Monday, July 31, 2023

प्रेमक डोइर

ल'ग मे रहले सँ क्यो, नहि हृदय मे स्थान पाबय । दूर चलि गेनहिं सँ क्यो, नहि हृदय सँ दूरे भ' पाबय ।। ल'ग मे वा दूर मे हो, भाव सबसँ पैघ अछि । बिना प्रेमे ल'ग दूरे, प्रेमे ल'ग लगैत अछि ।। निशाकर आकाश, कुमदिनि- जले पर निबसैत छथि । होइत देरी शशिक दर्शन, प्रफुल्लित विकसैत छथि ।। ल'ग मे रहितो तँ बहुतो लोक नित लड़िते रहय । गप्प-सप्पो बन्द सबदिन दुगोला करिते रहय । थुक्कम-फज्झति सँ तँ दूरे रहब बढियाँ बुझि पड़य । भले फोने पर हो गप-सप, स्नेह के सरिता बहय ।। भले क्यो दूरे किए ने, याद हरदम जँ करय । डोइर मजगुत बनल रहने, प्रेम कहियो ने घटय ।। ***********************

No comments:

Post a Comment