Monday, May 22, 2017

पिता

बाल्यकालक मित्र एकटा
आइ टावर पर भेटेला ।
छला रिक्शा के चलाबैत
दौडिक' ओ पकड़ि लेला ।।
हाइ इस्कुल के संगी ओ
गरीबी मे दिवस बितबथि ।
बाद मे ओ पढ़ि ने सकला
श्रमक बल पर गुजर चलबथि ।।
गप्प बहुतो भेल, पुत्रक-
लेल बापक भाव देखलहुँ,
' पुत्र के बहुते पढेबै,
हम भलेही पढ़ि ने सकलहुुँ ' ।।
विश्व के सब पिता सबदिन
सुतक लेल ई भाव राखथि ।
जे ने अपने पाबि सकला
पुत्र स' से लाभ चाहथि ।।
पुत्र लेल ई भाव लखिकय
लेखनी सैल्यूट मारय ।
पुत्र हो सर्वोच्च, यद्यपि-
स्वयं रिक्शा के चलाबय ।।
पुत्र के कर्तव्य थिक जे
पितृऋण के याद राखय ।
अपन सुख के त्याग क' क'
पितृ सेवा प्रथम जानय ।।

करत सेवा पुत्र कतबो
सधा ने पित-ऋण सकै अछि I
सीस दैयो क' ने क्यो सुुत 
उरिन कहियो भ' सकै अछि II

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