Thursday, November 21, 2019

कुजरनी


घर मे
कोनो तरकारी नहिं अछि,
आबि रहल छथि
जमाय-समधि,
भरमा बचाब’बाली
पहुँचि गेली I  

घूमि रहलि छथि
गामे-गाम
बाटे-घाटे
दरबज्जे-दरबज्जे
अंगने-अंगने,
माथ पर पथिया
कोर मे चिलका,
हरियर-हरियर तरकारी
ताजा-ताजा फल
अल्लू-पियाउज..
सब किछु I

कीनि लै छथि,
थोक मे
दू-चारि पथिया भरि
हात-बजार जाक’,
अगिला हाट तक के
वैह छथि आसरा I

कोनो भय नहिं
रौद-बरखाक
अन्हर-बिहाड़िक
कुकुर-बानरक...
गुंडा-मबालीक...!

निर्भीक
घूमि रहलि,
सब मर्द जीरो छथि
हुनकर निर्भीकताक आगू,

ग्रैंड सैल्यूट!!
हुनका श्रम के,
हुनका निर्भीकता के!!!
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