Friday, May 19, 2017

चाइल-प्रकृति-बेमाय

वंशगत संस्कार लोकक
सगर जिनगी संग ठहरय ।
भले परिवर्तन हो जगहक
मुदा ओ किन्नहु ने बदलय ।।
दूर के ढोलक सोहनगर
जीव सबतरि वैह रहतै ।
वस्त्र-भूषा बदलि गे'ने
प्रकृति-लक्षण नै बदलतै ।।
दूर गे'ने लोक बुझय
व्यक्ति भ' गेल ख़ास तरहक ।
साँप झिंगुर मशक कूकुर
स'ब ठामक एकहि तरहक ।।
गाम मे रहिओक' बहुतक
सुसंस्कृत जीवन रहै छै ।
छुछुन्नर कत्तहु रहत, नै-
छुछुनरी कहियो छुटै छै ।।
घ'र मे जे सिखय शिशु
कालान्तरे सुदृढ़ बनै छै ।
चाइल-प्रकृति-बेमाय लोकक
स'बठाँ संगहि रहै छै ।।

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