Sunday, October 18, 2020

करमौली ग्राम गाथा :- 4

 अदौ काल सँ करमौली संस्कृतक गढ़ रहल अछि । सैयो बर्ख पूर्व सँ चलैत ऐ ठामक ब्रह्मचर्याश्रम हमर प्राचीन गुरुकुल परंपराक ध्वजवाहक रहल अछि । ऐ ठामक ब्रह्मचारी सब चतुर्दिक नाम कमेने छथि आ अपन प्रतिभाक झण्डा सबतरि फहरा चुकल छथि । एखनो ऐ विद्यालयक किछु ब्रह्मचारी जीवित छथि जिनका सँ इलाकाक लोकसब सबतरहक ज्ञान प्राप्त करैत छथि । ज्योत्षाचार्य पं0 भगीरथ झा आ पं राघवेंद्र झा ... एखन सबहक मार्गदर्शन करैत रहैत छथि ।

सरकारक संस्कृत शिक्षाक प्रति उदासीनताक कारणे ई विद्यालय मृतप्राय भ' चुकल अछि । ने एकोटा शिक्षक आ ने एकोटा विद्यार्थी! मात्र एकटा चतुर्थ श्रेणीक कर्मचारी बाँचल छथि । 

ऐ गामक संस्कृतक प्रकाण्ड विद्वान सब कोनो परिचयक मोहताज नै छथि । स्व0 श्रीलाल झा वैदिक, स्व0 पं0 राजकुमार झा, स्व0 डॉ0 मुनीश्वर झा, स्व0 पं0 आशेश्वर झा,स्व0 पं0 ताराकान्त झा, स्व0 पं0 मधुकांत झा, स्व0 पं0 शिवानन्द झा, स्व0 पं0 भारतेन्दु नाथ ठाकुर, स्व0 पं0 ब्रह्मानन्द ठाकुर, स्व0 पं नागेश्वर ठाकुर, स्व0 पं बुद्धिनाथ झा, स्व0 पं0 फेकन झा, स्व0 पं0 बच्चे ठाकुर, स्व0 पं0 लक्ष्मण झा, स्व0 वैदिक हरिश्चन्द्र मिश्र,...... आदि सम्पूर्ण प्रांत आ सम्पूर्ण देश मे नाम कमा चुकल छथि । धमियापट्टी निवासी श्रद्धेय गुरुजी पं0 जयमाधव ठाकुरक यैह कर्मभूमि छलनि । ओ ऐ विद्यालयक प्रधानाचार्य छलाह । इलाकाक हजारों हुनक शिष्यगण प्रकाण्ड पंडित सब छलाह । नरही ग्राम निवासी पं0 विद्यानंद झा हुनके शिष्य छलथिन्ह जे हुनकर अवकाशग्रहणक बाद ऐ विद्यालयक प्रधानाचार्य बनलाह । ओहो संत स्वभावक प्रकाण्ड विद्वान छलाह ।

गाम परहक दैनिक अनुभव

 लगभग एक बर्खसँ गाम पर छी । अवकाशग्रहण कएला सँ पूर्व गाम अबैत छलहुँ तँ दुइए-चारि दिन मे पड़ाइत छलहुँ, आब अबैत छी तँ कोनो हड़बड़ी नै रहैत अछि । तैं पछिलो बेर आयल छलहुँ तँ छ' मासक बादे जा सकल छलहुँ । गाम पर खूब नीक लगैत अछि ।हमरो सँ बेसी श्रीमतीजी के मोन लगैत छन्हि, हुनका टोल-पड़ोसक सब महिला सँ खूब गप्प-सप्प होइत छन्हि ।

ओना हमर बेसी समय स्वाध्याये मे बीतैत अछि मुदा साँझखन क' नियमित रूपें दुर्गामन्दिर पर जाइत छी । ओइठामक सत्संग अनुपम अछि आ मानसिक खोराक ओतहि प्राप्त होइत अछि । संग मे अनुज महेन्द्र सदिखन छाँह जेकाँ लक्ष्मण सदृश लागल रहैत अछि । हनुमानजीक चबुतरा पर पं0 भगीरथ झा, पं0 राघवेंद्र झा, पं0 सत्यनारायण झा, रत्नेश्वरजी, दयानंदजी, रामूजी, महेंद्र आ नित्यप्रति किछु-किछु नवागंतुकक सान्निध्य प्राप्त होइत अछि ।

ओइठाम प्रसिद्ध तीर्थस्थान, ऋषि-मुनि, आध्यात्मिक ग्रंथ, ज्ञान-विज्ञान सब पर चर्चा होइत अछि । ओ अमृतोपम चर्चा अन्यत्र दुर्लभ अछि ।

Thursday, September 10, 2020

स्व0 आनन्द ठाकुर, करमौली

 आइ मोन भ' रहल अछि जे करमौलीक सर्वकालीन मास्टर साहब स' अपने लोकनिक परिचय कराबी । हँ, श्रद्धेय स्व0 आनंद ठाकुर कोनो परिचयक मोहताज नहिं छथि । अगल-बगल के चारि-पाँच कोस तक के लोक सब हुनका सम्बन्ध मे जरूर किछु ने किछु प्रशंसाक शब्द कहता ।

बाल्यावस्थे स' हुनका एक आदर्श शिक्षक के रूप मे देखैत आबि रहल छी । हुनका देखैत देरी बच्चा सब मे हड़कम्प मचि जाइत छलैक, खासक' गोली-गोली, पाइ-पाइ खेलायबला के त' हाल जुनि पूछू ।

मुदा पड़ह'बला के अपार स्नेहक संग-संग पुरस्कारो भेटैत छलैक । हुनका सनक धीर-गंभीर-विद्वान् शिक्षक दुर्लभ अछि ।

ओ हिन्दी मे एमए छलाह । स्मरणशक्ति तते मजगूत जे विद्यापति, सूर, तुलसी, कबीर, भूषण, जायसी, निराला, दिनकर, महादेवी वर्मा, पंत, गुप्त, प्रसाद.....सब जीहे पर रहै छलथिन्ह ।

मूलरूप सँ ओ शिक्षक छलाह मुदा  हमरा सबहक सीनियर ग्रुपक ओ नेता सेहो छलाह । ओहि ग्रुप मे गरम मिजाजक आ विरोधी सोचबला बेसी लोक रहथिन्ह मुदा तैयो सबके सम्हारि क' ल' चलब' मे ओ असली मास्टर छलाह । आवश्यकतानुसारें कखनो लरम आ कखनो गरम भेनाइ कियो हुनका सँ सीखय ।

"बज्रादपि कठोराणि मृदूनि कुशुमादपि"क ओ मूर्तरूप छलाह । केहनो विपरीत स्थिति मे ओ अपना सिद्धान्त सँ डिग'बला नै छलाह । 


बियाहक किछुए दिनक बाद सँ पत्नी मानसिक रूपेँ अस्वस्थ रह' लगलथिन्ह । दोसर विवाहक लेल माता-पिता, परिवार, समाजक आग्रह/दबावक आगू नै झुकलाह आ अन्तिम समय तक एक पत्नीव्रतक पालन करैत रहलाह । पत्नीक बेमारीक कारण मास्टर साहब सदैव फिरिसान रहै छलाह मुदा मुँह पर कहियो सिकन नै देखलियनि । अन्दर मे ज्वालामुखी मुदा बाहर शीतल शान्त हिमालयक गाम्भीर्य ! पत्नीक बेमारीक प्रभाव आनुवंशिक रूपें हुनका दू टा पुत्र पर सेहो पड़ि गेलनि आ दू-दू टा जवान पुत्रक असामयिक निधन भ' गेलनि । लगभग बारह बर्ख पूरब पत्नी सेहो कतहु चलि गेलखिन्ह, कतबो खोज कएल गेल नहिं भेटलखिन्ह । ई बज्राघात सब मास्टर साहब के अंदर स' जर्जर क' देलक, मुदा तैयो बाहर स' आघातक चेन्ह किछुओ नहिं परिलक्षित होइत छल।

हुनका मुँह सँ कहियो कियो अमर्यादित शब्द नहिं सुनने हेतनि । शिष्टाचार कियो हुनका सँ सीखय ! पूर्ण झुकिक' वरीयता क्रम मे श्रेष्ठजन के बामा कर सँ बामा पैर आ दहिना कर सँ दहिना पैर स्पर्श करक तरीका हुनके सँ सीखने छलहुँ । तहिना जूनियर के खूब मोन सँ आशीर्वाद देब लोक हुनका सँ सीखि सकै छल ।


गामक कोनो पंचैती मे ओ अन्तिम निर्णायकक भूमिका मे रहैत छलाह । हुनकर निर्भीकता, तीक्ष्ण बुद्धि आ निष्पक्ष निर्णयक आगू सब नतमस्तक रहैत छलाह । बहुतो बेर एहनो देखल गेल जे अभियुक्त बहुत प्रभावशाली रहथि, तैयो हुनका विरुद्ध निर्णय कर' मे कनेको भय नहिं भेलनि । 

एक बेर दुर्गापूजा मे नाटकक रंगमंच पर गामक किछु उखपाती युवक नशापान क' क' उपद्रव क' देने छल । पाठशाला पर पंचायत भेल । दोषी युवक सब आशंकित छल जे वृहत आर्थिक दंड ने भेटि जाय । मुदा मास्टर साहब त' शिक्षक छलाह ने, हुनकर मुख्य उद्देश्य त' सुधार करबाक रहैत छल । सब दोषी के कान पकड़बा, गीता स्पर्श कराक' भविष्य मे नशापान आ उखपात नै करबाक सप्पत खुआक' मुक्त क' देल गेल । समस्त समाजक बीच एतबे दंड बहुत काज केलक । ओकर बादे सँ नशापान आ उखपात मे कमी आयब शुरू भ' गेल । आब त' सरकारे कानून बना देलक अछि जकरा हमसब मास्टर साहेबक 25 बर्ख पूर्ब कएल गेल बीजारोपणक वृक्ष मे परिणतिक रूप मे देखि सकैत छी ।


सम्पूर्ण गामक सुख-दुख मे ओ सक्रिय रूप सँ शरीक होइत छलाह । सब लोकक हालचाल नित्य लैत रहैत छलाह । कियो बेमार पड़ल वा ककरो कोनो आफति-बिपति भेलैक त' तन-मन-धन सँ मास्टर साहब हाज़िर ! कोनो सार्वजनिक काज मे मुख्य भूमिका मे रहैत छलाह । कतेको श्राद्ध/विवाह/उपनयन सब मे भण्डारगृहक दुरूह प्रभार मे हुनका देखलहुँ । 

दुर्गापूजा मे बेलनोती-बेलतोड़ी मे माताक पालकी मे एकटा स्थायी कहार ओ छलाह । दुर्गापूजा मे सांस्कृतिक कार्यक्रम मे हुनकर अग्रणी भूमिका रहैत छल । नाटकक मुख्य पात्रक किरदार वैह करैत छलाह । उगना नाटक मे विद्यापतिक ओ तेहन स्वाभाविक भूमिका केने छलाह जे एखन तक ओ नाटक लोक के याद छैक । करमौलीक नाटकक सूत्रधार हुनके कहक चाही, पता नहि हुनका सबस' पहिने कहियो नाटक भेलो छल कि नहि!


करमौली फुटबॉल टीमक ओ कप्तान छलाह । हुनका समयक टीम इलाका मे नामी छल । ततेक फुर्ती छलनि जे ओ सेंटर मे रहै छलाह । कतेको नामी टीम के हराक' करमौली टीम शील्ड जीति क' अनने छल । स्व0 महेशजी गोली, श्री अभिरामजी/श्री जयरामजी बैक, स्व0 पुरन्दरजी/श्री श्रीदेवजी फॉरवार्ड, मास्टर साहब सेंटर, श्री वंशीधरजी, श्री जीवानंदजी....आदि ओइ समयक इलाकाक नामी फुटबॉल प्लेयर छलाह । नरार, डीहटोल, बेलाही, लोहा..आदि कतेको नामी टीम के करमौली टीम हरेने छल । ओइ समय मे करमौली मे सेहो प्रत्येक साल टूर्नामेंट होइत छल आ इलाकाक लोक के बेरखन क' खूब मनोरंजन होइत छलैक ।


अहंकार तँ हुनका कनेकबो छू नै सकल छल । ओ जमीनक व्यक्ति छलाह । भोज-भात मे हुनका ऐंठ पात उठबैत पबितहुँ । बारी आ दरबज्जा के अपने हाथ सँ चमकेने रहैत छलाह । हुनका बारी मे आ दरबज्जा पर नेबो, अरड़नेबा, लताम, केरा, शरीफा, धाथरी, सुपारी, लीची, आम्रपाली आम, नारियल, शनिक गाछ...आदि आ विभिन्न तरहक साग-शब्जी भरल रहैत छल ।


बानरहाट (पश्चिम बंगाल) हुनक कर्मभूमि बनल । प्रारम्भ मे एकटा उच्च विद्यालय मे छलाह, बाद मे एकटा अपन विद्यालय खोलि लेलाह जाहि मे प्राचार्य सेहो छलाह । एखन हुनक बालक ओइ इस्कूल के चला रहल छथिन्ह । पश्चिम बंगाल मे शिक्षकक रूप मे हुनकर बड्ड नाम छल ।

जहिना समाज मे लोकप्रिय तहिना सर-कुटुम्ब सबस' बहुत लगाव छलनि । नोकरी काल मे पाँचो दिन लेल गाम अबैत छलाह त' कनेको काल लेल सब कुटुम्ब सबके भेट कइए अबैत छलाह ।


गाम जाइत छलहुँ त' निश्चित रूप सँ हुनकर दर्शन करैत छलहुँ । जते दिन गाम मे रहैत छलहुँ त' साँझुक पहर हुनक सान्निध्य जरूर प्राप्त करैत छलहुँ । श्री मंगनजी सदिखन हुनक साहचर्यक लाभ लैत रहैत छलाह आ हुनकर एकाकी जीवनक अनुजक रूप मे बड़का सम्बल छलाह । मंगनजी के हुनका सान्निध्य सँ जे किछु ज्ञान प्राप्त भेल होइन, मुदा एक बात निश्चित रूपें कहि सकैत छी जे मंगनजी हुनकर सबटा भार हल्लुक केने रहैत छलथिन्ह आ हुनक आयु 10 बर्ख बढ़ा देलथिन्ह ।


हुनका प्रस्थान केला स' करमौलीक भूमि एकटा विशिष्ट यशस्वी पुत्र स' रहित भ' गेली जकर पूर्ति असम्भव अछि । हमर त' अपार व्यक्तिगत क्षति भेल, हुनकर मार्गदर्शन आब नै भेटत ।


ओइ पुण्यात्मा के कोटि-कोटि नमन! अश्रुपूरित हार्दिक श्रद्धांजलि !!!!

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करमौली ग्राम गाथा :-3

                                                                            

गाम अबैत देरी मोन उत्फुल्ल भ’ उठैछ I बाल्यकालक संस्मरण मोन के जीवन्त क’ दैछ I दरबज्जा परहक बाबा पोखरि मे आ चौपारि परहक खबासक पोखरि मे घंटों हेलबाक आनंद एखनहुँ मोन मे ओहिना रचल-बसल अछि I दुनू पोखरि आ ककरियाहीक खत्ता मे जखन उजाहि उठैत छलैक तँ सगर गामक आबालवृद्ध माछ मारक लेल धमगज्जर केने रहैत छलाह I जूरसितलक सुअवसर पर ख़बासक पोखरि मे दुनू टोलक लोक पैसि एक-दोसरा पर जल फेकि जावत्काल तक हरदा नै बजबा लैत छलाह तावत्काल तक जान नहिं छोड़ैत छलाह I फेर जल सँ निकलि दुनू टोलक युवा लोकनिक बीच कुस्ती-कुस्ती होइत छल I बच्चा सबहक लेल ई अत्यधिक रोमांचक होइत छल I असली प्रतियोगिता जेकाँ बुझाइत छल I जल-प्रतियोगिता मे आँखि लाल-लाल भ’ जाइत छल I

कलम-गाछीक टाइल-पुल्ली, कबडी-कबडी, बुढ़िया-कबडी, चुनौती-कबडीक आनन्द वर्णनातीत अछि I पठशल्लाक फिल्ड मे साँझखनक गेंदक खेल नामी छल I बेसीकाल इलाका भरिक गामक फुटबॉल टीम टुर्नामेंट मे भाग लैत छल I ताहि समयक रोमान्च एखनो रोमांचित करैछ I नबाहक नौ दिनक रामधुन मे सम्पूर्ण गाम राममय रहैत छल I ब्रह्म आ डिहबार पूजाक अवसर पर सम्पूर्ण गाम आह्लादित रहैत छल I दुर्गापूजा तँ हमरा सबके अति विशेष उत्साह दैत छल I दसो दिन-राति हमसब पठशल्ले पर बितबैत छलहुँ I पूजाक आनंदक संग-संग गुरुजीक अमृतोपम सान्निध्य पाबि कृत-कृत्य रहैत छलहुँ I ---------

बाल्यकालक संस्मरण

 बाल्यकालक संस्मरण (1) :-

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अपने लोकनि के बाल्यकालक 

एकटा रोचक संस्मरण 

सुनयबाक मोन भ' रहल अछि । 

हम पहिला किलास मे पड़हैत रही । 

इस्कूल पहुँच' मे विलम्ब भ' जाइत छल आ 

प्रार्थना शुरू भ' जाइत छलैक । 

अगिला सीट 

पहिले पहुँच'बला छात्र सब 

छेकि लैत छल आ 

हमरा सबदिन पाछू बैस' पड़ैत छल । 

किलास दस बजे शुरू होइत छलैक । 

पाछू बैस' पड़य तैं मोन खिन्न रहैत छल । 

एक दिन हमरा मोन मे 

एकटा आइडिया आयल आ मोन प्रसन्न भ' गेल । 

अगिला दिन हम साते बजे भोरे जाक' 

सबसँ अगिला सीट पर चुपचाप 

अपन पाटी आ झोरी राखि देलहुँ आ 

ख़ुशी मोन सँ गाम पर आबि गेलहुँ । 

10 बजे मे प्रसन्न-मन सीधे 

प्रार्थना मे सम्मिलित भेलहुँ ।

खूब गदगद मोने 

प्रार्थना के बाद सीट पर जाइत छी तँ 

देखैत छी जे कोनो दोसर छात्र 

ओइ सीट पर बैसल अछि । 

हमर झोरी आ पाटी ओत' नै छल । 

हम ताक' लगलहुँ मुदा नै भेटल । 

आइ आर बेसी उदास मोने पाछुए बैस' पड़ल । 

कने कालक बाद 

अमात टोलक एकटा  सज्जन 

हमर झोला आ पाटी ल' क' पहुँचलाह आ 

वर्ग-शिक्षक दिस मुखातिब भेलाह-

" मास्टर साहब, 

आइ हम च'र सँ लौटैत छलहुँ तँ देखलहुँ जे 

काल्हि कोनो छात्रक झोरी-पाटी 

छुइट गेल छलनि, 

हम घर पर ल' क' चलि गेलहुँ 

जै सँ सुरक्षित रहि जाय ।  

जिनकर होइन तिनका द' दियौन ।"

मास्टर साहब-" ककर छौ, ल' जो ।"

हम मुँह बिधुएने एलहुँ आ 

एक छौंकी खाक' 

झोरा-पाटी ल' क' 

पछिला सीट पर जाक' बैसि गेलहुँ !!!!!☺️

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दुर्गापूजाक पुरना संस्मरण

 करमौली गाम मे दुर्गापूजा बर्ख 1966 सँ मनायल जा रहल अछि । एहिठामक विध-विधान सम्पूर्ण परोपट्टा मे अनुपम अछि । परम श्रद्धेय गुरुजी(स्व0 जय माधव ठाकुर)क पौरोहित्य मे सविध प्रारम्भ कएल गेल पूजाक परंपरा आइयो ओही प्रकारें मनायल जाइछ ।         

                          प्रारम्भ मे श्रद्धेय आनन्द सर(स्व0 आनंद ठाकुर)क नेतृत्व मे नाटक होइत छल । ओ सब उगना, बसात आदि नाटकक बड्ड नीक मंचन केलथि । तखन कमलजीक नेतृत्व मे बहुत रास नाटकक सफल मन्चन कएल गेल । हम सब कुहेस, भयंकर भूल, उगना, श्रवण कुमार, अभिमन्यु, शेरा डाकू, सत्य हरिश्चन्द्र, भर्तृहरि, छींक प्रहसन....आदि नाटकक/प्रहसनक उत्कृष्ट मन्चन कएलहुँ । ओ समय करमौली नाटकक युवा अवस्था छल जखन इलाका मे हमरा सबहक नाटकक खूब प्रशंसा भेल । 

बाद मे ओही परम्परा के श्री सुनीलजी सब बहुत दिन तक नीक जेकाँ चालू रखलाह, मुदा तकर बाद आर्केस्ट्रा युग प्रारम्भ भेल जे फेर नाटक के पनप' नहिं देलक । 

युवा वर्ग मे सम्भवतः ऊहि के सेहो अभाव भ' गेलैक ।

नाटकक माध्यम सँ जे सामाजिक बुराई सब पर चोट कएल जाइत छल ओ बड्ड प्रभाव छोड़ैत छल । कुहेसक आ छींकक दहेज प्रथा पर चोट बहुत बर्ख तक लोक के स्मरण रहलैक, हमरा सबके तँ आजीवन स्मरण रहत ।

ऐ बेरक करमौली दुर्गापूजाक अवसरक किछु चित्र :-

दुर्गापूजा(2019)

 काल्हि दुर्गापूजा समाप्त भेल । 

गाम मे ऐ बेर बेसी उत्साह आ जोश बुझायल । धूम-धाम, भीड़-भाड़ सेहो 

आन बेरक अपेक्षा बेसी बुझायल । 

बहुत रास कटु-मधुर विषयक 

प्रत्यक्ष अनुभव भेल आ 

बहुत रास बात सुनबा मे सेहो आयल ।

भगवती पूजन मे 

श्रद्धाभावक वृद्धि प्रशंसनीय अछि । 

पुरोहित, पुजेगरी, 

देवी भागवतक पठैत सहित 

दुर्गा पुस्तकक पठैत सबहक 

श्रम श्लाध्य छलनि । 

गुंजन एवं ओकरा ग्रूपक कीर्तन

बड्ड नीक लागल ।

गुंजनक गला मे वाणीक बास छन्हि,

आर विकास करथु,

कैसेट सब बनाबथु,

बहुत-बहुत शुभकामना 

आ आशीष ।

कमेटीक अध्यक्ष, सचिव, कोषाध्यक्ष 

एवं अन्य सहयोगीक परिश्रम 

बहुत प्रशंसनीय छलनि । 

हँ, प्रवचनकर्ताक अभाव 

कने जरूर खटकल ।

व्यवस्था मे व्यवधानक मादे

किछु बात सुनबा मे आयल 

जे बहुत अशोभनीय/निन्दनीय अछि । 

निशापूजाक रात्रि मे 

बलिप्रदानक संबंध मे 

प्रथम हमर बलिप्रदान हो, 

तै बात पर बहुत तकरारि सुनलहुँ । 

कमेटी द्वारा लेल गेल निर्णय 

सबके मान्य होमक चाही, 

किऐक तँ आमसभा द्वारा 

कमेटीक गठन होइछ । 

परम्परा वा लॉटरी जाहि विधि सँ 

कमेटी द्वारा जे कोनो निर्णय लेल जाय 

तकर अवहेलना सर्वथा अनुचित । 

सुन्दर व्यवस्था बनायब/

शांति बनाक' राखब सबहक 

कर्तव्य थिक ।


सांस्कृतिक कार्यक्रम मे सेहो

बहुत अमर्यादित बात सब सुनलहुँ । 

करमौली सनक आध्यात्मिक/

सांस्कृतिक रूपें समृद्ध गाम मे 

अश्लीलता परसनाइ सर्वथा अनुचित । 

ऐ ठामक लेल तँ किछु 

संस्कृत/मैथिली/हिन्दी मे 

आध्यात्मिक/शैक्षणिक नाटक/

वा अन्य कार्यक्रम हो तँ सर्वोत्तम !

जँ नाटक नै खेला सकैत छी तँ

एक सँ एक नामी मैथिली/हिन्दीक 

गायक/गायिका सबहक कार्यक्रम 

राखि सकैत छी । 

कीर्तनियाँ/प्रवचनकर्ता सबके सेहो 

राखल जा सकैछ ।

विद्वद्सम्मेलन/कवि सम्मेलन 

सेहो राखक प्रयास होमक चाही । 

तात्पर्य ई अछि जे ऐ गाम सँ 

आदर्शवादिताक सनेश प्रसारित हो 

जकर अनुकरण आनो गाम सब करय । 

बाहर मे गामक नाम बहुत अछि, 

तै मे आर वृद्धि होमक चाही ।

एकटा बात आर जे 

ध्वनि प्रदूषण कमसँ कम हो/

विसर्जनक काल 

पर्यावरणक प्रदूषण नै हो 

तहू पर हम सब खियाल राखी  ।


   "असत्य पर सत्यक विजय, 

अधर्म पर धर्मक विजय, 

नकारात्मकता पर सकारात्मकताक विजय, 

महिषासुर/रावण/कुंभकर्ण/मेघनाद...

रूपी अहंकारक नास करब 

दुर्गापूजाक मुख्य उद्देश्य थिक । 

तमोगुण पर सत्वगुणक विजय हो । 

हमरा अंदर मे जे काम, क्रोध, लोभ, 

मोह, अहंकार रूपी महिषासुर/

रावण साम्राज्य स्थापित केने अछि 

तकर नास क' क' 

सद्गुणक रामराज्य स्थापित हो, 

यैह पूजाक उद्देश्य अछि ।"

अही भावें पूजा करी, 

युवा वर्ग कें भगवती

सद्बुद्धि देथु ।

सब कियो

आपस मे भाइचारा बढाबी, 

श्रेष्ठ के आदर आ कनिष्ठ के स्नेह दी, 

स्वच्छता पर ध्यान दी, 

पर्यावरणक रक्षा करी 

तखनहिं दुर्गापूजाक 

सार्थकता सिद्ध होयत ।

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पं0 लक्ष्मण झा, करमौली

 परम श्रद्धेय ब्रह्मलीन पं0 लक्ष्मण झा आइ बहुत स्मरण आबि रहल छथि । ओ ऋषि परम्पराक प्रकाण्ड विद्वान् छलाह, संगहिं संग आधुनिकताक सेहो ध्वजवाहक छलाह । ओ व्याकरणाचार्य आ साहित्यक विद्वान् त' छलाहे, अंग्रेजी मे सेहो एम.ए. केने छलाह । यैह कारण छल जे ओ रूढिवादिता स' कोसो दूर छलाह । कतेको अवसर पर हमरा हुनकर प्रगतिवादी सोचक प्रत्यक्ष अनुभव भेल छल ।

एक बेर दुर्गापूजाक अवसर पर भसान ल' क' नवतुरिया आ प्रौढ़ सबहक बीच विभेद भ' गेलैक । विजायादशमी दिन नवतुरिया सब नाटकक आयोजन केने छल । ओ सब सोचैत छल जे मूर्तिक भसानक बाद उदासी आबि जाइत छैक तैं अगिला दिन भसान होमय । ई प्रस्ताव बुजुर्ग रूढ़िवादी लोकनि के नीक नै लगलनि । अगिला दिन भदवा पड़ैत छलैक तैं चटपट मे जल्दी स' भसान क' देल गेलैक । साँझखन बैसार मे पं0 लक्ष्मण झा नवतुरियाक पक्ष लैत बजलाह-" भगवती भदवा सब स' बहुत ऊपर छथि । जिनका सात टा वा ओइ स' बेसी सन्तान छन्हि हुनका लौकिको मे भदवा नै लगैत छन्हि, भगवतीक त' करोडों-करोड़ संतान छन्हि तँ भदवा कोना लगतन्हि ।"


एक बेर पाठशाला पर सहस्रचंडी महायज्ञक आयोजन भेल छलैक । गर्मीक मास छलैक, हवा सेहो तेज छलैक । यज्ञकुंड मे घीक आहुति मे जौ, तिल, अक्षत आदि पड़ि रहल छलैक, लुत्ती उड़लैक आ फूसक मण्डप मे आगि लागि गेलैक । 

लोकसब बहुत तरहक अफवाह, रूढ़िवादी अनिष्टक आशंका कर' लगलाह । पं0 लक्ष्मण झा माइक पकड़लाह- " अहाँ सब कनेको चिन्ता नहिं करू, आगिक स्वाभाविक प्रवृत्ति छैक जे अनुकूल वातावरण भेटला स' ओ अपन काज करबे करत । आगि मे घी, अक्षत, जौ, तिल आदिक आहुति आ हवाक तीव्र झोंका सँ स्वतः मंडप मे आगि लागि गेलैक अछि, कोनो आन बात जुनि सोचैत जाउ ।" 

सब कियो स्थिर भेलाह, आगि मिझायल, मण्डप के पुनर्निर्माण भेल, सकुशल यज्ञ सम्पन्न भेल ।


विकट स्थिति मे स्थिर भ' भीड़ के शान्त करक हुनका मे अद्भुत क्षमता छल । साधारणतया, संस्कृतक पण्डित सब मे स्वाभिमानक कमी आ लोभ अधिक परिलक्षित होइत अछि । ओ एकर अपवाद छलाह । लोभ त' साफे ने छलनि, दान-दक्षिणा लेबाक ओ बिल्कुल विरोधी छलाह । स्वाध्याय, अपन पूजा-पाठ मे लागल रहैत छलाह । पौरोहित्य मे हुनका रुचि नहिं छलनि । ककर मजाल जे हुनका मोनक विपरीत कियो हुनका कोनो काज करबा लेल बाध्य क' सकय । भू0पू0 विधान परिषद् अध्यक्ष स्व0 ताराकांत झा आयल छलाह । पं0 लक्ष्मण झा दुर्गामंदिर पर बैसल छलाह । लोकसब हुनका ताराकांतजीक ल'ग ल' जाय चाहलथि, मुदा ओ नहिंए गेलाह ।

हुनकर ई स्वाभिमान महाकवि निरालाक याद ताजा क' देलक । कवि-सम्मेलनक मंच पर निराला एक कोन मे बैसल छलाह । रामनगरक राजा मंच पर आबि रहल छथि । आयोजक आ समस्त कवि-मण्डली हुनका स्वागत मे लागल अछि मुदा निराला लेखे धनोधन सन, ओ अपना धुन मे मस्त ! अंत मे आयोजक राजा के निराला लग अनैत छथि । राजा आ निराला मे अभिवादन होइछ । आयोजक- " सरकार! ई महाकवि निराला छथि । निरालाजी! ई रामनगरक राजा साहब छथि "।

निराला-" अहाँ हिनकर की परिचय दैत छी ! हमर आ हिनकर सम्बन्ध सैकड़ों बर्ख पुरान अछि ।"

आयोजक, कवि-समूह आ राजा, निरालाजी दिस प्रश्नवाचक मुद्रा मे ताक' लगलाह ।

निराला-" हिनकर दादा के दादा के दादा, हमरा दादा के दादा के दादाक महफा उठबैत छलाह "।

हुनकर इशारा भूषण कवि दिस छल जिनकर पालकी मे राजा सब कनहा लगाक' हुनकर सम्मान बढ़बैत छलाह आ अपनो गौरवान्वित होइत छलाह ।


अखरकट्टू सब हुनका स' दूरे रहैत छल किऐक तँ ओ ओकर अशुद्धि के दस लोक मे उजागर क' दैत छलथिन्ह, ओ बेइज्जत भ' जाइत छल । तैं डींग हाँक'बला सबके ओ नै सोहाइत छलथिन्ह । ओना ओ मितभाषी छलाह मुदा उचित बात बाज' मे नहीं चुकैत छलाह । सत्य के पक्षधर आ निर्भीक छलाह । 

मुखिया चुनाव मे नॉमिनेशन मे समर्थन  लेल वैदिकजी हुनका ल' गेल छलथिन्ह । लौटिक' एलाह त' साँझ मे गप्पक क्रम मे कहलाह- " कमलजी, आइ तक हम जकर समर्थन केलिऐक अछि आ भोट देलिऐक अछि ओ हारबे केलक "। वैदिकजी सेहो सुनि रहल छलाह, ओ मुसका क' माथ पर हाथ देलाह । ओइ एलेक्शन मे ठीके वैदिकजीक जमानत जब्त भ' गेलनि ।


एक बेर सर्दी-खाँसी-बोखार भ' गेल छलनि । आराम भेला पर साँझखन दुर्गा मंदिर पर भेट भेलाह । हालचाल भेलाक बाद कहै छथि-

" एकटा तात्त्विक प्रत्यक्ष अनुभूत तथ्य कहैत छी- जते धर्म-कर्म-तपस्या-पूजा-पाठ करक हो स्वस्थे अवस्था मे क' ली, बेमार पड़ला पर नै होइछ । सात दिन तक कतबो ध्यान कर' चाहैत छलहुँ नै होइत छल, कुहर' मे नीक लागैत छल मुदा रामनाम मे नहिं । "

हुनकर तात्त्विक बात सुनि हँसी लागि गेल, कोनो छिपाव नै ।

एक दिन एकान्त मे बाजि उठलाह -

" एखन तक त' किछुओ अनुभूति नहिं भेल, तैयो लागल छी, बुढापा मे त' ट्रैक नहिने बदलि सकैत छी !"

             ऐ तरहक स्पष्ट सत्य वैह टा बाजि सकैत छलाह, बाँकी सब तँ तेना  बजताह जेना हुनका भगवानक दर्शन भ' गेल होन्हि ।

सार्वजनिक काज सब मे हुनकर बहुत योगदान रहैत छल । गामक दुर्गापूजा प्रारम्भ कर' मे हुनकर प्रमुख योगदान छल ।

हार्दिक श्रद्धांजलि !!!!!!

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डॉ0 मुनीश्वर झा

 💐💐💐मिथिलाक प्रकाण्ड विद्वान डॉ0 मुनीश्वर झाक देहावसान,05.11.2019💐💐💐

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काल्हि गामक(करमौली, मधुबनी) पाठशाला पर संध्याकाल बैसल रही । हनुमानजीक बगल बला चबुतरा पर हम, ज्यो0 श्री भगीरथ झा, ज्यो0 श्री राघवेंद्र झा, पं0 सत्यनारायण झा, श्री देवनाथ ठाकुर, श्री रत्नेश्वर जी, श्री दयानन्दजी, श्री महेंद्र, श्री भोलूजी... सब कियो आध्यात्मिक चर्चा मे लागल रही कि देवन काका बजलाह जे जयराम जी कहलाह अछि जे काल्हि (05.11.19)डॉ0 मुनीश्वर झा प्रस्थान क' गेलाह । फेर हमर छोटका समधि (हुनका ससुरक भातिज) सेहो ऐ बातक पुष्टि केलाह । कने कालक बाद हमर ज्येष्ठ पुत्र नीलूजी सेहो फोन क' क' ई दुःखद खबरि सुनौलाह । सब कियो सन्न रहि गेलहुँ । बुझायल जे करमौली भवनक बिचला खाम्ह आइ ध्वस्त भ' गेल । 

पोरकें साल सँ बेमार चलि रहल छलाह । 

अप्रैल '18 मे पारस अस्पताल, पटना मे भरती छलाह । देख' गेल रहियनि तँ बहुत गप्प-सप्प भेल छल । एते जल्दी प्रस्थान क' गेलाह से कनेकबो बिसवास नै भ' रहल अछि, मुदा ईश्वरक विधानक आगाँ ककरो नहिं चलैछ, जे जन्म लेने छथि हुनका एकदिन प्रस्थान करहे के छन्हि । परलोक प्रस्थानक काल ओ लगभग 96 बर्खक छलाह ।


डॉ0 मुनीश्वर झा विद्वत्ता मे मिथिलांचल/बिहार आ देश मे प्रथम पांक्तेय छलाह । हिनक जन्मस्थान करमौली ( कलुआही, मधुबनी ) छन्हि जे सौभाग्य स' हमरो जन्मस्थली छथि । ई संस्कृत, अंग्रेजी, मैथिली, हिंदी..आदि भाषाक प्रकांड विद्वान् छलाह । उपर्युक्त सब विषय मे स्नातकोत्तर परीक्षा मे प्रथम श्रेणी मे प्रथम स्थान प्राप्त केने छलाह ।

पेरिस विश्वविद्यालय सँ भाषा विज्ञान मे डी0 लिट्0 केने छलाह । भागलपुर विश्वविद्यालयक संस्कृत विभागाध्यक्ष, पश्चिम बंगाल सरकारक लोक शिक्षा निदेशक एवं शिक्षा सचिव, का0 सिं0 दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालयक कुलपति... आदि पद के सुशोभित क' चुकल छलाह । अगणित ग्रंथक रचना क' अपन लेखनकला स' माँ शारदाक अराधना खूब केने छलाह । हिनक पुस्तक सबके पढ़ला उपरांत हिनक गहन अध्ययन,चिन्तन आ अद्वितीय विद्वत्ताक बोध होइछ । ऐ अप्रतिम महा यसस्वी पुत्ररत्न के पाबि करमौली गाम धन्य भ' गेल ।


करमौली गामक प्रकाण्ड विद्वान पंडित राजकुमार झाक पाँच पुत्र मे ई सबसँ छोट छलाह । हिनकर ज्येष्ठ भ्राता स्व0 पण्डित ताराकान्त झा, स्व0 पं0 मधुकांत झा सब सेहो प्रकाण्ड विद्वान छलाह आ इलाका मे नामी छलाह । पं0 ताराकान्त झाक समक्ष तँ साधारण पण्डित सबहक बकार बन्द भ' जाइत छलनि ।

डा0 झा अपन पूर्व जन्मार्जित ज्ञान, पैतृक विरासत आ ऐ जन्मक कठोर साधनाक बल पर लीजेंडक श्रेणी मे आबि गेलाह । ओ पौरस्त्य आ पाश्चात्य, प्राचीन आ अर्वाचीन दुनू विधाक पारंगत छलाह ।


नामक अनुरूप मुनि स्वभाव, मितभाषी, अति सौम्य स्वभाव, हरदम अध्ययन-चिन्तन-मनन मे तल्लीन, सत्यवादी, ईमानदार, परम जिज्ञासु डॉ0 झा जखन गाम अबैत छलाह तँ सबहक हाल-चाल जरूर पुछैत छलाह । हुनका प्रति श्रद्धा राख'बला लोक सब हुनक दर्शनार्थ तुरत जुटि जाइत छलाह ।

तते सहज सरल आ नम्र जे पिताजी कहैत छलाह जे एक दिन बाध मे भेटि गेलाह तँ हमरा माथ परहक बोझ जबर्दस्ती अपना माथ पर ल' लेलाह । हाट पर किछु तरकारी वा अन्य वस्तु कीनैत छलाह तँ समांग आ परम मित्र पं0 बुद्धी बाबू आ ओ दुनू पकड़ने-पकड़ने घर तक जाइत छलाह ।


किछु बर्ख पूर्व हम, मंगनजी आ स्व0 आनन्द मास्टर साहब हुनकर आगमन सुनि हुनका दरबज्जा पर गेल छलहुँ । ओ कोनो पुस्तक लीखि रहल छलाह । एकसरे छलाह, बहुत काल गप्प भेलाक बाद चारू गोटे आनन्द सरक आग्रह पर हुनका दरबज्जा पर चाह पीबाक निमित्ते पहुँचलहुँ । ओ चाह-पानक बड्ड शौकीन छलाह । चाह-पान होइत रहलैक आ बहुत रास गप्प-सप्प सेहो चलैत रहलैक । हम पूछि देलियनि-" सर, अपनेक मुख सँ किछु आत्मबोध सुनबाक इच्छा भ' रहल अछि" । ओ शिव-मानस पूजाक एकटा श्लोक "आत्मा त्वं गिरिजा मतिः ....शम्भो तवाराधनम्" सुना देलाह । ज्ञानक आदि देवक प्रति हुनक समर्पण देखि ग्यानार्जनक हुनक रहस्यक पता चलि गेल । करीब दू घंटा हमसब गप्प करैत रहलहुँ, ततेक आनंदमग्न छलहुँ जे समय कोना बीतल पतो नहिं चलल । बूझि पड़ैछ जे काल्हुक बात होइक । उठैत काल प्रणाम केलियनि तँ माथ ठोकि बहुत आशीष दैत बजलाह-" जुग-जुग जीबू, खूब पढू, गामक नाम रौशन करू । बहुत दिनक बाद अहाँ सबसँ गप्प क' क' गाम पर एतेक आनंद आयल" । 


2016 के दिसम्बर मास मे अपन सबसँ छोट पुत्र आयु0 विमलजीक वियाहक अवसर पर कार्ड देब' गेल छलियनि, बहुत प्रसन्न भेलाह, सबटा घर घुमाक' माता-पिताक फोटो देखाक' कहलाह-" बौआ! एखन हमर पूजा-पाठ एतबे होइछ जे भोरे उठिक' माता-पिता के पुष्पांजलि अर्पण करैत छी" । जे माता-पिताक आशीर्वाद प्राप्त करैत रहत ओकरा अनायासे सब ज्ञान प्राप्त भ' जाइछ, माता-पिता प्रथम गुरु छथि ।


चाह पी क' विदा भेलहुँ तँ अपन लिखल दू गोट पुस्तक हस्ताक्षर क' क' देलथि जे आजीवन हुनक स्मरण दिय'बैत रहत । ओतेक वृद्ध रहितो, खान-पान मे अत्यन्त परहेज रखितो, वियाह दिन वर-वधू के आशीष देबाक लेल हुनकर उपस्थिति सँ कृतार्थ भ' गेलहुँ । आशीष मे किछु द्रव्यक संग एकटा पुस्तक सेहो देलखिन्ह । अतिथिगृह मे किछु विशिष्ट बरियाती सब कुर्सी पर बैसल छलाह आ ग्रामीण सब दरी-चद्दरि-मसलंग पर छलाह । कुर्सी पर नहिं बैसि ग्रामीण सबहक बीच मे जाक' बैसलाह आ सबसँ खूब गप्प-सप्प केलाह । हुनकर ई व्यवहार ग्रामीण माटि-पानि सँ जुड़ल रहबाक,गाम आ गामक लोक सबहक प्रति अनन्य प्रेमक अन्यतम निदर्शन थिक ।


ओ माता-पिता धन्य छथि जिनका कोखि मे एहन यसस्वी पुत्रक आगमन भेल आ गाम, प्रान्त आ देश के गौरवान्वित केलक । हुनक क्षतिपूर्ति असम्भव अछि ।


हुनका परिवार मे पत्नी, दू पुत्र आ दू पुत्री छथिन्ह । ज्येष्ठ पुत्र कोलकाता मे डाक्टर, छोट इंजीनियर आ दुनू पुत्री सेहो विद्वान छथिन्ह । जेठका जमाय NMCH, पटना मे नामी डाक्टर छथिन्ह । छोटका पुत्र श्री राजकमल झा आइ.आइ.टी. खरगपुर सँ यांत्रिक अभियन्त्रण क' क' अमेरिका सँ पत्रकारिता मे डिग्री लेने छथिन्ह आ सम्प्रति इंडियन एक्सप्रेस के संपादक-प्रमुख छथिन्ह आ बहुत रास नीक-नीक पुस्तक लीखि रहल छथिन्ह, किछु पुस्तक पर नीक-नीक पुरस्कार सेहो (बुकर एवॉर्ड लेल चयनित) भेटल छन्हि ।


भगवान सँ प्रार्थना जे डॉक्टर झाक आत्मा के शांति प्रदान करथु आ परिवारक सदस्य सबके धैर्य धारण करबाक शक्ति देथु ।

💐💐💐💐हार्दिक अश्रुपूरित विनम्र श्रद्धांजलि!!!!💐💐💐💐

बाल्यकाल घुरि आउ हमर

 हे बाल्यकाल! घुरि आउ हमर,

हे बाल्यकाल! घुरि आउ हमर ।।


नै रौद-बसातक भय कनियो,

बरखा-अछार-फानल-कूदल,

तितली पकड़क लेल दौड़-धूप,

दोस्तक सङ् मे हुड़दंग मचल ।


हे बाल्यकाल! घुरि आउ हमर,

हे बाल्यकाल..........।।


तुरतहिं झगड़ा आ प्रेम तुरत,

नै मोन मे कोनो बात टिकल,

किछुओ चिन्ता ने फिकिर कथुक,

मित्रक झुंडे छल स्वर्ग जकर ।


हे बाल्यकाल! घुरि आउ हमर,

हे.......।।


कबडी-कबडी आ टाइल-पुली,

लुक्का-छिप्पी गोटरस-गोटरस,

पोखरि-झाँखुर सौँसे रपटल,

गुड्डी-बाजी मे सतत रमल ।


हे बाल्यकाल! घुरि आउ हमर,

हे..........।।


ने बैर-द्वेष के नामो छल,

ने जाति-धर्म के भानो छल,

ने नीक-बेजायक ज्ञानो छल,

सब दोस्ते जग मे सगरो छल ।


हे बाल्यकाल ! घुरि आउ हमर,

हे.............।।


खिस्सा नानी-नानाक सूनि,

सपना के राजकुमार बनल,

मायक कोरा स्वर्गोपरि छल,

ओकरे सँ रूसब-बौंसब छल ।


हे बाल्यकाल! घुरि आउ हमर,

हे...............।।


लूडो-लूडो कैरम-गोटी,

गेंदक पाछू बेहाल रहल,

कागत के नौका मे डूबल,

खएबा-पीबा के सुधि बिसरल ।


हे बाल्यकाल! घुरि आउ हमर,

हे.........।।


बाड़िक-केरा-बड़हर-लताम,

खीरा नेबो पर सब लुधकल,

कतबो बाबी-काकी बाजलि,

सब आइन बिसरि कए टूटि पड़ल ।


हे बाल्यकाल! घुरि आउ हमर,

हे बाल्यकाल! घुरि आउ हमर !!!

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बड़का भैया(स्व0 तेज नारायण झा)

 आइ हमर बड़का भैयाक दोसर बर्खी छन्हि । पाँच भाइ आ एक बहीन मे सबसँ जेठ छलाह । तेसर साल औझके दिन 6:05 बजे प्रातःकाल ओ ऐ असार संसार के त्यागि परम धाम क' प्रस्थान क' गेल छलाह । सब दायित्व सँ मुक्त भ' गेल छलाह, बल्कि प्रपौत्र-प्रपौत्री सबके सेहो नीकसँ देखि लेने छलाह । ऐ दृष्टि सँ लौकिकता मे सीधे स्वर्गक अधिकारी बनि गेल छलाह, कहबी छैक जे प्रपौत्र-प्रपौत्री के मुख देखि लेने लोक स्वर्ग जेबे करय । 

लगभग सालभरि सँ ओछाओन धेने छलाह । यद्यपि हुनका लेल नीके भेलनि जे कष्ट सँ मुक्ति भेटि गेलनि, मुदा हमरा सबके बड़का क्षति भेल । परिवार/समाज के सतत मार्गदर्शन कर'बला हुनकर अनुभवक अमूल्य धरोहर समाप्त भ' गेल ।

हमरा लेल जे व्यक्तिगत क्षति भेल तकर पूर्ति आब ऐ जिनगी मे नै भ' सकैछ । 

गाम जाइत देरी पूरा इलाकाक समाचार एके छन मे भैया सँ प्राप्त भ' जाइत छल । हमरा देखैत देरी हुनका आँखि मे जे आन्तरिक प्रसन्नता देखाइत छल से वर्णनातीत अछि । 


हुनक लोकप्रियता अप्रतिम छल ।

भैया दरबज्जा पर एकटा कोठली मे रहैत छलाह । ब्रह्ममुहूर्त मे ऊठिक' नित्यक्रिया सँ निवृत्त भ' कोठलीक आगाँ मे राखल चौकी पर आबिक' बैसि जाइत छलाह । ओइ रस्ते जे कियो गुजरैत छलाह सबहक हालचाल पुछिते टा छलाह । तमाकुल बिना खुएने नै जाय दैत छलाह । विशिष्ट लोक सबके चाह जरूर पिय'बैत छलाह । 


भैया धनबाद मे रेलवे मे नोकरीे करैत छलाह । तै समय के एकटा बात याद आबि रहल अछि जे लोक के अपना घर मे चाह बनाक' पीबाक प्रचलन कम छलैक, लोक चौके पर चाह पीबैत छल । दुइये-तीन टा दोकान छलैक, मुदा चाह इलाका मे नामी ! भोर-साँझ लोक सब के बैसार ओत्तहि रहैत छलैक । भैया जहिया-जहिया गाम अबैत छलाह तँ भोरे चौक पर चलि जाइत छलाह । चाहक दोकान पर जतेक लोक रहैत छलाह सबके चाह पिय'बैत छलाह । दस बजे तक दुर्गामंदिर पर बच्चा-जबान-बूढ़ सबसँ गप्प-सप्प करैत रहैत छलाह । फेर साँझखन आठ बजे तक पाठशाला पर गप्प करैत रहैत छलाह ।  

पहिले गाम-घर मे जमीन-जायदादक बेसी झगड़ा-झाँटी होइत रहैत छलैक ।  भैया जावत्काल गाम पर रहैत छलाह दौड़िक' छोड़ाब' चलि जाइत छलाह, आ झगड़ा-छोड़ाक' फैसला सेहो क' दैत छलाह ।

भैया के घटकैती मे बड्ड मोन लागैत छलनि । हुनकर घटकैती बड्ड मैचिंग होइत छलनि । गामक कतेको बालक-बालिका के बियाह करेने हेताह । 

सार्वजनिक काज मे आगाँ बढ़ि-चढ़िक' भाग लैत छलाह ।

ओ बहिर्मुखी प्रतिभाक धनीक छलाह । तैं सभा-रोशन छलाह । ओ चुप-चाप कखनो नहिं बैसि सकैत छलाह । 


ओ आधुनिकता आ प्राचीनता दुनूक संगम छलाह । संस्कृतक श्लोक, वेदक ऋचा, पौराणिक खिस्सा-पिहानी सब बहुत याद छलनि आ भोर-सँ साँझ तक सबके सुन'बैत रहैत छलाह ।

कनिकबो अहंकार नै छलनि मुदा स्वाभिमानक भंडार छलाह । कर-कुटुम्ब निमाह' मे आगू छलाह ।

भोज-भात मे बड्ड मोन लागैत छलनि ।  ककरो घर मे कोनो काज-तिहार-उपनयन-बियाह-श्राद्धकर्म होउक, सबसँ पहिले हाज़िर रहैत छलाह ।

ओ सब ग्रुप मे लोकप्रिय छलाह ।

चरबाह, किसान, युवा, पंडित-समाज सबलोकक प्रिय छलाह ।

नम्रता ततेक छलनि जे जाहि श्रेष्ठ व्यक्ति सबसँ नित्यप्रति भेट होइत रहैत छलनि ओहो जँ दरबज्जा पर आबि जाइत छलथिन्ह तँ पैरे छूबिए क' प्रणाम करैत छलाह । गाम मे जँ किनको बाड़ी मे नेबो रहैत छलनि तँ लेब' मे कनेकबो संकोच नहिं ।

एकबेर श्रद्धेय स्व0 आनंद मास्टर साहेबक दरबज्जा पर बैसल छलहुँ । भैया हुनका मायक हाथक तरलाहा तिलकोरक चर्चा चला देलखिन्ह- " नवकनियाँ सबके तिलकोर तर' नहिं अबैत छन्हि, गाम भरि मे मास्टर साहेबक मायक हाथक तिलकर नामी अछि, एहन कियो नहिं तरि सकैछ ।" हमसब गप्प कइए रहल छलहुँ कि बड़का थार मे तिलकोरक तरुआ आबि गेल । ठीके ओकर विशिष्ट स्वाद छलैक, स्नेहक नोनगर मिस्री जे घोरल छलैक!!

भैयाक संग गप्प करैत कोना दिन बीति जाइत छल, पतो नहिं चलैत छल ।

ओ अजातशत्रु छलाह । हुनक लोकप्रियता अनुपम छल । एकर प्रमाण यैह थिक जे हुनका दाह-संस्कार मे आबालवृद्ध सबकियो जुटल छल । श्राद्धकर्म मे श्राद्धस्थली मे पण्डितगणक वेदपाठ आ पुराणवाचन स्मरणीय छल ।


भैयाक प्रस्थान केला सँ भेल रिक्तिक पूर्ति असम्भव अछि ।

अश्रुपूरित शत-शत नमन !!!!

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तेसर सालक लीखल किछु अंश

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श्रद्धेय भैयाक (स्व0 तेज नारायण झाक) किछु संस्मरण:-

भैयाक जन्म 1934 ई0 मे भेल छलनि, तिथि नै बूझल अछि । पुण्यतिथि 12 दिसम्बर, पौष, कृष्णपक्ष, दशमी, मंगल, 6:05 प्रातःकाल । हमरा पाँच भाइ एक बहीन मे सबस' ज्येष्ठ छलाह । 

विद्यापति ब्रह्मचर्याश्रम के ब्रह्मचारीक रूप मे पढाई शुरू केलनि । नामक अनुरूपे पढ़ाइ मे बड्ड तेज छलाह । ब्रह्मचर्याश्रमक गुरूजी श्रद्धेय स्व0 जय माधव ठाकुर अपन ऐ छात्रक मेधाक वर्णन करैत नै अघाइत छलाह । कतेको ठाम यज्ञ वा सार्वजनिक वाद-विवाद मे औव्वल आयल छलाह । 

हमर पितिऔत स्व0 खड्गनाथ झा ताहि समय मे आसनसोल मे रेलवे मे नौकरी करैत छलाह । हुनका संपर्क मे आबि एक दिन चुपचाप आसनसोल भागि गेलाह । ओतहि थोड़े दिन टीशन पर ए0एच0 व्हीलर एंड कंपनी के पुस्तक दोकान मे नोकरी केलनि, तत्पश्चात् एकटा पदाधिकारी के संपर्क मे अयला संताँ धनबाद रेलवे मे फायरमैनक रूप मे काज कर' लगलाह । ओकर बाद ओतहि पदोन्नति पाबि ड्राइभर बनलाह आ मालगाड़ी/मेल-एक्सप्रेस/राजधानी मे नोकरी करैत बर्ख 1995 ई0 मे अवकाश ग्रहण केलाह । नोकरी करैत काल अपना संवर्ग मे प्रथम अबैत छलाह आ ट्रेड-यूनियन के सचिव सेहो छलाह ।

हुनकर विवाह सप्ता तूनी मिश्र टोल मे सुख्यात स्व0 भरण मिश्रक द्वितीय पुत्री स्व0 देवता झा सँ भेलनि । दू पुत्र- नवलजी, युगलजी; तीन पुत्री- रीता, मीनू, बब्लू आ चारि पौत्र- गुँजन, चन्दन, कुंदन, लाला; दू पौत्री, 6 दौहित्र, दू दौहित्री, 3 प्रपौत्र, एक प्रपौत्री.....पूर्ण भरल-पुरल परिवार । भौजी के दमा के बिमारी छलनि, ओ बर्ख 1999 ई0 मे स्वर्गवासी भ' गेली ।

अवकाश ग्रहणक बाद गामे(करमौली) मे रह' लगलाह ।

हमरा लेल अत्यधिक प्रसन्नताक बात भेल जे गाम जहिया अबैत छलहुँ त सम्पूर्ण इलाकाक हाल-चाल किछुए मिनट मे भेटि जाइत छल । जहिया धरि रहैत छलहुँ त' भइएक संग गप-सप, टहलबा-बुलबा मे बितैत छल । हुनका बहुत स्तोत्र, वेदक ऋचा कंठस्थ छलनि । नित्य-प्रति भोर-साँझ पाठशाला पर दुर्गा-मंदिर जाइत छलाह, साँझुक पंडित सबहक ग्रुपक स्थायी सदस्य छलाह- लगभग दू घंटा प्रतिदिन शिव महिम्न स्तोत्र, दुर्गा चतुर्थ अध्याय, नागेन्द्र हाराय, वाराणसी पुरपतिं, न मन्त्रं नो यन्त्रं, स्वस्ति मन्त्र-वेद पाठ ....... इत्यादि अनेकानेक अन्य श्लोकक सामुहिक पाठ स' सम्पूर्ण परिसर गुंजायमान रहैत छल आ रोड पर चलैत बाट-बटोही/पाहुन-परख के आकर्षित करैत छल- आन गाम गेला पर ओत' के लोक सबहक मुख स' गामक ऐ पाठक प्रशंसा सूनि मोन आह्लादित भ' जाइत छल । साँझुक ऐ ग्रुप मे स्व0 लक्ष्मण झा, पं0 भगीरथ झा, पं0 राघवेंद्र झा, स्व0 हरिश्चंद्र मिश्र, स्व0 वैदिक  अभय कान्त झा, स्व0 वैद्यनाथ झा, स्व0 तेज नारायण झा, पं0 सत्य नारायण झा ....... इत्यादि अनेकानेक गणमान्य व्यक्ति सब स्थायी रूप स' रहैत छलाह- एखनहु दुर्गामंदिरक पश्चिम मंडप पर पं0 भगीरथ झा, पं0 राघवेंद्र झा, पं0 सत्यनारायण झा, श्री दयानंद जी भलनी, श्री लत्तर जी, श्री रामू जी,.....इत्यादि पूर्वक परम्परा के चालू राखि गामक नाम के सार्थक क' रहल छथि ।

                          भैया अजातशत्रु छलाह । बच्चा स' बूढ़ तक सबस' प्रेम राख'बला, सब वर्ग मे अत्यधिक लोकप्रिय छलाह । ओ नन स्टॉप भरिदिन बाजि सकैत छलाह/ बजितो छलाह । हुनकर घटकैती बड्ड सटीक होइत छलनि । गामक कतेको बालक-बालिकाक विवाह मे हुनकर योगदान अछि । 

                      एक्स्ट्रोभर्टक ओ मूर्तरूप छलाह, हमरा सनक इंट्रोभर्ट के लेल ओ माउथपीस छलाह । वहिर्मुखताक कारण ओ सभाक रोशन छलाह । अहंकार विल्कुल नहिं, आगाँ बढ़िक' बात शुरू केनाइ/परिचय केनाइ कियो हुनका स' सीखय । उचित बात नीक/मिट्ठ शब्द मे कहि देनाइ कियो हुनका स' सीखय । हुनक लोकप्रियताक उदाहरण यैह अछि जे दाह-संस्कार मे सम्पूर्ण गामक आबालबृद्ध पहुँचल छल ।

हम तीन मास स' गाम पर छी, प्रतिदिन हुनका गीता आ गजेंद्रमोक्ष सुनबैत छलियनि, आइ विल्कुल शून्य/रिक्ति अनुभव क' रहल छी । आब गाम आयब त' एसगर समय बिताब' पड़त, भैयाक अतुल वचन स' बंचित रहि जायब ।

हमर कोटि-कोटि श्रद्धांजलि! भगवान हुनका आत्मा के शान्ति प्रदान करथु ।

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डोकहर भगवती स्थान

 गामक दक्षिण मे एक कोस पर छथि दुःखहर(डोकहर) स्थान । ऐ ठाम गौरीशंकरक अर्धनारीश्वर रूप छन्हि । बगले मे स्थित कुण्ड मे सँ निकलल छथि । सब भक्त लोकनिक मनोकामना पूर्ण करैत छथिन्ह ।

हमरा इलाकाक ई प्रमुख देवस्थान छथि । इलाकाक आबालवृद्ध ऐ ठाम प्रत्येक रवि आ सोम क' पूजनार्थ जुटैत छथि आ श्रद्धासुमन अर्पित करैत छथि । विशेष अवसर जेना शिवरात्रि, मकर, दशमी, एक जनवरी.. आदिक समय मे ऐ ठाम बड़का मेला लगैत अछि । बाल्यकाले सँ हमसब ऐ ठाम आबैत छी । संभवतः मायक कोरे मे छल हएब तहिए सँ ऐ ठाम आबि रहल छी ।

ई मंदिर कहिया बनल से स्पष्ट रूप सँ लोक के नै बूझल छन्हि । संभवतः दरभंगा राज द्वारा निर्माण कएल गेल अछि । मन्दिरक मुख्यद्वार पर पाली/ब्राह्मी लिपि मे किछु लीखल अछि जे बोधगम्य नहिं भ' रहल अछि । शोध करबाक विषय अछि ।

डॉ0 सीताराम झा 'श्याम' ऐ क्षेत्र पर बहुत शोध केने छथि । चन्द्रभागा आ सुमंगा नदीक संगमतट पर मंदिर अवस्थित अछि । दु:खहर स्थान के डोकहर सेहो कहल जाइछ, कालान्तर मे नाम परिवर्तन असामान्य नहिं थिक ।

ऐ बेर सौभाग्यवश एक जनवरी क' गामे पर छलहुँ तँ डोकहर भगवतीक दर्शनार्थ पहुँचि अपना के कृतार्थ कएल ।

ऐ अवसर पर खीचल किछु चित्र अपने लोकनिक दर्शनार्थ द' रहल छी । ई स्थान बहुत जाग्रत छथि आ भक्तिभाव आ श्रद्धापूर्वक कएल गेल प्रार्थना अवश्य स्वीकार होइछ ।

गौरीशंकर सबहक मनोरथ पूर करथु!!!

Wednesday, September 2, 2020

लिलसा

 ईश सँ हम सब सतत

किछु ने किछु मंगिते रहै छी,

लोभ मोहे काम अर्थक,

याचना करिते रहै छी ।

ज्ञान आ भक्तिक कियो ने 

मोन मे राखैछ लिलसा,

सांसारिकतेक सदिखन 

कामना करिते रहै छी ।।


मोन होइ अछि एकटा

परयोग मिलिजुलिक' करी,

दीन-दुखिया के खबरि सब

लेल घुमिघुमिक'  करी ।

काज सबठाँ दबाइए सँ 

नहि सतत चलैत अछि,

शुभचिंतकक खोज कखनो

रामबाण बनैत अछि ।।


एखन तक तँ सतत हमसब

ईष्ट सँ याचल स्वयं लेल,

मोन होइ अछि आइ एकटा

वस्तु नवका माँगि ली ।

जगत मे सबक्यो सुखी आ

निरुज सब सदिखन रहय,

सकल जगतक दुःख-क्लेशे 

अपन खातिर माँगि ली !!

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Tuesday, September 1, 2020

पति-पत्नी

 दक्ष छथि गृहकार्य मे आ

नीक सँ घर के सजाबथि ।

शिशुक पालन खूब उत्तम,

स्वादयुत भोजन बनाबथि ।।


अतिथि सेवा मे निपुण आ

कुशलतें घर के चलाबथि ।

सुशीला छथि जनिक घरनी,

भाग्यशाली से कहाबथि ।।


भले हो समृद्धि, भार्या-

हराशंखी रहथि जैठाँ ।

भरल कलहे रहय सदिखन,

नर्क के हो बास तैठाँ ।।


प्रेममय व्यवहार, वाणी-

मधुर गृहिणी जनिक घरमे ।

ततय कटुता टिकि सकत नहि,

दृश्य स्वर्गक तनिक घर मे ।।


पतिव्रता पति-परायणा

पति छोड़ि जे अनका ने सोचथि ।

पतिक से अनुगामिनी,

पतिए तनिक सर्वस्व होबथि ।।


बजय थोपड़ी दुनू हाथे,

एक पत्नीव्रत हो पतिओ ।

मातृवत पर नारि, भार्या-

के ने दुख क्यो देथु कहिओ ।।


गृहस्थाश्रम शकट के

चक्काके मजगुत खूब राखू ।

जगत प्रगतिक रेस मे

तखनहि अहाँ रहि सकब आगू ।।


जतय माता जानकी सम,

पिता होयत राम सम ।

ततय किछु संदेह नहि जे

लव-कुशक होयत जनम ।।

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Thursday, August 6, 2020

ओकाइत मे रही

ओकाइत जकरा होइ जतबे,
काज समुचित तकरा लेल ततबे ।
पैर ततबे पसारब नीक होअय,
जतबे नमगर अहाँक चद्दरि रहय ।।
" रहय त' ठाँव क' क' पाबी,
नै रहय तँ पबितो जाइ पड़ैतो जाइ ।। "
अनकर ने सेहंता आ ने देखाउँस करी,
जमीने पर सदिखन रही, हवा मे नै उड़ी ।।
कथमपि उचित नहि प्रतिष्ठे प्राण गमायब ।
वाह्याडम्बर अहाँके रसातल मे पहुँचायत ।।
गाछ चढ़ाक' छ' मार'बला बहुत भेटैछ,
असल रस्ता देखाब'बला बड्ड कम रहैछ ।।
उकड़ू भ' गेला पर अपने सम्हार' पड़ैछ,
बेगरता पड़ला पर कियो ने मदति लै अबैछ ।।
सुख मे अनन्त संगी-साथी भेटि जाइछ,
दुःखक घड़ी मे सब दूर-दूर भागि जाइछ ।।
जे अहाँके नीक लागैछ सुखमे सरीक होयत,
अहाँ जकरा नीक लागी सुखमे नहियो आयत ।।
ओ देखाबक आडम्बर नहि क' सकै अछि,
दुःख मे मुदा ओ अहाँके छोड़ि नै सकै अछि ।।
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Thursday, July 16, 2020

नाटकक पात्र

नाटकक छी पात्र सब,
कार्य पात्रे सम रहय ।
होथि ने मोहित कियो,
भाव पात्रे सम रहय।।
भाव पात्रे सम रहय,
मुदा नै भ' पबैत अछि ।
मोह-माया सँ ग्रसित,
मन अवग्रहित रहैत अछि ।।
पात्र जाधरि मंच पर,
ऐक्टिंग करै अछि नाटकक ।
मूल नै बिसरैत अछि,
छै भेष-भूषा नाटकक ।।
कियो अछि नारी बनल,
तँ पुरुष रूपें अछि कियो ।
एक आबय मंच पर तँ,
मंच सँ भागय कियो ।।
मंच सँ भागय कियो,
एक्केक बहु किरदार अछि ।
खन कियो पंडित बनल,
खनमे कियो अवतार अछि ।।
जीवनो हो तही सम,
बेटी बहिन माता कियो ।
कियो बेटा बाप बाबा,
बनल अछि भ्राता कियो ।।
नाटकक सब पात्र कहियो,
असलमे आकुल ने होबय ।
मंच पर हो जदपि विह्वल,
असलमे ब्याकुल ने होबय ।।
असलमे ब्याकुल ने होबय,
पंक बिच पंकज हो जहिना ।
जगक सब व्यवहारमे तँ,
एतहु ज्ञानी रहथि तहिना ।।
मूल नै बिसरी, जगत-
मंच थिक मात्र नाटकक ।
रहू सब निर्लिप्त, सोचू-
सब छी पात्र नाटकक ।।
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Monday, July 6, 2020

गुरु

"गुरु-पूर्णिमा पर सद्गुरुक चरणमे समर्पित" :-
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लभल विद्या गुरुक सेवें,
मूर्त सद्यः होइत देखल ।
मंदबुद्धिक छात्र के हम
महापंडित होइत देखल ।।
महापंडित होइत देखल,
घोंखि जड़मतियो सुजान ।
रज्जु घर्षण होइत रहने,
पाथरो पर हो निसान ।।
माइट केहनो ठोकि-पिटिक',
मूर्ति सुन्दरतम बनल ।
जन्मसँ मतिमंद रहितो,
गुरु कृपें विद्या लभल ।।
भेलहुँ ज्योतित गुरुक डिबिएँ,
तिमिर अज्ञानक हरल ।
ज्योति के दर्शन कराओल,
प्रकाशित जिनगी बनल ।।
प्रकाशित जिनगी बनल,
जगकेर सब विज्ञान पाओल ।
धर्म अर्थो काम मोक्षो,
चतुष्टय-पुरुषार्थ पाओल ।।
कूपमंडुकता मे डूबल,
ज्ञान बिन टर-टर केलहुँ ।
दिव्यदर्शन सद्गुरुक,
सद्ज्ञान लभि मौनी भेलहुँ ।।
अर्चना गुरुपद सरोरुह,
कृपा के सागर थिका ।
धरि मनुक्खक रूप गुरुवर,
ओ स्वयं हरिए थिका ।
ओ स्वयं हरिए थिका,
विधि महेशो वैह छथि ।
कोटि वन्दन चरणरज मे,
परब्रह्मो वैह छथि ।।
गुरु आ हरि छथि ठाढ़,
किनकर प्रथम अभ्यर्चना ।
गुरुकृपा सँ हरि भेटल,
प्रथम गुरुपद अर्चना ।।
------सद्गुरुचरणकमलेभ्यो नमः ।।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

Thursday, July 2, 2020

प्रेम आ समर्पण


प्रेमके ब्रह्मास्त्र सँ तँ जीव केहनो बसमे आयत,
बिना प्रेमे ककर साहस हिंस्र पशु के छूबि पायत?
जखन एकटा चतुष्पादो प्रेमके सब भाव बूझय,
कृपानिधि सर्वज्ञ मोनक बात क्यै नै बूझि पायत!!
सुतल-जागल साँझ-भिनसर जे करै छथि प्रभुक सुमिरन,
बुझू निश्चय ईश्वरो सुमिरन करै छथि तनिक अनुखन ।
जीव सब लेल दया-प्रेमक जनिक उरमें भाव उमड़य,
बुझी नित बेचैन ईशो सतत हुनके लेल हुकड़य ।।
लोक सबके चाह उरमे ईश्वरक लेल होइछ जतबा,
प्रभुक सेहो चाह लोकक लेल उरमे होइछ ततबा ।
चाह यद्यपि होइछ सबके मुदा नै बिसबास सदिखन,
अनिच्छा आलस्य शंका अबिसबासे भरल हरदम ।।
डोलायब घंटी अछत-फूले के पूजा बुझय सब क्यो,
प्रभुक लेल सर्वस्व त्यागक लेल नहिं तैयार अछि क्यो ।
जखन कखनो जाइछ मन्दिर मात्र याचक भाव सबके,
प्रार्थना कष्टक निवारण हेतु केवल करय सब क्यो ।।
त्यागिक' सब मोह-ममता समर्पण सबकिछु जे करता,
तकर सबटा भार निश्चय ईश्वरे नित बहन करता ।
मात्र ईशक लेल आकुल जगत मे बिरले क्यो भेटय,
सतत जे प्रभु लेल ब्याकुल जगत मे बिरले क्यो भेटय ।।

Friday, June 26, 2020

श्रम

बुद्धि के तमने आ कोरने,
ज्ञान के हो बहुत उन्नति ।
नकल सँ अवरुद्ध हो बुधि,
नकलची के होइछ अवनति ।
तते ठेललक पोन, अपना-
पैर पर नहिं ठाढ़ भेलहुँ ।
विष्मरण चलबाक भ' गेल,
जखन बैसाखी ध' लेलहुँ ।।
स्वर्ण पिजड़ा भोज्य उत्तम,
मुफ्तखोरी तजि सकल नहिं ।
बिसरि गेल उड़नाइ, फूजल-
द्वार तैयो उड़ि सकल नहिं ।।
पीठ सुविधा केर चढ़िक'
गगन मे हम खूब उड़लहुँ ।
ईश दू टा पाँखि देलन्हि,
तहू के हमसब बिसरलहुँ ।।
तजी हमसब आश सिड़हिक,
धरब बैसाखी ने कर मे ।
रेस मे अपने सँ दौडब,
रहब आगाँ आब जग मे ।।
चाह नै खैरात के, नहिं
चाह पर सम्पत्ति के ।
चाह रोजगारेक, श्रमसँ
काटि लेब विपत्ति के ।।
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Sunday, May 24, 2020

दुःख-सुख


दुखक संग जन्मे सँ अछि
नहिं धैर्य त्यागू,
सुख बिलायत चमकि, नहिं-
अंधैर्य राखू,
आस पर जिनगी टिकल
दुख-रात्रि बिततहिं,
सुख-दिवाकर प्रगटता
बिसबास राखू ।।

धैर्य के दुख-कसौटी
जाँचय आ परखय,
दुखानल मे तपिक' सोना-
मनुज चमकय ।
मित्र-अरि के ज्ञान हो
दु:खे मे सबके,
दु:ख-रवि बिन जीवनक-
तरुवर ने पनपय ।।

होउ नहिं विचलित कनेकबो
दुःख लखिक',
दुःख-सुख आबैछ आ
चलि जाइछ अपनहिं ।
कर्म पर धरु ध्यान
आयत सुख पलटिक',
रात्रि-दिवसक सदृश ईहो-
फिरथि सहजहिं ।।

दुःखक तबधल जीवनक
धरनीक ऊपर,
सुखक जलधर बुन्द
बरखा होइछ तहिना ।
चिर विरह सँ दग्ध
बिरहिनि केर उर मे,
पिय मिलन सुख केर
बरखा होइछ जहिना ।।

रौद-छाँही सदृश दुःख-सुख
पूर्ण जिनगी के बनाबय,
दर्द संग माधुर्य विरहक-
बाद मिलनो के बजाबय ।
रहत जीवन अपूर्णे जँ-
दुनू नहिं जिनगी मे आयल,
मृत्यु संग जीवन अटल ई-
सत्य जीवन के कहाबय ।।
मृत्यु संग जीवन अटल ई-
सत्य जीवन के कहाबय !!!
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डोइर आ गुड्डी

गुड्डी के जखन
गँहिकी नजरि सँ देखैत छी
तँ बुझि पड़ैछ जे
ई डोइरक
चाँगुर मे फँसल अछि,
ऊपर जयबाक आज़ादी नहिं छैक,
जँ एकरा डोइर सँ
आज़ाद क' देल जाय तँ
ई आकाश मे आर बेसी  ऊँच
स्वच्छंद विचरण करत ।
मुदा वास्तव मे से नै होइछ,
जखने डोइर कटैछ कि
गुड्डी कनेक आर उप्पर जा
दिशाहीन भ'
एमहर-ओमहर लहराइत
दूर अनजान-सुनसान मे जा
अदृश्य स्थान मे खसिक'
विलीन भ' जाइछ !

यैह तँ जीवन दर्शन थिक !
लोक जतेक ऊँचाइ पर रहैत अछि-
ओकरा हरदम बुझाइछ जे
हम जै परिवेश सँ बान्हल छी ओ
हमरा प्रगति मे बड़का बाधक अछि,
ओ हमरा
ऊपर जयबा सँ रोकि रहल अछि ।
जेना :
घर, परिवार, अनुशासन,
माता-पिता, गुरु आ समाज ;
ओ ऐ सबसँ आज़ाद होम' चाहैछ ।
मुदा,
वास्तविकता ई अछि जे
ई सब वैह मजगूत डोइर थिक जे
हमरा ओइ ऊंचाइ पर
बना क' रखने रहैछ ।
ऐ डोइर के कटैत देरी, हम-
कने काल लेल
थोड़े ऊपर जरूर जायब,
मुदा हमर हश्र सेहो
कटल गुड्डी सदृश भ' जायत !

जँ हम ऊंचाइ के
बना क' राख' चाहैत छी तँ
भूलियो क'
डोइर सँ कटबाक नै सोची,
भले थोड़े
कष्टो किऐक ने सह' पड़य !

"डोइर आ गुड्डीक
सफल संतुलन सँ
भेटल ऊँचाइए तँ
सफल जिनगीक
मूल सूत्र थिक !!!"
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Thursday, April 16, 2020

कोरोना- 3

बुझि पड़ैत अछि प्रलयकाल
जनु आबि रहल अछि
दुनिया भरि कोरोना-डंका
बाजि रहल अछि !
त्राहि-त्राहि अछि मचल जगत-
भरि काँपि रहल अछि
सूति-उठिक' ड्रैगन के
सब शापि रहल अछि!!

कत'सँ आयल रोग कोरोना
सबके मारत
पस्त भेल जग के आफत
ईशे टा टारत!
काँच माउस बादुर के खाक'
रोग बेसाहल
दुष्ट कुकृतक' सगर जगतमे
रोग पसारल!!

करनी ककरो मुदा बेमारी
सबके पटतै
दोख भले हो एकक भोग'
सबके पड़तै!
वैश्विकता के लाभ भले नै
भेटउ सबके
दुष्टक कुकृत के फल भोग'
सबके पड़तै !!

ड्रैगन ओहिना नाम ने ककरो द' देल जाइ अछि
नाम गुने सब कर्म तकर निश्चय भ'  जाइ अछि!
दुनियाँ मे सब देश रहय उन्नति
लेल आकुल
पर चीनी सब व्यस्त जगक नाशे
लेल व्याकुल!!

खुराफात मे चीनी सबदिन औवल आबय
बदनामी के हेहरा के किछु लाज ने लागय!
रोग सगर जग मे फैलाक'
लाभ की पौलक
सुगराहा सब सगर विश्व मे
नाक कटौलक!!

एकरा पर बिसबास करब तँ धोखा खायब
अदौ काल सँ एकर चरित छलयुक्ते पायब!
पंचशील के उल्लंघन ई
खूब केने छल
बासठि मे पीठी मे छूरा
भोंकि देने छल!!

एकविंश दिन लॉकडाउन के
सफल बनाबी
कोरोना के सब क्यो मिलिक'
मारि भगाबी!
ऐ मीशन मे भारत के
भेटतै जँ सफलता
जितब कोरोना के निश्चय
मेटतै सब चिन्ता!!
जितब कोरोना के निश्चय
मेटतै सब चिन्ता!!!!
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कोरोना लॉकडाउन

झूठ-मूठके सदिखन शान बघाड़ब छोड़ू
बाबा बल फ़ौदारी काज सुताड़ब छोड़ू
ऐय्याशी करबाक एखन नै सोचू कनिको
भोज-भातके आडम्बर नै सोचू कनिको

ताम-झाम के त्यागि तपस्या करू घरेमे
लिखबा-पढ़बाकेर व्यवस्था करू घरेमे
ध्यान-भजन पूजा-पाठक अछि बढियाँ अवसर
मात-पिताके सेवा के अछि बढियाँ अवसर

आत्मचिन्तनें भाग्य सँवारक बेर यैह थिक
छूटल-मूटल कार्य सम्हारक बेर यैह थिक
नशापान नै व्यर्थ बात नै समय बिताबी
गप्प-सड़क्का ताश-ताश नै समय गमाबी

नीक-नीक पुस्तक पढ़बा केर समय एखन अछि
गूढ़-तत्त्व पर गहन-चिन्तनक समय एखन अछि
विज्ञानो पर खोज करक अछि बढियाँ अवसर
ब्रह्मांडो पर शोध करक अछि बढियाँ अवसर

ऋषि-मुनिके धरणी थिक नित एकान्ते चिन्तन
सम्राटो सिर झुकबथि नितदिन प्रातः वन्दन
भूमि विदेहक शास्त्र-पुराणक निशदिन मन्थन
थिकहुँ अयाचिक वंशज यद्यपि बहुत अकिंचन

याज्ञवल्क्य गौतम कणाद के भूमि यैह थिक
वाल्मीकि बुध महावीर के भूमि यैह थिक
आर्यभट्ट सम्राट अशोकक पुत्र थिकहुँ हम
गुरुगोविंद आ कुंवर सिंह के पुत्र थिकहुँ हम

लौटत भारत केर स्वाभिमान शंका ने कनिको
बनि जायत भारत शांतिदूत शंका ने कनिको
गुरु बनि जग-अज्ञान मेटायत भारत निश्चय
भ्रमित विश्वके मार्ग देखायत भारत निश्चय
भ्रमित विश्वके मार्ग देखायत भारत निश्चय !!!!
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कोरोना-2

साँसो लेबक छल पलखति नै व्यस्ते सदिखन
लिलसा छल जे घ'रे बैसल रहितहुँ सदिखन
खूब गप्प-सप करितहुँ दोस्त- महीमक संगमे
ताश आर सतरंज खेलैतहुँ दोस्तक संग मे ।।

काज-धाज सब त्यागि सतत तीर्थाटन करितहुँ
सौंसे घुमिते-फिरिते सबदिन मस्ती करितहुँ
होटल सबहक खूब सुअदगर व्यंजन चिखितहुँ
जाय सिनेमा-थ्येटर नित मनरंजन करितहुँ ।।

भेटल फुरसति शर्त मुदा नहिं घूमू कत्तहु
दोस्त-महीमक संग मस्त नहिं झूमू कत्तहु
सात-फूट दूरे रहिक' हो गप्प-सड़क्का
मुँह मे जाली लगा करू क्यो हँस्सी- ठट्ठा ।।

ड्रैगन के सब लोक जगत के बारि रहल छल
चोटा गेल अहि काटक अवसर ताकि रहल छल
पठा कोरोना दुनियाँ के ओ मजा चखौलक
नाम कुकुरिया पड़लै जग मे नाम घिनौलक ।।

भारत मे ओ रोग कोरोना हारि रहल छल
नेम-टेम परहेजें सब क्यो मारि रहल छल
रास ने अयलै चैन दुष्ट जलसा क' लेलकै
उल्टा साँस लैत वाइरस के जान द' देलकै ।।

एक खुराफातीक कुकृत के भोगय सबक्यो
उखपाती जँ बन्धु तबाहे होबय सबक्यो
ग्लोबल जग रोगो क्षणभरि मे पसरि जाइत छै
केहनो दादा सब बुधियारी घोंसरि जाइत छै ।।

बाल्यकाल सँ हिलिमिलिक' रहनाइ सिखौलक
तेहन समय आयल जे सबके दूर करौलक
आर कोनो ने औषधि जाली मुख पर रखियौ
हाथ ख़ूब साबुन सँ भरिदिन धोइते रहियौ ।।

भेल शहर सुनसान सड़क पर क्यो नहिं भेटत
अपनहिं घर आनन्द करू रोगो सब मेटत
एहि अवसर के नीक चिन्तनक अवसर बूझी
देह निरुज आध्यात्म चिन्तनक अवसर बूझी ।।
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कोरोना-1

थोड़े बागड़ लोक सबके गेह नहिं सोहाइत छै
बिना कोनो काजके सबतरि सतत बौआइत छै
घात मे बघबा कोरोना सतत अछि खएबाक लेल
अधकपारी तोड़थि आफन मृत्युमुख जएबाक लेल

संच-मन्चें घर मे बैसल नीक नहिं लागैछ हुनका
बोन-झाँखुर च'र-चाँचर नीक छन्हि लागैत हुनका
देखै छथि निशदिन कोरोना लोक के चाभैत अछि
अभागल सब काल मुखमे जाय लेल भागैत अछि ।।

कैक जन्मक पुण्य सँ ई देह मानव केर भेटय
करू ताकुत खूब यत्नें सतत नहिं ई फेर भेटय
ईश केर मन्दिर बुझी एकरा संरक्षी खूब  यत्नें
व्यर्थ कालक ग्रास नहिं रक्षा करी अतिशय प्रयत्नें ।।

गेह रहि स्वाध्याय लेखन लेल अछि बढियाँ सुअवसर
बाल-बच्चा संग खेलक भेटल अछि बड नीक अवसर
पढी-लीखी ग्रन्थ टीभी मे बिताबी समय अप्पन
बेसाही आफति ने क्यो कुशलें बिताबी समय सदिखन

प्रकृति अपने सँ अपन क्षतिपूर्ति सबटा करि रहल
प्रदूषण भेल खतम निर्मल सरित जल अछि बहि रहल
बोन-झाँखुर जीव सब स्वच्छंद विचरण क' रहल
तते निर्भय जीव भेल जे भ्रमण नगरक क' रहल ।।

पूर्व मे सब मनुख मिलिक' फारि देल ओजोन लेयर
प्रकृति अवसर पाबिक' अछि क' रहल तकरो रिपेयर
हाल दुनियाँ केर देखू  मनुख घर मे बन्द छथि
बाघ हाथी हरिन बानर चिड़ै सब स्वच्छंद छथि ।।
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Sunday, January 19, 2020

बतहू


बतहूक उमेर तीस भ’ गेल छलन्हि मुदा तखनो तक कुमारे छलाह I कोनो पैघ ऐब नै कहक चाही, कने सुधंग आ कने तोतराह! ओना तँ कन्याक अभावक कारणें बहुतो नीको बर सब कुमारे छथि, ऐब बलाके के पुछै अछि! शुरू मे अठबारे आ बाद मे नित्यप्रति डोकहर गौरीशंकरके जल चढ़ौलन्हि I बाबा कृपा केलखिन्ह आ एकटा घटक पहुँचलाह I बतहूक पिताजी धरफरायले छलथिन्ह, तुरत ठीक भ’ गेलन्हि I कन्या आँखि मुनल मे बड्ड सुन्नरि, आँखि खोलने एक आँखि सँ कनाहि ! मुदा एहन बर लेल ऐ सँ बेसी सुन्नरि तकला सँ जिनगी भरि कुमारे रह’ पड़ितनि I दान-दहेज़ मे बेसी नै, बरक बाप द्वारा कन्या बापके मात्र एगारह सै टाका देब’ पड़लनि I
शुभ-शुभक’ बियाह भेल I एगारह टा बरियाती! खूब स्वागत! बरियाती सब स्वागतसँ अभिभूत!
भोरहरबामे सोहागक बेर बरियाती जखन आँगन पहुँचल तँ देखलक जे बतहू बीच आँगनमे उघारे देहे चित्त सूतल छथि आ छातीपर एकटा उक्खैर राखल छन्हि I एकटा बरियाती पूछि बैसलथिन्ह- “ बतहू ई की?”
-“ ई बिध होइ छै!”
सबहक हँसी देख’ जोगड़क! कन्याक सखी-बहिनपा सबहक ई किरदानी छल!!!
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Saturday, January 18, 2020

शहर पलायन

थोड़े बरख सँ गाम-घ'र सँँ
भागक लेल उजाहि उठल अछि,
टोल-पड़ोसक लोक-बेद सब,
शहरे दिसक' भागि रहल अछि,
मृगतृष्णा मे भटकल जनकेँ,
ब्याधि नगर के चाभि रहल अछि,
ब्याधि नगर के.........।
कुली-मजूरी कए नहिं सकता,
नाइटशिफ्ट किन्नहुुँँ नहिं खटता,
बाहर मे जिनगी छनि दुर्लभ,
गामे मे पुनि सब जा रहता,
जेना जहाजक पंछी उड़िक'
पुनि जहाज पर आबि रहल अछि,
पुनि जहाज ........।

दूध-दही बिन लोक कुपोषित,
हरियर शब्जी फल भेल लोपित,
सुखा गेल नाला-धारो सब,
भू-गर्भी जल सेहो अलोपित,
गंदे जल के पीबि-पीबि सब,
खूब रोग के पालि रहल अछि,
खूब रोग........ ।

कल-करखाना सगरो पसरल,
ज़रा पराली जहरे परसल,
गर्दा-धूआँ भरल वायु मे
मरि रहलै सब अल्प आयु मे,
खाँसि-खाँसिक' ब्याकुल भ' क'
मृत्यु-राग सब गाबि रहल अछि,
मृत्यु राग .......।
गाछ-बिरिछ सबटा कटि गे'लै
आक्सीजन दुर्लभ भ' गे'लै,
कंकरीट भरि गेल शहर मे,
ग्लोबल-वार्मिंग सौंसे भे'लै,
धूआँ-धुक्कुर भरल शहर मे,
गामे दिस सब भागि रहल अछि,
गामे दिस.........।

प्लास्टिक सँँ नाला सब भरि गेल,
फेकल कचड़ा सौंसे सड़ि गेल,
पिलुआ-कृृमी सह-सह सगरो,
मच्छर के सम्राज पसरि गेल,
कालाज्वर डेंगूक रोग सब,
बूढ़-युवो के मारि रहल अछि,
बूढ़ युवो ...........।

तरकारी बिन कोना घोंटायत,
दूषित सब्जी कोना क' खायब,
जँँ बलजोड़ी खाय पड़ल तँँ,
खाक' निरुज कोना रहि पायब,
कीटनाशकेँँ भरल-पड़ल सब,
सबहक मुख के जाबि रहल अछि,
सबहक मुख.......... ।

भौतिकता खतरे के बढेलक,
प्रकृति संग खेलबारे केलक,
पर्यावरण असंतुल भए गेल,
बर्फ पघिल क' बाढ़ि पठेलक,
पठा सुनामी, भुवकम्पहुँ के
काल गाल मे दाबि रहल अछि,
काल गाल .........।

अंतरिक्ष तक से'हो पँहुचल,
सागर, पर्वत तक के आँचल,
क्षिति जल पवन गरलमय गगनो,
खएबा जोग कथू ने बाँचल,,
प्राण कोना कँ बाँचत लोकक,
प्रलयकाल जनु आबि रहल अछि,
प्रलयकाल जनु.......।।
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