राम नामक मोट सिक्कर मोन-गज के सूंढ़ मे-
लगेबै जखने त' ओक्कर हिलब हे'तै बंद चट स' ।
आन बस्तु पकड़ने बिन सिक्करे के पकड़ि राखत,
ओकर चंचलता बिलेतै, हैत ओ एकाग्र झट द' ।।
तत्त्व एक्के रहय सब मे ऐ जगत मे,
देल किछु ज' आन के अपने के दै अछि।
सत्य ई बुझि गेल क्यो, त' अपन सब किछु-
आन के देने बिना नहि रहि सकै अछि।।
मोन निग्रह जकर भय गेल
से कतहु जा रहि सकै अछि।
नम्रता जकरा मे बे'सी
अधिक अपने हित करै अछि।।
त्याज्य फेक' जोग जे कूड़ा आ कचड़ा
गेह मे नै राखि ओकरा तुरत त्यागू।
ह'म के छी बूझि गेलहुँ तखन चट स'-
जूटि तप मे , व्यर्थ के परपंच त्यागू।।
सुख आ आत्मा भिन्न नै अछि,
स्वरूपे आत्माक सुख थिक।
सुख ने किछु परपंच मे अछि,
सत्य केवल आत्मसुख थिक।।
लगेबै जखने त' ओक्कर हिलब हे'तै बंद चट स' ।
आन बस्तु पकड़ने बिन सिक्करे के पकड़ि राखत,
ओकर चंचलता बिलेतै, हैत ओ एकाग्र झट द' ।।
तत्त्व एक्के रहय सब मे ऐ जगत मे,
देल किछु ज' आन के अपने के दै अछि।
सत्य ई बुझि गेल क्यो, त' अपन सब किछु-
आन के देने बिना नहि रहि सकै अछि।।
मोन निग्रह जकर भय गेल
से कतहु जा रहि सकै अछि।
नम्रता जकरा मे बे'सी
अधिक अपने हित करै अछि।।
त्याज्य फेक' जोग जे कूड़ा आ कचड़ा
गेह मे नै राखि ओकरा तुरत त्यागू।
ह'म के छी बूझि गेलहुँ तखन चट स'-
जूटि तप मे , व्यर्थ के परपंच त्यागू।।
सुख आ आत्मा भिन्न नै अछि,
स्वरूपे आत्माक सुख थिक।
सुख ने किछु परपंच मे अछि,
सत्य केवल आत्मसुख थिक।।
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