Thursday, August 18, 2016

कलियुगक उपकार ह्त्या बराबर


बालजी केर छोट चच्चा,
दानपुर मे रहि रहल छथि I
भेट हुनका स’ करक लेल,
कार स’ ओ जा रहल छथि II
बाइक पर आरूढ़, एकटा-
लोक आगाँ मे देखायल I
मारि धक्का तीव्रतें एक-
कार तेजी स’ पड़ायल II
खसल बाइकर भूमि पर आ,
दर्द स’ चिचिया रहल अछि I
बाल रोकलनि कार, घायल-
के पकडि बैसा रहल छथि II
सोचल घायल के उठा,
गाड़ी मे होस्पीटल ल’ जेबनि I
मुदा दस बाइकर अचानक,
बाल के चट घेरि लेलकनि II
बाल के द’सो पकडि क’
पीठ माथा फोड़ि देलकनि I
संग मे जे छलनि पैसा,
सेहो सबटा छीनि लेलकनि II
शोणिते अंगा भिजल छनि,
कोनहुना कुर्जी पहुँचला I
दवा-दारू भेल बहुते,
ऊठि क’ पुनि बैसि सकला II
असल दोषी के ने किछु भेल,
मारि नाहक बाल खेलनि I
आब फेरो ने फंसब, खेलनि-
सपत, दुहु कान धेलनि II
भले मरि जेतै कियो, नहि-
आब कहियो घुरि क’ ताकब I
देखिक’ घायल मनुज के,
जान ल’ क’ दूर भागब II
भले भौतिक हानि पहुँचय,
बालजी! तजिऔ निराशा I
पारमार्थिक लाभ भेटत,
अहीं सब धरनीक आशा II

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