काव्य लेखन अति कठिन थिक,
मुदा जे अभ्यास करतै ।
लिखेतै किछुओ त' निश्चय,
लेखनी निज काज करतै ।।
मुदा जे अभ्यास करतै ।
लिखेतै किछुओ त' निश्चय,
लेखनी निज काज करतै ।।
दुःख मे निकलैछ कविता
द्रवित उर कविता करै छै ।
वेदना मे काव्य रूपेँ
नयन स' सरिता बहै छै ।।
द्रवित उर कविता करै छै ।
वेदना मे काव्य रूपेँ
नयन स' सरिता बहै छै ।।
आदिकवि के दृष्टि जखने
क्रौञ्च-युग्मक बध देखै छनि ।
हृदय हाहाकार मचि गेल
पहिल काव्यक रूप लै छनि ।।
क्रौञ्च-युग्मक बध देखै छनि ।
हृदय हाहाकार मचि गेल
पहिल काव्यक रूप लै छनि ।।
सत्य-दर्शन संग सुख संतोष दात्री, जीवनक अनुभूति रचना जे कराबय। शब्द अर्थक मेल सुन्दर अर्थ धारी, दैछ रस-अनुभूति कविता से कहाबय ।।
युगक दर्शन, मानवक गुण के प्रतिष्ठा, अलौकिक रसधार, शिव सौंदर्य लाबथि। चेतना नव देथि सकल समाज के ओ, काव्य आनंदक सही रस्ता देखाबथि।।
No comments:
Post a Comment