Sunday, May 24, 2020

दुःख-सुख


दुखक संग जन्मे सँ अछि
नहिं धैर्य त्यागू,
सुख बिलायत चमकि, नहिं-
अंधैर्य राखू,
आस पर जिनगी टिकल
दुख-रात्रि बिततहिं,
सुख-दिवाकर प्रगटता
बिसबास राखू ।।

धैर्य के दुख-कसौटी
जाँचय आ परखय,
दुखानल मे तपिक' सोना-
मनुज चमकय ।
मित्र-अरि के ज्ञान हो
दु:खे मे सबके,
दु:ख-रवि बिन जीवनक-
तरुवर ने पनपय ।।

होउ नहिं विचलित कनेकबो
दुःख लखिक',
दुःख-सुख आबैछ आ
चलि जाइछ अपनहिं ।
कर्म पर धरु ध्यान
आयत सुख पलटिक',
रात्रि-दिवसक सदृश ईहो-
फिरथि सहजहिं ।।

दुःखक तबधल जीवनक
धरनीक ऊपर,
सुखक जलधर बुन्द
बरखा होइछ तहिना ।
चिर विरह सँ दग्ध
बिरहिनि केर उर मे,
पिय मिलन सुख केर
बरखा होइछ जहिना ।।

रौद-छाँही सदृश दुःख-सुख
पूर्ण जिनगी के बनाबय,
दर्द संग माधुर्य विरहक-
बाद मिलनो के बजाबय ।
रहत जीवन अपूर्णे जँ-
दुनू नहिं जिनगी मे आयल,
मृत्यु संग जीवन अटल ई-
सत्य जीवन के कहाबय ।।
मृत्यु संग जीवन अटल ई-
सत्य जीवन के कहाबय !!!
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