एकटा भालु ऐल मीठिक दरबज्जा पर पहिरने
अछि कुरता पायजामा माथ पर
टोपी सेहो छै असली भालु अछि कि नै विसवास नै
होइछ I
मदारी नै छैक मुदा
ई खूब भाषण दैछ गरीबी हटायब...... विसवास नहि होइछ I
जंगल मे रहितै त’ किछु कालक लेल विसवासो क’सकै छलहुँ कहीं असलीए ने हुऐ दिन देखारे विना मदारी के दरबज्जे-दरबज्जे
घुमैत भालु के देखि विसवास
नहि होइछ I
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