Tuesday, September 1, 2020

पति-पत्नी

 दक्ष छथि गृहकार्य मे आ

नीक सँ घर के सजाबथि ।

शिशुक पालन खूब उत्तम,

स्वादयुत भोजन बनाबथि ।।


अतिथि सेवा मे निपुण आ

कुशलतें घर के चलाबथि ।

सुशीला छथि जनिक घरनी,

भाग्यशाली से कहाबथि ।।


भले हो समृद्धि, भार्या-

हराशंखी रहथि जैठाँ ।

भरल कलहे रहय सदिखन,

नर्क के हो बास तैठाँ ।।


प्रेममय व्यवहार, वाणी-

मधुर गृहिणी जनिक घरमे ।

ततय कटुता टिकि सकत नहि,

दृश्य स्वर्गक तनिक घर मे ।।


पतिव्रता पति-परायणा

पति छोड़ि जे अनका ने सोचथि ।

पतिक से अनुगामिनी,

पतिए तनिक सर्वस्व होबथि ।।


बजय थोपड़ी दुनू हाथे,

एक पत्नीव्रत हो पतिओ ।

मातृवत पर नारि, भार्या-

के ने दुख क्यो देथु कहिओ ।।


गृहस्थाश्रम शकट के

चक्काके मजगुत खूब राखू ।

जगत प्रगतिक रेस मे

तखनहि अहाँ रहि सकब आगू ।।


जतय माता जानकी सम,

पिता होयत राम सम ।

ततय किछु संदेह नहि जे

लव-कुशक होयत जनम ।।

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