Thursday, May 18, 2017

नम्रता

दंड उद्दंडी के भेटल करय सबदिन,
पुरस्कृत नमता सतत विजयी बनै अछि ।
धार कातक झाड़ लबिक' रहय अविजित
तनल सीना गाछ सरिता मे बहै अछि ।।
वृक्ष फल के पाबिक' नमि जाथि सबतरि
जलद जल के भार स' भू दिस नमै अछि ।
गुणी गुण के पाबि अतिशय नम्र होबथि
शठ सुखायल गाछ किन्नहु नै नमै अछि ।।
दैव इच्छे धरा पर एकसरे अयलहु                          
करब हम प्रस्थान सेहो एकसरे ।
ईश स'अछि प्रार्थना जे भेट नै हो-
दुष्ट स', बरु रही सबदिन एकसरे ।।

दुष्ट नै लीबैछ सबदिन रहय अकड़ल
जँँ नमत त' कष्ट अतिशय दैछ सबके I
साँप धनु, मार्जार, अंकुश केर देखू
नमित यद्यपि कष्ट तद्यपि दैछ सबके II
साधु संगति इत्र विक्रेता सदृश अछि
जँ ने किछु दे'लक मुदा गमकाय दै अछि ।
दुष्ट संगति काजरक कोठली सदृश थिक
चलब कतबो बाँचिक' दगियाय दै अछि ।।

No comments:

Post a Comment