होली बहुतो बेर खेलेलहुँ,
थोड़-बहुत मोन के भाबै छल ।
ऐ बेरक आनंद मुदा नै,
आन बरख कहियो आबै छल ।।
थोड़-बहुत मोन के भाबै छल ।
ऐ बेरक आनंद मुदा नै,
आन बरख कहियो आबै छल ।।
नैसर्गिक आनंदक तुलना,
भौतिक सुख नै द' सकैत अछि ।
वृन्दावन-बरसाने धामक-
परतर किछु नै क' सकैत अछि ।।
भौतिक सुख नै द' सकैत अछि ।
वृन्दावन-बरसाने धामक-
परतर किछु नै क' सकैत अछि ।।
कृष्ण-कन्हैया स' जे जुड़ि गेल,
तकरा भौतिक सुख की भायत ।
जे सुख, सागर-दरस-परस मे,
से की छुद्र कूप दय पायत ।।
तकरा भौतिक सुख की भायत ।
जे सुख, सागर-दरस-परस मे,
से की छुद्र कूप दय पायत ।।
भारतक राधाक नगरी
एखन तक नै जा सकल छी। मुदा से आनंद हम सब अमरिका मे पा रहल छी ।।
एखन तक नै जा सकल छी। मुदा से आनंद हम सब अमरिका मे पा रहल छी ।।
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