बात जँ बूझल ने हो त’,
रही चुप्पे नीक होइ अछि I नीक वाणी जँ ने
निकलय, रही
चुप्पे नीक होइ अछि II
विद्वता आ मूर्खता
किछु, बाजनहि लोक
जानि पाबय I काक-कोइली
भेद सब क्यो, बोलिए स’ जानि पाबय II
वाणिए थिक विदुष् के
बल, मूर्ख मौने ने नीक लागय I आत्मग्यानिक
वाक् उत्तम, पशुक चुप्पी नीक लागय II
No comments:
Post a Comment