Tuesday, August 9, 2016

एसगर



धरा पर हम एलहुँ एसगर,
जीवनक यतराक पर छी विदा भेल हम I
मार्ग मे संग भेल-छुटियो गेल बहुतो,
विना रसता अंत के नहि रुकि सकब हम II

भेल भौतिक अंत यतरा, आब नभ मे विदा होइछी I
संग नै क्यों दैछ, सब रहि जैत अइठां I
गेह नारी के कहय तन केर नारी सेहो भागय,
कर्म जं सद्कर्म त’ सद्नाम टा रहि जैत अइठां II

कर्म के सुख लभै अछि सब लोक मिलिक’,
मुदा क्यो फल-भोग लेल नै ऐत आगू I
तैं सतत सद्कर्म सब जन कैल करिऔ,
कर्म फल नहिं बंटय, आबो लोक जागू II

तुरत फल भेटय एखन कलिकाल मे ई बात मानू,
नहि त’ अगिला जन्म मे फल अहीं के भोग’ पडत I
तैं सतत सबलोक हरदम धर्मपूर्वक कर्मरत भय,
निरत परहित सतत रहि पर पीड़ के मेट’ पडत II

ज्ञान त’ निज तपक बल स’ प्राप्त होबय,
तैं ने अनकर आस मे क्यो लोक रहिऔ I
गुरु त’ केवल करय इंगित सत्य रस्ता,
सत्य के आत्मस्थ भ’ सब खोज करिऔ II‍

No comments:

Post a Comment