दादा संग चलू बगिया
मे
वाणी आइ घुमा दै छी,
रंग-विरंगक लागल
ओइठां
झूला पर झुलवा दै
छी..
सुन्दर-सुन्दर फूल
फुलायल
विविध रंग के तितली देखू.
भौंरा भन-भन करय
बाग़ मे
बगडा के
बच्चा के पेखु..
गेंद अहंक संग मे ल’
लै छी,
दादा-पोती खूब
खेलायब.
साइकिल सेहो संग रहत
त’
सगर पार्क मे खूब
चलायब..
पार्कक
घोड़ा आ हाथी पर
मस्ती आहाँ खूब करै छी,
ओपेन
जिम मे दादा गेला,
बच्चा
सबस’ अहाँ लरै छी..
नाव बागक झील मे
अछि,
जाय चट द’ बैसि
जायब.
अहाँ जल मे करब
छप-छप
ह’म नौका के चलायब..
झील मे अछि भरल सगरो
माछ के मुरही खुआयब,
देखि
माछक झुण्ड के त’
अहाँ
बहुते खिलखिलायब..
बाग़ मे अछि चिडै-चुनमुन,
ओकर बच्चा करय चुन-चुन.
हमर रुनकी बीच मे जा
करू जा क’
खूब झुन-झुन..
झूठ ने बाजी किमपि
दादाक
शिक्षा याद राखब,
करब नै
ककरो चुगलपन
सतत
आहाँ मिट्ठ भाखब..
कटु बचन कखनो ने
बाजब,
करब नै अपमान ककरो,
एक सत्ता रमय सब मे
अहाँ दुख नै देब
ककरो..
साफ़-सुथरा
रहब सदिखन,
स्वच्छता के ख्याल राखब.
गंदगी
स’ रोग पसरय,
तैं
सतत घर स्वच्छ राखब..
चलू एकटा छोट-छिन
बगिया अपन घर मे
बनाबी.
रोपि क’ बेली-चमेली
आर तुलसी स’ सजाबी..
आइ
स’ संकल्प ली जे
धरा
के सुन्दर बनायब.
सपूती बनिक’
हिनक अहं
सकल
धरनी के सजायब..
सकल
धरनी के सजायब..
पटना, ०७.०७.२०१६
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