Saturday, August 20, 2016

चप्पल

बात थिक कॉलेज समयक, बीस टा लड़का जुटै छी I सिंदरी स’ जैब पटना, मोन मे सब क्यो सोचै छी II आबिक’ धनबाद पाटलि- पुत्र के पकड़ैत छी सब, खोजि एकटा रिक्त डिब्बा, चैन स’ बैसैत छी सब II नेक्स्ट स्टेशन अबै अछि,
पान खयबा लै उतरलहुँ I
पान खइते ट्रेन फूजल,
दौडिक’ कहुना क’ चढलहुँ ।। हड़बड़ी मे हमर चप्पल- एक पैरक खसि पड़ल I तेज गति ट्रेनक, ने हिम्मत- पुनः लेबक भ’ सकल II न’व छल चमराक चप्पल,
मोन अतिशय कचोटै छल I
बात होइ छल बहु प्रकारक,
घूरि चप्पले पर अबै छल II गप्प के आनंद लैते,
शीघ्र हथिदह ट्रेन आयल I
टहलिक’ पाछू स’ एकटा-
लोक मम डिब्बा मे आयल II
छात्र सबहक गप्प सुनिक’
हँसि क’ सज्जन बाजि उठला-
‘पछुलका डिब्बा मे क्यो,
चप्पल कोनो फेकने छला II
एक व्यक्तिक कनपटी मे,
जोर स’ ओ लागि गेलनि I
मुदा चप्पल नव लखिक’,
सीट तर ओ राखि देलनि II'
बात सुनिते दौडिक’ हम,
पूर्व के डिब्बा मे गेलहुँ I
रहय चप्पल सीट तर मे,
पूछि क’ झट प्राप्त केलहुँ II
सुक्रिया दय खुशी मन स’,
अपन डिब्बा मे अबै छी I
पुनः कसिक’ उठल ठट्ठा,
गप्प के सब मजा लै छी II
सोचै छी ओइ व्यक्ति के मन,
केहन ओइ दिन भेल हेतनि I
जनिक कनपट्टी मे चप्पल-
लागि जोरें गेल हेतनि II
करै छी आभार हुनकर,
ठीक स’ चप्पल के रखला I
बिना कोनो दोख के ओ,
चोट मम चप्पल के सहला II
छात्र के पैसाक अतिशय-
मोल, तैं चप्पल के पेलहुँ I
पान नहिं खायब उतरि क’-
ट्रेन स’, सप्पत इ खेलहुँ II

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