Tuesday, August 30, 2016

कुष्टरोगी


बात बहुत पुरान थिक
कुष्टरोगी सबहक
गृहनिर्माण भ’ रहल छल
पर्यवेक्षण के जे.इ.
मानसिक रूपें बेमार छल
हमहूँ निरीक्षण मे पहुँचलहुँ

कुष्टरोगी स’ समाज घृणा करैछ
मुदा ओकरा सबहक मोन मे
समाज स’ कोनो घृणा नहि रहैछ I
ओ सब घृणा नहिं,
सहानुभूतिक पात्र थिक
कुष्ठरोग,
छूतिक रोग नहिं थिक I
साफ़-सुथड़ा रह’बला के
ई रोग किछु ने क’ सकैछ I

ओकरा समाज मे
छुआ-छूति नै छैक
मात्र एक जाति-
‘कुष्ठ रोगी’ छैक       

निरीक्षणक क्रम मे
कहियो
ओकरा सबहक प्रति
घृणाक भाव
नहिं रखलहुँ
ओकर देल चाह पीबा मे
कहियो संकोच नहि केलहुँ I

अहूदिन ओ सब चाह बनेलक
हम आ जे.इ. चाह पीबि रहल छी
अचानक जे.इ. के दौड़ा पड़लैक
तडमडाक’ खस’ लागल
एकटा लेपर दौडिक’ पकडि लैछ
खाट पर सुता क’
चारू पौआ चारि लेपर पकडि
इमरजेंसी वार्ड दिस विदा होइछ
रस्ता मे एकटा दोस्त डाक्टर भेटैछ
ओ चेक करैछ-
‘कोनो डर नहिं’
पुनि सब खाट के इमरजेंसी ल’ जाइछ
तखन तक जे.इ. के होस आबि जाइछ
किछु दबाइ द’ क’ छुट्टी भेटि जाइछ

क्यो ने जाने विपति बेर मे
सहायक के हैत कक्खन
जँ ने ओइदिन कुष्टगण सब-
मदति कैरतै, हाल नहिं कहि- 
की होइत तक्खन ?
तैं ने क्यो अछि पैघ अथवा
नै  कियो  अछि छोट जग मे
एक ब्रह्मक थिका सन्तति

सकल जीव समान जग मे II            

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