Saturday, May 20, 2017

प्रेमक मूल

अहं-लालच प्रेम नाशय,
त्याग-स्नेहे खूब पनपय ।
समर्पण के मूलमंत्रक-
बलें प्रेमक गाछ जनपय ।।
प्रेम ने दूरी के बूझय,
रंग-रूपो के ने जानय ।
ह्रदय दू टा मिलल जखने,
पूर्णतः विश्वास मानय ।।
शशि बसय नभ, कुमुद जल पर
मुदा दूहुक प्रेम अविचल ।
चंद्र दर्शन होइत देरी,
तुरत जल पर कुमुद विकसल ।।
प्यार मे ने भय कथुक
ने जान के परबाह कनियो ।
फतिंगा दीपक लै देखू
प्रान देल, नै आह कनियो ।।
भ्रमर बैसल पुष्प पर आ
प्रेमवस बैसले ओ रहि गेल ।
कुसुम संध्याकाळ सकुचल,
मुदा अलि भितरे मे रहि गेल ।।
प्रेम अति, विश्वास दृढ, अलि-
तैं ने पँखुरि के कटै अछि ।
मुदा अन्हरोखे गजेंद्रक-
सूंढ़ भ्रमरक प्राण लै अछि ।।

No comments:

Post a Comment