Monday, August 15, 2016

शीलं परं भूषणं


भ' रहल शास्त्रार्थ दू टा पंडितक बिच,
हारि-जीतक फैसला नै भ' पबै अछि I
दुहू छथि षट्शास्त्र के ज्ञाता-महा,
पैघ-छोटक फैसला के क' सकै अछि II
व्याकरण, साहित्य, ज्योतिष,
दुहू के जी पर रटल छन्हि I
कर्मकाण्डक दुहू ज्ञाता,
वेद आ न्यायो पढ़ल छन्हि II
आशुकवि छथि दुहू पंडित
श्लोक सब झट द' बनाबथि I
गणित संग फलितो के ज्ञाता,
कुण्डली चट स' बनाबथि II
कैक दिन शास्त्रार्थ भेल,
निष्कर्ष किछुओ ने भेटल I
संत एक ओइ मार्ग स’,
छल जा रहल, झगड़ा पेखल II
शिष्य के पठबाय तैठाँ,
बात गुरु सब टा बुझल I
बजौलनि पंडित उभय के,
बात दूनू के सुनल II
अलग स' एकांत मे ओ,
दुहू के ल’ जाय पुछलनि I
लोक मे व्यवहार के की-
नीति, दुहुजन केर बुझलनि II
एक बजला ‘शठे- शाठ्यं’
अपर ‘शील’क पक्ष लै छथि I
गुरु पुनः व्याख्या करक लेल,
दुहू पंडित के कहै छथि II
-‘नीक संग मे नीक,दुष्टक-
संग हम दुष्टे बनै छी I'
पहिल भाखल-' शठक संग हम
महाशठ बनिक' रहै छी ’ II
अपर-‘सज्जन संग सज्जन,
शठो संग सज्जन रहै छी I
सकल वसुधा मित्र अछि मम,
मित्रते सब स’ रखै छी’ II
संत गुरु झट बाजि उठला-
" शील थिक भूषण परम  I
' शठ संगे शठ ' के क्रिया त’,
नीति थिक अतिशय अधम " II

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