Thursday, November 21, 2019

बाल्यकाल

हे बाल्यकाल! घुरि आउ हमर,
हे बाल्यकाल! घुरि आउ हमर ।।
नै रौद-बसातक भय कनियो,
बरखा-अछार-फानल-कूदल,
तितली पकड़क लेल दौड़-धूप,
दोस्तक सङ् मे हुड़दंग मचल ।
हे बाल्यकाल! घुरि आउ हमर,
हे बाल्यकाल..........।।
तुरतहिं झगड़ा आ प्रेम तुरत,
नै मोन मे कोनो बात टिकल,
किछुओ चिन्ता ने फिकिर कथुक,
मित्रक झुंडे छल स्वर्ग जकर ।
हे बाल्यकाल! घुरि आउ हमर,
हे.......।।
कबडी-कबडी आ टाइल-पुली,
लुक्का-छिप्पी गोटरस-गोटरस,
पोखरि-झाँखुर सौँसे रपटल,
गुड्डी-बाजी मे सतत रमल ।
हे बाल्यकाल! घुरि आउ हमर,
हे..........।।
ने बैर-द्वेष के नामो छल,
ने जाति-धर्म के भानो छल,
ने नीक-बेजायक ज्ञानो छल,
सब दोस्ते जग मे सगरो छल ।
हे बाल्यकाल ! घुरि आउ हमर,
हे.............।।
खिस्सा नानी-नानाक सूनि,
सपना के राजकुमार बनल,
मायक कोरा स्वर्गोपरि छल,
ओकरे सँ रूसब-बौंसब छल ।
हे बाल्यकाल! घुरि आउ हमर,
हे...............।।
लूडो-लूडो कैरम-गोटी,
गेंदक पाछू बेहाल रहल,
कागत के नौका मे डूबल,
खएबा-पीबा के सुधि बिसरल ।
हे बाल्यकाल! घुरि आउ हमर,
हे.........।।
बाड़िक-केरा-बड़हर-लताम,
खीरा नेबो पर सब लुधकल,
कतबो बाबी-काकी बाजलि,
सब आइन बिसरि कए टूटि पड़ल ।
हे बाल्यकाल! घुरि आउ हमर,
हे बाल्यकाल! घुरि आउ हमर !!!
*****कमलजी, 21.11.19*****

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