Friday, July 29, 2016

सुखी भाइ के मोनक भाव

सुखी भाइ, 
अति निर्धन किसान, 
लगभग भूमिहीन, 
गूड़क कारोबारी, 
कुसिआर कीनिक' पेड़ै छथि I 
बड़का कड़ाह मे,
रस के खौला क’, 
गूड़ बनबै छथि I

भोर स’ साँझ तक,  
बच्चा सब गूड़ लूझक लेल, 
घेरने रहैछ I 
भरिदिन मोन चङ, 
सुखी भाइ हरदम, 
हल्ला करिते रहैछ,
हल्ला स' टोल परेसान !

ओही रस्ते पठशल्ला पर जाइत काल,
सुखी भाइ के देखै छी; 
पुछलिअनि- 
-“ भाइ! आइ एकदम सन्नाटा अछि,
 एकोटा बच्चा के नै देखै छी, 
आइ त’ मोन खूब हल्लुक हैत ! "

“ की मोन हल्लुक हैत ! 
मोन होइछ कोनो तीर्थ-बर्थ चलि जाइ I "
“ से की भाइ ! 
की भेल? 
एना किऐक ? "
“ अरे अहुना कहूँ भेलैक अछि ? 
पढ़ाइ अनिवार्ज क’ देलकै, 
इस्कूल गेनाइ जरूरी क’ देलकै, 
हाजिरी बनेनाइ जरूरी क’ देलकै, 
हम सब कोन इस्कूल गेल रही, 
अपन गुजर चलबै छी कि नहि,
कोनो सरकार खर्च दैऐ ? 
सब बच्चा आब भोर मे जाइत अछि त’ एके बेर साँझ मे अबैत अछि, 
तै पर स’ होमवर्क ! 
आब त’ इमहर कियो तकबो ने करैछ I 
बच्चा स’ बेसी ओजन बस्ते के, 
दिनभरि इस्कूल में पढू, 
साँझ मे पढू, 
फेर भोर मे पढू; 
ईहो कोनो बात भेलै? 
खेल-कूद के कोनो बात नै, 
बच्चा नै भेल मशीन भ’ गेल, 
हद्द भ’ गेल ! 
बच्चा सब के नै एने जिनगी नीरस लगैछ ! 
हमर बस चलैत त’ सब इस्कूल मे ताला लगा दितिऐ I "


देखू सुखी भाइ के मोनक भाव ! 
हम बुझै छलौं, 
ओ बच्चा सब स’ परेसान रहै छथि, 
मुदा हुनकर अन्दर के भाव देखि, 
नत-मस्तक छी I 
माफ़ करब सुखी भाइ! 
शत्-शत् नमन !          

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