Sunday, May 21, 2017

समभाव

इष्ट पर जे भार देल जै, जै प्रकारक जेहन जहिया,
बोझ सबटा भक्त सबहक उठा ओ सानन्द लै छथि । 
बुद्धिमत् यात्री ने मोटरी, माथ पर तैं धरथि कहियो,
गाड़िए पर राखि क', यात्राक अति आनंद लै छथि ।।

दुःख रहित स्थाई सुख सब लोक चाहय 
प्रेम सर्वाधिक स्वयं स' सब करै अछि।
प्रेम के ड़ि सुख हमर स्वभाव सदिखन 
जकर अनुभव सुषुप्तिहिं मे सब करै अछि।। 

नै प्रपञ्चक बात क्योजन करी कहिओ
टांग ने पर काज मे कहिओ अड़ाबी।
छिद्र यद्यपि कोनो जन मे रहय कतबो 
द्वेष नै करु आर ने रागे बढ़ाबी।।

दीघ्र जाग्रतता क्षणिक अछि स्वप्न देखब 
आर किछुओ भेद नै द्वय मे रहै अछि। 
जेना जाग्रत मे बुझाइ अछि असल सबटा
स्वप्न मे ताही सदृश सब बुझि पड़ै अछि।।  



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