देवघर लेल एक बेर, विद्या कका प्रस्थान केलथि, संग माझिल पुत्र
मुरली, आर काकी सेहो लेलथि II
सोनपुर तक ट्रेन स’, जलयान पहलेजा मे धेलनि, महेन्द्रू मे उतरि क’, हनुमान नगरक बाट धेलनि II
ओतय हुनकर पुत्र एक, परिवार के संगें रहै छथि,
स्नान, भोजन क’ ओत’,
प्रस्थान टीशन दिस करै छथि II
स्नान, भोजन क’ ओत’,
प्रस्थान टीशन दिस करै छथि II
भीड़ लखि हिम्मत ने
किनको, ठसाठस डिब्बा भरल अछि;
कोना क’ गाड़ी मे घुसता,
ठाढ़ होमक जगह नहि अछि II
कोना क’ गाड़ी मे घुसता,
ठाढ़ होमक जगह नहि अछि II
मात-पित जप क’ रहल
छथि, माथ ध’ मुरली बैसै छथि;
तही बेर मे सिपाही
एक, अचानक ओइठाँ अबै छथि II
नमन दूनू वृद्ध के
क’, लोकसब के हटाबै छथि; बना रस्ता ल’ गेलथि, आ सीट पर क’
बैसाबै छथि II
फेर मुरली के बजा,
सब बस्तु, मोटरी लदाबइ छथि; पुन: मुरली के चढ़ाक’, ट्रेन स' झट उतरि जाइ छथि II
सब बस्तु, मोटरी लदाबइ छथि; पुन: मुरली के चढ़ाक’, ट्रेन स' झट उतरि जाइ छथि II
भेला थिर सब कियो त’, अनजान के ताक' लै जाइ छथि;
मुदा हुनकर दर्श नहि, ओ कतौ क्षण मे बिला जाइ छथि II
मुदा हुनकर दर्श नहि, ओ कतौ क्षण मे बिला जाइ छथि II
के छला किनको पता
नहि, शायद शिव नर रूप धायल;
भक्त के दुख देखि दुखहर,
स्वयं सबटा दुःख उठायल II
भक्त के दुख देखि दुखहर,
स्वयं सबटा दुःख उठायल II
जेना उगना बनि क’
चाकर,
कैल विद्यापतिक सेवा;
शंभु आरक्षी’क भेषें,
कैल विद्याजीक सेवा II
कैल विद्यापतिक सेवा;
शंभु आरक्षी’क भेषें,
कैल विद्याजीक सेवा II
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