"योगश्चित्त-वृत्ति निरोध:". मन की स्थिरता सबसे बडा योग है. विपरीत से विपरीत परिस्थितियोन् मे भी धैर्य धारण कर सदैव आत्मस्थ रहनेवाला ही ग्यानी है. अस्थिरचित्त का व्यक्ति जो आत्म हत्या तक कर लेता है, वह् भी हत्या के बराबर का ही अपराधी है; फ़र्क शिर्फ़ इतना है कि सजा पानेवाले का पार्थिव शरीर नही रहता है. चित्र वृत्ति का निरोध ही सभी धर्मो एवन् सभी शस्त्रोन् का सार है. कितना ही विद्वान, शास्त्रज्ञ, ज्ञानी क्योन् न हो; अगर अस्थिर चित्त का व्यक्ति है तो उसे अज्ञानी से भी नीचे माना जायगा.
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