Kamalji
Thursday, July 14, 2016
'श्रम'
" देह हम्मर गेह तोहर,
घून छैं तों नाशकरनी;
निकल छुतहरिया गे 'सुस्ती',
अकरमनता के तों जननी.
आउ जल्दी बंधुवर 'श्रम'
समर्पित अछि मोन, तन मम;
दुख तत' स' शीघ्र भागय,
दोस्त जिनकर छथि 'परिश्रम'.
दोस्त जिनकर छथि 'परिश्रम'.."
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