अगुन विद्यारहित पर,
अतिशय घमंडी भाव रखने,
छथि महानिर्धन मुदा,
विनु अंत के लिप्सा रखै छथि I
मार्ग छनि अन्याय के,
अपकर्म स’ धनकेर इच्छा,
काज फाजिल ओकाइतो स,’-
ठानि
पूरा नहि करै छथि I
थोड़ धन पर पैघ ऐंठन,
मुदा नहि संतोष हिनका,
ओ थिका अति मूर्ख,
अनकर वित्त पर हो लोभ जिनका II
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