Tuesday, June 28, 2016

बारिक पटुआ तीत


मनुखक ई स्वभाव थिक जे कोनो आन व्यक्ति द्वारा मात्र स्वार्थवस कनिकबो आदर पाबि अभिभूत भ’ जाइछ आ ओकरा पर तुरत विश्वास क’ ओकरा लेल किछुओ करक लेल तैयार भ’ जाइछ. मुदा हमर अप्पन, जे नि:स्वार्थ हमरा लेल सब किछु त्याग क’ देलक, अपन जान ख़तरा मे डालिक’ हमर जान बचेलक; ओकरा हम विसरि जाइत छी. वाह रे मनुख! नजदीकी आ असली शुभचिंतकक उपकार के सामान्य प्रक्रिया मानि नजरअंदाज केनाइ कियो हमारा स’ सीखय.
                             किछु अही तरहक उक्ति थिक- “घरक योगी जोगड़ा बाहर योगी सिद्ध”. शुभंकरजी देवघरक नामी कथावाचक थिकाह. बहुत दिन स’ इच्छा छलनि जे गाम जाक’ एक बेर गामक लोक के सेहो कथा सुनाबी. हउ बाबू! भरि दुर्गा पूजा टर्टराइत रहला! मात्र किछु महिला श्रोता छोडिक’ गामक लोक नदारद. "एँ यौ शुभंकरा सेहो कथा बाच’ लागल? ओकरा लग मे समय गमेनाई स’ बढियां जे दू हाथ ताशे भ’ जाई दोश!”- एहन उक्ति सुन' मे अबै छल। 
                सुनै छी जे इलाकाक नामी पंडित श्रीकांत जी जखन शास्त्रार्थ मे सबके पछाडि क’ आँगन पैसैत छथि त’ बकार बंद। सिटि-पीटि गुम. किछु लोक त’ एहनो बजै अछि जे एक दिन जबाब द’ देलखिन; से पंडिताइन अग्निश्च-वायुश्च. आ तकर फल भेल जे तीन दिन पंडितजीक भोजन बंद।  कनफुसकी सुनलौ जे सगर राइत पंडित जी के आँगन मे ओंघराओल गेल.
           असली बात स’ हमारा लोकनि अनभिज्ञ छी. गरीब घरक टैलेंट (सुशील/नम्र) के सुखी संपन्नक बिगडैलि (मरखाही/हराशंखिनी) के संग जोतबई त’ ओ गाड़ी अहिना ने चलतै. टैलेंट (सुशील) संग सुशीला (मेधा) के लगाक’ रिजल्ट देखिऔ. हराशंखिनी संग हराशंख के जोतू. भाई कहै छथि जे तखन खनदान कोना बदलतै. हम कहै छी जे खनदान बदलक लेल एकटा निरीहक बध कतेक उचित. प्रख्यात गणितज्ञक आइ ई हाल नहि होइतनि जं सुशीला भेटितथिन्ह. मुदा एकर उल्टा सेहो ओतबे अधिक निंदनीय अछि। असंख्य सुशीला के हराशंख संगे बान्हल जाइछ। भाइ! ओइ सुशीला (अबला/ बाछी) के कसाई संगे जोतब कते अनुचित थिक!  कते  सुन्दर होइत जे दूनू चक्का एके रंग होइत। एहन व्यवस्था होइत त' परिवार स्वर्ग भ' जाइत। राम-सीता के एतेक नाम किऐक? तहिना राधा-कृष्ण, सावित्री-सत्यवान, गौरी-शंकर आदि के लिय’.   
बेसी बाजक लेल भद्राभद्र आ हराशंख-हराशंखिनी दूनू स’ छमाप्रार्थी.