जहिना नाम छलै सुखवा, ओ
लखना के सुखदाता छल I कियो नै बूझि सकल
लखना के ओ नहि सोदर भ्राता
छल II
बाल्यकाले स’ देखी, अग्रज
सदृश सुखवा रहै छल I एके रंग भोजन, वसन आ शयन संगहि
संग करै छल II
तात लखनक जखन मुइला, एक वरखक ओ छलै I भार घर-परिवार सब, सुखावाक माथा पड़ि गेलै II
जेठ भायक रोल भेटलै, सोदरो स’ बढिक’
केलक I सर-कुटुम्बक
संग खेतक- भार, हाट-बजार
लेलक II
जखन दुनिया-ज्ञान
भेल आ, सांसारिकता बुझ’ लगलहुँ I आन
जातिक लोक थिक ई, तखन सेहो बुझ’ लगलहुँ II
वाह! हमर समाज
सुथगर, नीक बुधि कहियो ने दै अछि I मुदा जातिक ज्ञान त’, बच्चे
मे सबके करा दै अछि II
लखन केर सुखबा पछिलका- जन्म-ऋनिया
बुझि पडै अछि I अइ जनम
मे भक्ति-भावें, सुइद संग चुकता करै अछि II
जाति-धर्म विहीन,
केवल भक्ति-भावें
क’ रहल अछि I जाति पोषक तत्व के, कसिक’
चमेटा द’ रहल अछि ।। कसिक’ चमेटा.....।।
************************
************************
No comments:
Post a Comment