Friday, June 26, 2020

श्रम

बुद्धि के तमने आ कोरने,
ज्ञान के हो बहुत उन्नति ।
नकल सँ अवरुद्ध हो बुधि,
नकलची के होइछ अवनति ।
तते ठेललक पोन, अपना-
पैर पर नहिं ठाढ़ भेलहुँ ।
विष्मरण चलबाक भ' गेल,
जखन बैसाखी ध' लेलहुँ ।।
स्वर्ण पिजड़ा भोज्य उत्तम,
मुफ्तखोरी तजि सकल नहिं ।
बिसरि गेल उड़नाइ, फूजल-
द्वार तैयो उड़ि सकल नहिं ।।
पीठ सुविधा केर चढ़िक'
गगन मे हम खूब उड़लहुँ ।
ईश दू टा पाँखि देलन्हि,
तहू के हमसब बिसरलहुँ ।।
तजी हमसब आश सिड़हिक,
धरब बैसाखी ने कर मे ।
रेस मे अपने सँ दौडब,
रहब आगाँ आब जग मे ।।
चाह नै खैरात के, नहिं
चाह पर सम्पत्ति के ।
चाह रोजगारेक, श्रमसँ
काटि लेब विपत्ति के ।।
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