Friday, August 26, 2016

रिक्शा-चालक


वर्ष १९७९ के अक्टूबर मास
दुर्गा-पूजाक समय
कलकत्ता भ्रमण लेल गेलहुँ 
ब्लैक-डाइमंड एक्सप्रेस स’ I
६७/बी मे गौआँ सब छलाह
पहिले ओत्तहि गेलहुँ
अष्टमीक रात्रि
विश्वम्भरजी छागड़ चढेने छलाह I
रातुक भोजन ओत्तहि भेलैक
राजेंद्रजी घुमबाक लेल आयल छलाह
हुनके संग कलकत्ताक दुर्गा-पूजा
देखक लेल निकलैत छी I
एक मास ठहरक मादे राजेन्द्रजी स’ गप्प भेल
राजेंद्र-छात्र-निवासक सम्बन्ध मे बजलाह
चंद्रशेखरजी ओतय रहैत छलाह
एक मासक लेल गाम जा रहल छलाह I
हम, राजेन्द्र संगे हावड़ा स्टेशन जाइत छी
चंद्रशेखर अपना बेड पर
रुकक लेल कहलाह
घुमिक’ राजेंद्र-छात्र-निवास जाइत छी I
चारि बेडक कमरा
चंद्रशेखरजीक बेड पर-
एक अन्य छात्र कब्जा जमेने अछि
बेड खाली भेल, आ हम दखल केलहुँ I
आब निश्चिन्त भ’ दूनू गोटे
राइत भरि कलकत्ताक दुर्गापूजा देखैत छी
भोर मे राजेन्द्रजी अपन डेरा गेलाह
हमहूँ छात्र-निवास I
ओतहि रहि
प्रतियोगिताक तैयारी,
प्रतियोगिता परिक्षा आ
कलकत्ता भ्रमण सेहो होइछ I
एक दिन पुनः ६७/बी गेलहुँ
बाबू साहबजी भेटलाह
हुनके टेक्सी स’
पूरा कलकत्ता घुमलहुँ I
कलकत्ता मे ठेठ मैथिली मे पसिंजर स’ गप्प करैत,
मैथिली मे गाइर दैत
खूब मजा लैत ड्राइभर के देखलहुँ
भले पसिंजर किछु ने बुझलक I
छात्रावास मे हमर स्कूलक मित्र
कृष्णानंदजी भेटलाह
बाद मे राघोपुर के शंकरजी सेहो
ओ अंग्रेजी नीक बजैत छथि I
कृष्णानंदजीक  चलते
बहुत आनंद अबैत छल
दिन-भरि पढलाक बाद
साँझ मे दूनू गोटे खूब घूमी I
ओइ समय कलकत्ता मेट्रो बननाइ शुरू भेल छलैक
शहर मे ट्राम, टैक्सी, हाथ-रिक्शा चलैत छलैक
सबारी के ल’ क’ मनुख पैदल दौड़ैत छलैक
अति अमानवीय दृश्य !
एक दिन पूरा घूमि-फिरिक’
मानव-रिक्शा स’ लौटैत छी
छात्रावास जाइत छी
याद पड़ल
बैग रिक्शे मे छुटि गेल
कृष्णानंदजीक संग गप्प होइछ
कोना भेटत?
ओही मे मत्त्वपूर्ण कागजात सङ
किछु पाइ सेहो छल I
थोड़बे काल मे
देखैत छी,
हाथ मे बैग लेने
रिक्शाबला आबि रहल अछि,
ओकरा किछु देबाक इच्छा भेल
ओ साफ़ मना क’ दैछ-
‘ हमर ई कर्त्तव्य छल,
सरकार ! अपन समानक ख्याल राखल करिऔ I ’
एखन ओ रिक्शाबला याद पड़ि गेल
ओकर ईमानदारीक मादे सोचिक'
नतमस्तक छी,
ग्रैंड सैल्यूट !!
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