गामक सब लोक मे
घिरना त’ भरले छै.
कलह के अन्गेजने सब
हिरदय त’ जरले छै..
काज
धाज छोडिक’ सब
व्यसने मे लागल छै.
भिनसर स’ सांझ धरि
झगड़ा बेसाहल छै ..
पूजा पाठ ख़तम भेल
नशा के बोलबाला छै .
पापे मे लिप्त सब
धर्मक दिवाला छै..
छौंड़ा उचक्का सब
उचकपनी करि रहल.
श्रेष्ठक अनादर आ
भाई भाई लड़ि रहल..
चौक आ चौराहा पर
जूआक अड्डा छै.
पढ़ब लिखब जीरो आ
लफासोटिंग धंधा छै ..
भोर सांझ दूरा पर
भेटत ने लोक क्यो.
चौके चौराहा पर
लोकक जमाड़ा छै ..
पाहुन आ परख के
हाल चाल पूछत के.
घरबैया घ’र धेने
ज’लो लै पूछत के..
गीता रमायन आब
ककरो ने आबै छै .
फ़िल्मक हीरो हिरोइन
सबके मोन भाबै छै..
साँझखन मंदिर आ
पंडित लग लोक नै
चाहक दोकान पर
जमघट सब लागल छै ..
संतोषक नाम नै
पाइ-पाइ रटने छै.
चित्त नै थिर ककरो
कुकुरमाछी कटने छै..
माटि-पानि छोडिक’ सब
दूर
देस भागै छै
ओत्तहु स’
पिटाक’ मुंह-
बिधुआयल आबै छै..
बिधुआयल आबे
छै..
पटना, ०६.०७. २०१६.
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