स्वयं पर हो आस जकरा
निराशा नै भेटय तकरा।
आन पर जे आस राखय
पूर नै हो आस तकरा।।
अपन भुज मजगूत जक्कर
धरा-सबसुख-लाभ तकरा।
आलसी आ अकरमन थिक-
बोझ, नै सुख-लाभ तकरा।।
पाथड़क सम मांसपेशी,
लौहसम भुज-उभय जिनकर।
लहड़ि आगिक नाड़ि मे हो
सफलता दासी हो तिनकर।।
धरनि-रक्षा क' सकय जे
धार-असि पर चलि सकै अछि।
मृत्यु जक्कर चरण-दासी
गिरि सिखर स' कुदि सकै अछि।।
भीम सम हो गदाधारी
धनुष-बेधन पार्थ सम हो।
राम-मर्यादा, आ योगी-
श्वर कन्हैयालाल सम हो।।
निराशा नै भेटय तकरा।
आन पर जे आस राखय
पूर नै हो आस तकरा।।
अपन भुज मजगूत जक्कर
धरा-सबसुख-लाभ तकरा।
आलसी आ अकरमन थिक-
बोझ, नै सुख-लाभ तकरा।।
पाथड़क सम मांसपेशी,
लौहसम भुज-उभय जिनकर।
लहड़ि आगिक नाड़ि मे हो
सफलता दासी हो तिनकर।।
धरनि-रक्षा क' सकय जे
धार-असि पर चलि सकै अछि।
मृत्यु जक्कर चरण-दासी
गिरि सिखर स' कुदि सकै अछि।।
भीम सम हो गदाधारी
धनुष-बेधन पार्थ सम हो।
राम-मर्यादा, आ योगी-
श्वर कन्हैयालाल सम हो।।
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