Sunday, August 7, 2016

मूर्ख

अगुन विद्यारहित पर,
 अतिशय घमंडी भाव रखने,
छथि महानिर्धन मुदा,
 विनु अंत के लिप्सा रखै छथि I
मार्ग छनि अन्याय के,
 अपकर्म स’ धनकेर इच्छा,
काज फाजिल ओकाइतो स,’-
ठानि पूरा नहि करै छथि I
थोड़ धन पर पैघ ऐंठन,
 मुदा नहि संतोष हिनका,

ओ थिका अति मूर्ख,
 अनकर वित्त पर हो लोभ जिनका II

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