Thursday, September 10, 2020

दुर्गापूजाक पुरना संस्मरण

 करमौली गाम मे दुर्गापूजा बर्ख 1966 सँ मनायल जा रहल अछि । एहिठामक विध-विधान सम्पूर्ण परोपट्टा मे अनुपम अछि । परम श्रद्धेय गुरुजी(स्व0 जय माधव ठाकुर)क पौरोहित्य मे सविध प्रारम्भ कएल गेल पूजाक परंपरा आइयो ओही प्रकारें मनायल जाइछ ।         

                          प्रारम्भ मे श्रद्धेय आनन्द सर(स्व0 आनंद ठाकुर)क नेतृत्व मे नाटक होइत छल । ओ सब उगना, बसात आदि नाटकक बड्ड नीक मंचन केलथि । तखन कमलजीक नेतृत्व मे बहुत रास नाटकक सफल मन्चन कएल गेल । हम सब कुहेस, भयंकर भूल, उगना, श्रवण कुमार, अभिमन्यु, शेरा डाकू, सत्य हरिश्चन्द्र, भर्तृहरि, छींक प्रहसन....आदि नाटकक/प्रहसनक उत्कृष्ट मन्चन कएलहुँ । ओ समय करमौली नाटकक युवा अवस्था छल जखन इलाका मे हमरा सबहक नाटकक खूब प्रशंसा भेल । 

बाद मे ओही परम्परा के श्री सुनीलजी सब बहुत दिन तक नीक जेकाँ चालू रखलाह, मुदा तकर बाद आर्केस्ट्रा युग प्रारम्भ भेल जे फेर नाटक के पनप' नहिं देलक । 

युवा वर्ग मे सम्भवतः ऊहि के सेहो अभाव भ' गेलैक ।

नाटकक माध्यम सँ जे सामाजिक बुराई सब पर चोट कएल जाइत छल ओ बड्ड प्रभाव छोड़ैत छल । कुहेसक आ छींकक दहेज प्रथा पर चोट बहुत बर्ख तक लोक के स्मरण रहलैक, हमरा सबके तँ आजीवन स्मरण रहत ।

ऐ बेरक करमौली दुर्गापूजाक अवसरक किछु चित्र :-

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