सुखी भाइ,
अति निर्धन
किसान,
लगभग भूमिहीन,
गूड़क कारोबारी,
कुसिआर कीनिक' पेड़ै छथि I
बड़का कड़ाह मे,
रस के
खौला क’,
गूड़ बनबै छथि I
भोर स’ साँझ तक,
बच्चा सब गूड़ लूझक लेल,
घेरने रहैछ I
भरिदिन मोन चङ,
सुखी भाइ हरदम,
हल्ला करिते रहैछ,
हल्ला स' टोल परेसान !
ओही रस्ते पठशल्ला पर
जाइत काल,
सुखी भाइ के देखै छी;
पुछलिअनि-
-“ भाइ! आइ एकदम सन्नाटा अछि,
एकोटा बच्चा
के नै देखै छी,
आइ त’ मोन खूब हल्लुक हैत ! "
“ की मोन हल्लुक हैत !
मोन होइछ कोनो तीर्थ-बर्थ चलि जाइ I "
“ से की भाइ !
की
भेल?
एना किऐक ? "
“ अरे अहुना कहूँ
भेलैक अछि ?
पढ़ाइ अनिवार्ज क’ देलकै,
इस्कूल गेनाइ जरूरी क’ देलकै,
हाजिरी बनेनाइ
जरूरी क’ देलकै,
हम सब कोन इस्कूल गेल रही,
अपन गुजर चलबै छी कि नहि,
कोनो सरकार
खर्च दैऐ ?
सब बच्चा आब भोर मे जाइत अछि त’ एके बेर साँझ मे अबैत अछि,
तै पर स’
होमवर्क !
आब त’ इमहर कियो तकबो ने करैछ I
बच्चा स’ बेसी ओजन बस्ते के,
दिनभरि
इस्कूल में पढू,
साँझ मे पढू,
फेर भोर मे पढू;
ईहो कोनो बात भेलै?
खेल-कूद के कोनो बात नै,
बच्चा नै भेल
मशीन भ’ गेल,
हद्द भ’ गेल !
बच्चा सब के नै एने जिनगी नीरस लगैछ !
हमर बस चलैत त’
सब इस्कूल मे ताला लगा दितिऐ I "
देखू सुखी भाइ के मोनक भाव !
हम बुझै छलौं,
ओ
बच्चा सब स’ परेसान रहै छथि,
मुदा हुनकर अन्दर के भाव देखि,
नत-मस्तक छी I
माफ़ करब सुखी भाइ!
शत्-शत् नमन !