Monday, August 8, 2016

मैत्री

शत्रु क्यो नै छथि धरणि मे,
जीव मात्रे मित्र छथि मम I
जिन्दगी भरि रहत मैत्री,
हरब सबटा दोस्त के गम II

मित्र के सब कष्ट-उलझन,
आइ स’ हम्मर भ' जायत I
देह दू पर जान एक्केे,
आइ स' हम्मर कहायत II
हम सुदामा दीन दुखिया,
दोस्त मम गोपाल छथि I
दैन्य की क’ सकत, जइठाँँ-
संग नंदक लाल छथि II
हम छी अर्जुन,चक्रधारी-
दोस्त नटबरलाल जिनकर I
जीत के के रोकि पायत,
पीठ पर जँ हाथ तिनकर II
एखुनका मैत्रीक मादे उक्ति बापुक-
" बिना मित्रे छी त’ उत्तम बात जानू I
जँ ने निमहै करू दोस्ती एकटा स’,
तै स’ बेसी जुनि करी ई बात मानू " II
जँ कुमित्रक बात नै भेल रुष्ट छन मे,
भेल जँ अनुकूल त’ छथि तुष्ट छन मे I
यैह लखि ओ हेता बाजल बुझि परै अछि,
दोस्त किछु नै लैछ, देबे टा करै अछि II
मित्र के सब दुख हमर, सुख-
चैन सबटा दोस्त के लेल I
तुच्छतम उपहार भेल जँ,
दोस्त खातिर जान चलि गेल II
प्रकृति स’ सब करू दोस्ती,
स्वार्थ बिनु, देवाक लेल छथि I
तरु, पवन, सरिता, उदधि, छिति,
समर्पित परमार्थ लेल छथि II
आउ सब संकल्प ली,
पर्यावरण रक्षा करब सब I
हैत सार्थक असल मैत्री,
जँ प्रदूषण स’ लड़ब सब II

No comments:

Post a Comment