Thursday, July 16, 2020

नाटकक पात्र

नाटकक छी पात्र सब,
कार्य पात्रे सम रहय ।
होथि ने मोहित कियो,
भाव पात्रे सम रहय।।
भाव पात्रे सम रहय,
मुदा नै भ' पबैत अछि ।
मोह-माया सँ ग्रसित,
मन अवग्रहित रहैत अछि ।।
पात्र जाधरि मंच पर,
ऐक्टिंग करै अछि नाटकक ।
मूल नै बिसरैत अछि,
छै भेष-भूषा नाटकक ।।
कियो अछि नारी बनल,
तँ पुरुष रूपें अछि कियो ।
एक आबय मंच पर तँ,
मंच सँ भागय कियो ।।
मंच सँ भागय कियो,
एक्केक बहु किरदार अछि ।
खन कियो पंडित बनल,
खनमे कियो अवतार अछि ।।
जीवनो हो तही सम,
बेटी बहिन माता कियो ।
कियो बेटा बाप बाबा,
बनल अछि भ्राता कियो ।।
नाटकक सब पात्र कहियो,
असलमे आकुल ने होबय ।
मंच पर हो जदपि विह्वल,
असलमे ब्याकुल ने होबय ।।
असलमे ब्याकुल ने होबय,
पंक बिच पंकज हो जहिना ।
जगक सब व्यवहारमे तँ,
एतहु ज्ञानी रहथि तहिना ।।
मूल नै बिसरी, जगत-
मंच थिक मात्र नाटकक ।
रहू सब निर्लिप्त, सोचू-
सब छी पात्र नाटकक ।।
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