रूप दू टा वस्तु सबहक
शूक्ष्म आ स्थूल बूझी ।
ज्ञानमार्गी शूक्ष्म, मार्गी-
कर्म के स्थूल बूझी ।।
शूक्ष्म आ स्थूल बूझी ।
ज्ञानमार्गी शूक्ष्म, मार्गी-
कर्म के स्थूल बूझी ।।
बात, विस्तृत-शूक्ष्म सनके
द्वैत आ अद्वैत भ' गेल ।
भक्ति मे अछि द्वैत, जखने-
एक भेल अद्वैत भ' गेल ।।
द्वैत आ अद्वैत भ' गेल ।
भक्ति मे अछि द्वैत, जखने-
एक भेल अद्वैत भ' गेल ।।
कृपें ईशक ऐल सद्गुण,
सद्गुनें आबैछ भक्ति ।
भक्ति स' हो ज्ञान, ज्ञानक-
वृद्धि स' बाढ़ैछ भक्ति।।
सद्गुनें आबैछ भक्ति ।
भक्ति स' हो ज्ञान, ज्ञानक-
वृद्धि स' बाढ़ैछ भक्ति।।
शूक्ष्म आ स्थूल मे नै भेद विग् जन किछु बुझै छथि। एक बिनु आकार के आ-
अपर साकारे रहै छथि।।
तजू मिथ्या ज्ञान, हम नै-
देह, शुद्धे आतमा छी I
जखन अप्पन गेह उर मे,
हमहिं त' परमातमा छी II
अपर साकारे रहै छथि।।
तजू मिथ्या ज्ञान, हम नै-
देह, शुद्धे आतमा छी I
जखन अप्पन गेह उर मे,
हमहिं त' परमातमा छी II
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