



नाम निज ‘ठठपाल’ ‘ठट्ठू’, सुनै अछि सबहक मुहें ओ,
क्रोध अतिशय होइत छै, के नाम रखलक एहन हम्मर I
आइ जग मे घूमिक’, सबस’ जे बढियाँ नाम हे’तै,
सैह अपना लेल चुनबै, नाम हे’तै वैह हम्मर II

बढ़ल आगू त’ देखै अछि- घास एक सुन्नरि कटै छै I
ल’ग जाक’ पुछलकै त’, नाम लछमिनियाँ कहै छै II
मूँह ताकै- ‘ नाम लछमी, मुदा घसछिलनी करै छै !’,
कहै छै- ‘ जे रहै लीखल, नाम मे किछु ने रहै छै’ II

बढल आगाँ त’ देखल जे, युवक हरबाही करै छै I
पुछै छै- ‘की नाम?’ त’, ‘धनपाल’-हम, उत्तर भेटै छै II
मूँह ताकै ओकर- ‘ छै धनपाल, हरबाही करै छै ?’
कहै छै- ‘ जे रहै लीखल, नाम मे किछु ने रहै छै’ II

बढ़ल थोड़बे दूर त’, अर्थी-चढ़ल मुर्दा भेटै छै I
-‘नाम हिनकर की छलनि?’ -‘अमर’, चट उत्तर भेटै छै II
मूँह ताकय, पुछै सबस’- ‘अमर की से’हो मरै छै?’
भेटल उत्तर- ‘सब मरै छै, नाम मे किछु ने रहै छै’ II

चित्त थिर कय सोचै छै, आ बा’ट ओ घ’रक धरै छै-
-‘कर्म लीखल होइछ निश्चय, नाम मे किछु ने रहै छै’ II
-‘घास लछमिनियाँ कटै अछि, ह’र मे धनपाल अछि I
चढ़ल अर्थी अमर देखल, नाम निक ठठपाल अछि' II

Tuesday, September 13, 2016

बाल-नीलू


माय के चिंतन जेना-
गर्भस्थ-शिशु तहिना बनै अछि I
चित्र मायक कक्ष मे सब,
श्रेष्ठ बालक के रखै अछि II

गर्भ-नीलू, माय आंगन-
मे, शिशुक क्रीड़ा देखै छथि,
-‘हमर शिशु अहिना पड़ैतै,
पकडितौं हम’- ओ सोचै छथि II

कथा अभिमन्यूक प्रचलित-
‘गर्भ स’ रण नीति जानथि ’ I
बाल-नीलू, मातृ-सोचें,
शैशवहिं स’ तेज भागथि II

रहथि नीलू आठ मासक  
घ’र स’ चुपके पड़ाइ छथि I
गे’ट मे तालाक रहितो,
फाँक स’ ओ भागि जाइ छथि II

रहै छी राँचीक हरमू-
कॉलनी, अति मो’न मोहय I
छोट-छिन बाजार, इस्कूल,
फिल्ड, रस्ता, पार्क सोहय II

अनुज सेहो संग मे छथि,
काज किछु-किछु ओ सिखै छथि I
समय के बरबाद बेसी-
काल, गप-सप मे करै छथि II

बाल-नीलू गेट स’
बाहर निकलि गेल एकदिन I
माय भानस-भात मे छलि,
बुझि ने सकली ताइदिनII

थोड़े कालक बाद, आहट-
शिशु के नै सुनि, दौड़ पडली I
भागिक’ मैदान जैतहिं,
फिल्ड मे निज शिशु के देखली II

जान मे ऐल जान, कोरा-
मे उठा शिशु के अनै छथि I
एलहुँ संध्याकाल, सबटा-
बात हमारा स’ कहै छथि II

पकड़लहुँ माथा, आ ईश्वर
के सतत बंदन करै छी I
करू रक्षा देव सबदिन,
अहीं सब शंकट हरै छी II
    


   

Saturday, September 3, 2016

बस-पड़ाव


बात किछु दिन पूर्व के थिक,
मित्र हम्मर छला आयल ।
विदा होइ छथि गाम, घटना-
हुनक संग भेल, याद आयल ।।
रात्रि के नौ बजे, पटना-
बस-पड़ावक लेल गेलथि ।
लौटिक' दस बजे पुनि मम-
गेह के घंटी बजेलथि ।।
लौटिक' क्यै आबि गेला
भेल चिंता बात की छै ।
ब'स छुटलनि वा कि कोनो-
मामला किछु आन भेल छै ।।
पुछलियनि-' की भेल?' उत्तर-
सूनि क' मोन खिन्न भए गेल ।
हाल 'पटना बस पड़ावक' आ-
'प्रशासनक', याद पड़ि गेल ।।
-" गेलहुँ हम स्टैंड जखने
दौड़ि एकटा लोक आयल,
पकड़ि हम्मर बैग घिचिक'
अपन बस के ल'ग लायल ।।
ब'स झड़खण्डी छलै ओ-
झिकातीरी करय लागल ।
पाछु मे लखि नीक बस एक-
ओकर हम नहि बात मानल ।।
देलक धक्का जोड़ स' आ
भूमि पर ओ खसा देलक ।
गारि पढ़लक खूब, पर-
मम बैग के नहि छीनि पेलक ।।
मोन अतिशय खिन्न भए गेल
क्रोध के हम पीबि गेलहुँ ।
दौड़ि एलहुँ सड़क पर,
फ़ुटपाथ पर जा बैसि गेलहुँ ।।
ए'कटा गतिशील चेकिंग-
भान के आबैत लखलहुँ ।
हाथ द' क' रोकि, घटना-
घटल, आद्योपांत कहलहुँ ।।
संग हमरा लेलक ओ सब
पड़ावक अंदर ल' जाइ अछि ।
पुलिस के देखिते देरी ओ-
लहंगड़ा झट स' पड़ाइ अछि ।।
चिन्हा देलियै लहंगड़ा के,
दौड़िक' ओकरा पकड़लक ।
लात-जुत्ता देलक, भू पर-
पटकि क' अतिशय रगड़लक ।।
ओकर मालिक आबि, हमरा-
स' बहुत माफी मंगै अछि-
'अहूँ खुब जुतिआउ एकरा
क'ल जोड़ि हमरा कहै अछि' ।।
बढ़ि चलल गतिशील चेकिंग,
संग हमरा लय लेलक ओ ।
'आइ रोकू अपन यतरा',
चौक पर बैसा देलक ओ ।।
दोसर टेम्पू के पकड़ि क'
लौटिक' हम आबि गेलहुँ ।
काल्हि पुनि ट्रेने स' जायब,
बस ने पकड़ब, कान धेलहुँ ।।"
सुनि हुनक खिस्सा, बिहारक-
हाल पर दुख भ' रहल अछि ।
ईश रक्षा करथु राज्यक,
गर्त मे ई जा रहल अछि ।।
करै छी अनुरोध सबस',
बस चढ़क बेर ख्याल राखब ।
लुहेड़ा, लुच्चा आ बहसी स'-
ने उलझी, ध्यान राखब ।।

चोर


कृष्णपुर मे फ्लैट दस-
तल्लाक सुन्दर अछि बनल I
मित्र हम्मर छथि ततय-
सपरिवारें रहि रहल II
एक बेर बेटीके ब्याहक-
लेल ओ निज गाम गेलथि I
ठीक स’ सब घ’र, खिड़की-
आर फाटक के लगेलथि II
ब्याह के बीचे मे ऑफिस-
काज स’ पटना अबै छथि I
ख़तम भेलनि काज ऑफिस-
के, त’ डेरा पर चलै छथि II
द’स तल्ला फ्लैट मे ओ-
सबस’ ऊपर मे रहै छथि I
बालकोनी स’ शहर के-
दर्शनक आनंद लै छथि II
जाइत देरी ओ देखल जे-
गेट पर एक ट्रक लदल अछि I
घरेलू सामान सब, नीचा-
स’ ऊपर तक भरल अछि II
हिनक सोझँहि फुजल ट्रक,
पर ई ने किछुओ बूझि सकला I
चिन्हरगर क्यो ने छलनि-
तयँ बात किछु नै पूछि सकला II
गेला ऊपर त’ देखल जे-
गे’ट हिनकर रहय फूजल I
गेला अन्दर त’ देखै छथि-
घ’र खाली, किछु ने सूझल II
खटखटेला सामने त’-
क्यो ने किछु उत्तर द’ सकलनि I
पड़ोसी स’ प्रेम नहिं-
रखवाक फल झट बूझि पड़लनि II
पड़ोसिया स’ रहू मिलिक’-
जत’ जे क्यो रहि रहल छी I
बे’र पड़ला पर सहायक-
वैह छथि, हम कहि रहल छी II

Thursday, September 1, 2016

शतं विहाय भोक्तव्यं


अरुण गिरि स’ सब उतरि-
अरुणाचलेश्वर धाम गेलहुँ I
टिकट झट स’ कटाओल आ- 
लाइन मे सब लागि गेलहुँ II
लाइन ततबा पैघ छै जे-
घाम सबके छुटि रहल अछि I
आश्रमक भोजन समय के-
याद क’ मोन टुटि रहल अछि II
विमलजी छल बाथरुम गेल,
निकलि सबके ढुढ़ि रहल अछि I
फोन केलक त’ कहलिऐ-
‘ रुकू, सब आबिए रहल अछि’ II
निकलवा मादे कहल त',
व्यवस्थापक देलनि उत्तर-
‘लाइन मे सब घुमू उलटा’
ओहो अछि अतिशय कठिनतर II
करै छी सब कियो छटपट,
मुदा रस्ता नै सुझै अछि I
समय भोजन केर भ’ गेल,
बात, पर क्यो नै बुझै अछि II
अंत मे अरुणाचलेश्वर,
बात सबटा बूझि गेलथिन्ह I
व्यवस्थापक एला दौड़ल,
गेट बीचक खोलि देलथिन्ह II
तुरत बाहर भेलहुँ सब क्यो,
जान मे पुनि जान आयल I
गेट स’ बाहर निकलिते,
रिक्त एक टेम्पू धरायल II
दौडिक’ सब कियो बैसल,
तुरत आश्रम पहुँचि गेलहुँ I
लाइन मे लगिते रहय सब,
हमहुँ सब झट लागि गेलहुँ II
भूख सबके रहय लागल
भोज्य पर सब टूटि गेलहुँ I
ग्रूप-भोजन आश्रमक अछि-
अतुल, सब आनंद लेलहुँ II
हँसल हे’ता गुरू-बाबा,
पड़ायल सब छोडि पूजा I
ह्रदय मे अरुणाचलेश्वर,
पेट-पूजन हुनक पूजा II

Tuesday, August 30, 2016

कुष्टरोगी


बात बहुत पुरान थिक
कुष्टरोगी सबहक
गृहनिर्माण भ’ रहल छल
पर्यवेक्षण के जे.इ.
मानसिक रूपें बेमार छल
हमहूँ निरीक्षण मे पहुँचलहुँ

कुष्टरोगी स’ समाज घृणा करैछ
मुदा ओकरा सबहक मोन मे
समाज स’ कोनो घृणा नहि रहैछ I
ओ सब घृणा नहिं,
सहानुभूतिक पात्र थिक
कुष्ठरोग,
छूतिक रोग नहिं थिक I
साफ़-सुथड़ा रह’बला के
ई रोग किछु ने क’ सकैछ I

ओकरा समाज मे
छुआ-छूति नै छैक
मात्र एक जाति-
‘कुष्ठ रोगी’ छैक       

निरीक्षणक क्रम मे
कहियो
ओकरा सबहक प्रति
घृणाक भाव
नहिं रखलहुँ
ओकर देल चाह पीबा मे
कहियो संकोच नहि केलहुँ I

अहूदिन ओ सब चाह बनेलक
हम आ जे.इ. चाह पीबि रहल छी
अचानक जे.इ. के दौड़ा पड़लैक
तडमडाक’ खस’ लागल
एकटा लेपर दौडिक’ पकडि लैछ
खाट पर सुता क’
चारू पौआ चारि लेपर पकडि
इमरजेंसी वार्ड दिस विदा होइछ
रस्ता मे एकटा दोस्त डाक्टर भेटैछ
ओ चेक करैछ-
‘कोनो डर नहिं’
पुनि सब खाट के इमरजेंसी ल’ जाइछ
तखन तक जे.इ. के होस आबि जाइछ
किछु दबाइ द’ क’ छुट्टी भेटि जाइछ

क्यो ने जाने विपति बेर मे
सहायक के हैत कक्खन
जँ ने ओइदिन कुष्टगण सब-
मदति कैरतै, हाल नहिं कहि- 
की होइत तक्खन ?
तैं ने क्यो अछि पैघ अथवा
नै  कियो  अछि छोट जग मे
एक ब्रह्मक थिका सन्तति

सकल जीव समान जग मे II            

Saturday, August 27, 2016

जद्दू


‘जद्दू’ ओकर नाम छलै
पिताजीक खेत मे हरबाहि करैत छल
अन्ह्रोखे ओ अबैत छल 
खूब अन्हार भेला पर जाइत छल
भोर स’ साँझ तक अत्यधिक खटय
पर कहियो मूँह मलिन नहि देखलहुँ
खूब लंबा-चौड़ा शरीर
रोपनी, कमैनी, कटनी, दौनी मे
ओकरा मे क्यो ने सकय
मात्र पिताजी स’ ओ हारैत छल
बीया बाग़ कर’ स’ ल’ क’
रोपनी, पटौनी, निकौनी, कटनी,
दौनी, उसिनिया, कुटिया, फटकीया
कोठी मे ढारनाइ तक
सब काज ओ करै छल
भोर स’ साँझ तक ओकरा देखी
नेनमति, ओकरा घरे के सदस्य बूझी
जाति-पातिक कोनो ज्ञान नहि
छड़पि क’ ओकरा कनहा पर चैढ जाइ
ओकरा मना केलो पर
जावत ओ हाँ-हाँ करय
ओकर भोजन आ जलखै मे स’
चट ल’ क’ थोड़े खा ली
विना मुँह लारनहि, घोंटि ली
परदेश स’ बहुत दिन पर गाम गेलहुँ
जद्दू के नहिं देखलिअइ
खोज केलिअइ त’ पता लागल जे
आब नहिं अबै अछि
बेटाक माथा पर सब भार द’ क’
गामे पर रहैत अछि
नाम सुनैत देरी
भेट करवा लेल
दौड़ल आयल
हाथ मे अपना बारीक एक घौर केरा लेने
कुर्सी पर बैसक लेल कतबो कहलिऐक, नै बैसल
जमीने पर बैसि गेल
चाह पीबक लेल देलिऐक
कप धोक’ रखलक
किओ हमर पैघ बालक के कोरा मे रखने छलैक
पाँच टा रुपैया जद्दू आसिर्वादी सेहो देलकै
हाल-चाल पुछलिअइ त’ उत्तर देलक
-‘तीनू बेटा के घर मे
एक-एक मास खाइत छी
कहुना गुजर चलैयै
समय काटि लैत छी’
ओकर हाल सुनि
बहुत तकलीफ होइछ
विदा भेल त’
एक सै रुपैया देब’ चाहलहुँ
मुदा ओ नै लैछ
बहुत जिद्द केला पर
पांच रुपैया राखि लैछ
ओतेक दयनीय हाल मे रहितो
ओकर संतोष मोन मोहि लेलक
ह्रदय मे आदरणीय स्थान बना लेलक
ग्रैंड सैल्यूट !

Friday, August 26, 2016

कृष्णाष्टमी


विश्व रंगमंच पर
आदिनांक मात्र एक पात्र एहन भेल अछि
जे हरेक क्षेत्र के टॉपर
सबस' पैघ योगी/भोगी/कूटनीतिज्ञ/बलशाली हो ।
गो, गोबर्धन आ ब्राह्मण के पूजब-
गो- कृषि, पशुपालन, खाद्य
गोवर्धन- पर्यावरण
ब्राह्मण- शिक्षा, ज्ञान-विज्ञान-टेक्नोलॉजी, न्याय, नीति-
हुनक प्राथमिकता मे छल ।
ओतेक यूनिक होमक लेल
ओतबे पैघ तपस्या
ओतबे कष्ट
गर्भे स' मृत्युक तलवार लटकैत
बच्चे स' भयानक दुश्मन सबहक सामना
सबदिन किछु ने किछु अजूबा
गोवर्धन धारण
इन्द्र दर्पहनन
पूतना, यमलार्जुन, सकटासुर, बकासुर, अघासुर, प्रलम्बासुर, तृणावर्त, कालीय दमन,
व्योमासुर, मुस्टिक, चाणूर, कंस-बध
इत्यादि प्रकरण बचपने मे संपन्न
यशोदा के विराट रूप देखेनाइ, माखन-चोरी, चीरहरण, रासलीला इत्यादि मृदुलतम कार्य
सब बचपन मे संपन्न ।
युवावस्था मे शिशुपाल बध, कुरुक्षेत्र मे महाभारत, अर्जुन के विराट रूप देखेनाइ, द्रौपदी के चीरहरण प्रकरण मे लाज बचेनाइ, द्रोणाचार्य के मृत्यु प्रकरण, जयद्रथ बध,
कुरुक्षेत्र मे विना स्वयं अस्त्र-शस्त्र के कौरव पक्षक पराजयक निमत्त भेनाइ अर्थात् कृष्ण के विना कौरव पक्ष नहि हारि सकै छल ।
अर्जुन के गीताक उपदेश, संसारक अद्भुत सन्देश अछि- संसार मे आइ तक गीता सनक पुस्तक नहि लीखल गेल- साक्षात् भगवान् के श्रीमुख स' निकसल परम रहस्यमयी दिव्य वाणीक परतर आन कोन पुस्तक करत ? सब पंथक आदमी के अपन अपन मतक अनुसार समाधान आ उद्धारक उपाय अहि ग्रन्थ मे उपलब्ध अछि । भगवान् स्वयं बाद में कहैत छथि जे हम गीता के एखन नहि दोहरा सकब, कारण ई जे जाहि समय मे हम ई अर्जुन के सुनेलिअनि ताहि समय मे हम योगावस्था मे छलहुँ ( म0 भा0, आश्व0 16/12-13) । ई हमरो सबहक संगें होइछ- ध्यानावस्थाक कोनो रचना के दोहरेनाइ साधारण अवस्था मे असंभव होइछ ।
कृष्ण सम ने कोनो वक्ता, ने कोनो कलाकार-गायक, वादक, नर्तक भेल। कालीय नाग के फन पर के नाचि सकत ? महारास के क' सकत? ततेक किताब कृष्ण पर छन्हि जे गानव असंभव, हुनक वर्णन के क' सकत?
जखन कंस के दरबार मे बलराम जीक संग हमर कन्हैया पधारै छथि तै समय के वर्णन अछि- पहलवान के बज्र, साधारण मानव के नर-रत्न, महिलागण के कामदेव, गोप-गण के स्वजन, दुष्ट के दण्डित कर'बला शासक, बुजुर्ग के शिशु, कंस के मृत्यु, अज्ञानी के विराट, योगी के परमतत्त्व आ भक्त के इष्टदेव बुझना गेलथिन्ह ( श्रीमद्भा0 10/43/17) ।
श्री कृष्ण महायोगेश्वर छथि। योगीक ईश्वर भेनाइ सरल भ' सकैछ पर योगक ईश्वर क्लाइमैक्स अछि- अहुना हमर कान्हा क्लाइमैक्सक समूहे त' छथि ।
न्याय के पक्ष ल' क', आततायी के नाशक संकल्प, गो- ब्राह्मण हितायक संकल्प ल' हम कृष्णाष्टमी मनाबी तखने अहि तिथिक सार्थकता ।

रिक्शा-चालक


वर्ष १९७९ के अक्टूबर मास
दुर्गा-पूजाक समय
कलकत्ता भ्रमण लेल गेलहुँ 
ब्लैक-डाइमंड एक्सप्रेस स’ I
६७/बी मे गौआँ सब छलाह
पहिले ओत्तहि गेलहुँ
अष्टमीक रात्रि
विश्वम्भरजी छागड़ चढेने छलाह I
रातुक भोजन ओत्तहि भेलैक
राजेंद्रजी घुमबाक लेल आयल छलाह
हुनके संग कलकत्ताक दुर्गा-पूजा
देखक लेल निकलैत छी I
एक मास ठहरक मादे राजेन्द्रजी स’ गप्प भेल
राजेंद्र-छात्र-निवासक सम्बन्ध मे बजलाह
चंद्रशेखरजी ओतय रहैत छलाह
एक मासक लेल गाम जा रहल छलाह I
हम, राजेन्द्र संगे हावड़ा स्टेशन जाइत छी
चंद्रशेखर अपना बेड पर
रुकक लेल कहलाह
घुमिक’ राजेंद्र-छात्र-निवास जाइत छी I
चारि बेडक कमरा
चंद्रशेखरजीक बेड पर-
एक अन्य छात्र कब्जा जमेने अछि
बेड खाली भेल, आ हम दखल केलहुँ I
आब निश्चिन्त भ’ दूनू गोटे
राइत भरि कलकत्ताक दुर्गापूजा देखैत छी
भोर मे राजेन्द्रजी अपन डेरा गेलाह
हमहूँ छात्र-निवास I
ओतहि रहि
प्रतियोगिताक तैयारी,
प्रतियोगिता परिक्षा आ
कलकत्ता भ्रमण सेहो होइछ I
एक दिन पुनः ६७/बी गेलहुँ
बाबू साहबजी भेटलाह
हुनके टेक्सी स’
पूरा कलकत्ता घुमलहुँ I
कलकत्ता मे ठेठ मैथिली मे पसिंजर स’ गप्प करैत,
मैथिली मे गाइर दैत
खूब मजा लैत ड्राइभर के देखलहुँ
भले पसिंजर किछु ने बुझलक I
छात्रावास मे हमर स्कूलक मित्र
कृष्णानंदजी भेटलाह
बाद मे राघोपुर के शंकरजी सेहो
ओ अंग्रेजी नीक बजैत छथि I
कृष्णानंदजीक  चलते
बहुत आनंद अबैत छल
दिन-भरि पढलाक बाद
साँझ मे दूनू गोटे खूब घूमी I
ओइ समय कलकत्ता मेट्रो बननाइ शुरू भेल छलैक
शहर मे ट्राम, टैक्सी, हाथ-रिक्शा चलैत छलैक
सबारी के ल’ क’ मनुख पैदल दौड़ैत छलैक
अति अमानवीय दृश्य !
एक दिन पूरा घूमि-फिरिक’
मानव-रिक्शा स’ लौटैत छी
छात्रावास जाइत छी
याद पड़ल
बैग रिक्शे मे छुटि गेल
कृष्णानंदजीक संग गप्प होइछ
कोना भेटत?
ओही मे मत्त्वपूर्ण कागजात सङ
किछु पाइ सेहो छल I
थोड़बे काल मे
देखैत छी,
हाथ मे बैग लेने
रिक्शाबला आबि रहल अछि,
ओकरा किछु देबाक इच्छा भेल
ओ साफ़ मना क’ दैछ-
‘ हमर ई कर्त्तव्य छल,
सरकार ! अपन समानक ख्याल राखल करिऔ I ’
एखन ओ रिक्शाबला याद पड़ि गेल
ओकर ईमानदारीक मादे सोचिक'
नतमस्तक छी,
ग्रैंड सैल्यूट !!
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Wednesday, August 24, 2016

पटना पुस्तक मेला


वर्ष नब्बे केर पटना-
पुस्तकक मेलाक वरनन-
कय रहल छी, ओ रहत-
जिन्दगी भरि याद सदिखन I
विमलजी, नीलू आ दीपू,
संग तीहूँ के लेने छी I
रहय स्कूटर पुरनका,
लादि तीहूँ के लेने छी II
भीड़ अछि अनगिन तते जे-
देह मे रगड़ा लगै छै I
लोक की पुस्तक ख़रीदत,
नाक मे गरदा भरै छै II
विमलजी अछि पांच, दीपू-
सात, नीलू नौ बरख के I
भीर मे सब चलि रहल छै,
ध्यान नश्ते दीस सबके II
ध्यान भीरे पर रहय, सब-
मुदित मन स’ चलि रहल अछि I
जखन नीचा दीस देखलहुँ,
विमलजी नहि दिख रहल अछि II
खोजै छी तीनू गोटे मिलि,
मुदा कत्तहु ने देखै छी I
दुहू के कय ठाढ़ कत्तहु,
एकसरे खोज’ चलै छी II
आँखि नोरें, ध्यान हनुमत्-
एनाउंसर काउंटर खोजै छी I
तही बिच मे माइक पर-
उद्घोष-‘विमलेन्दु’क सुनै छी II
दौड़िक’ पहुँचैत छी-
कानैत बौआ के देखै छी I
लगा छाती-उठा कोरा,
दिबी-नीलू लग अबै छी II
की घुमब मेला ने एक्को-
टा ओत’ पुस्तक लेलहुँ I
तुरत्ते सब क्यो विदा भय,
अपन डेरा पर एलहुँ II
पहुँचलहुँ डेरा कुशल स’,
जान मे पुनि जान आयल I
‘छोट बच्चा ल’ ने मेला–
जैब कहिओ’- कसम खायल II
एखन चेन्नै मे विमलजी,
एकसरे सबतरि घुमै छथि I
कोनो चिंता-फिकिर ने किछु,
मजा मे सब क्यो रहै छथि II
सोचै छी ओइ दिनक दृश त’,
कलेजा मुँह मे अबै अछि I
जँ ने ओइदिन विमल भेटितय,
प्राण मम उपरे टंगै अछि I
छोट बच्चा संग जँ क्यो-
घुमक मेला लेल जायब I
अछि निवेदन हमर जे,
बच्चाक हरदम ख्याल राखब II
चुकि गेला स’ बाद मे त’,
मात्र पछताब’ पड़ै छै I
सावधानी सतत राखी,
समय ने घुरिक’ अबै छै II

कार्तिक पूर्णिमा


नब्बे इस्वीक कार्तिक पूर्णिमा
जिनगी भरि याद रहत I
बिहार मे कार्तिक पूर्णिमाक बड प्रशस्ति
अधिकांश लोक नदी/संगम स्नान लेल जरूर जाइछ I
नीलूक मायक मोन भेलनि
गंगा डूब दी I
स्कूटर स’ दूनू गोटे विदा होई छी
बांसघाट मे स्कूटर लगाक’
गंगा किनार जाइत छी
जल बहुत गंदा
संगहिं मग्गह स्नान स’ कोनो पूण्य नहि  
तैं बांसघाट मे स्नान करबाक मोन नहि होइछ I
दू परिवार ओहिठाम ठाढ़ छी
छोट-छीन नाव ल’ क’ एकटा नाविक अबैछ
दूनू परिवार ओहि मे बैसैत छी
एखन प्रतिबन्ध छैक
ओहि समय मे छूट छलैक
नदीक जल स्पर्श करैत
हाजीपुर साइड जाइत छी I
प्रथम श्रीमतीजी,
पुनि दोसर परिवार
आ अंत मे हम स्नान करै छी I
हेलनाइ जनित छी
हम हेल’ लगलहुँ
पैरो भासिआइत छल
नाविक मना करैछ
हम हेल्नाई छोड़लहुँ
नव के नजदीके मे नहा रहल छी I
तखने देखैत छी
दस टा किशोर गेंद खेलाक’
पसीने लथपथ
कुदैछ गंगाजी मे
सब तुरत घुरि आयल
मुदा एकटा बालक आगाँ बढि गेल
किछु कालक बाद सबहक ध्यान ओकरा दिस जाइछ
अरे ई की !
मात्र ओकर हाथ जल स’ ऊपर अछि
अरे! ई त’ डूबी रहल अछि
-   ‘जा हउ नाविक कने दौडह’
-   ‘नहि सरकार हम नहि जेब, हम डुबि जैब’
हमर मोन होइछ हम दौडिक’ ओकर जान बचाबी
मुदा से नहीं भ’ सकल
श्रीमतीजी हमर हाथ पकडि लेली
ओ बालक डुबि गेल I
काश ! कियो ओकरा बचा लैत !
गंगा मे हरदम लोक के धोखा भ’ जाइछ
ऊपर मे गति विल्कुल नहि
अन्दर मे तीव्र करेंट I
हाजीपुर साइड मे
सुखायल समय मे बालु निकालल जाइछ
ट्रकक ट्रक
कात मे मात्र तीन-चारि फीट गहींर
मुदा सडेन पचासों फीट गहराई
तै पर नीचा मे भयानक करेंट
नित्यप्रति लोक धोखा मे डुबैछ I
आइ अपना आँखि स’ देखल
अपटी खेत मे एक निरीह के प्राण जाइत
दसो दोस्त मे स’ एकोटा बचाब’ नहि एलेक
बाह रे दोस्ती
समय एला पर सब अपन जान बचाक’ भागल

काश ! कियो ओकर जान बचबैत I