-माँ की माया अपरम्पार है. माँ के विना ज्ञान (ब्रह्म ज्ञान ) पाना मुश्किल है. जीव कितना भी विद्वान् हो जाय, अगर माँ की कृपा न हो तो ज्ञानी नहीं हो सकता. प्रत्येक वर्ष मैया की पूजा करने का उददेश्य यही है कि भक्ति पर परी छाई को हटाकर माँ की निश्छल भक्ति सदैव ज्योतित रहे. महिषाशुर, शुम्भ-निशुम्भ, मधु-कैटभ हमारे स्वयं के अन्दर के ऋणात्मक भाव हैं . मैया की भक्ति से उन ऋणात्मक भावों का नाश अवश्यम्भावी है. तत्पश्चात् सद्गुण एवं सत्य-ज्ञान आना ही आना है.
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