कादो जन्मे सँ जमा,
खाली नित कैरते रहू ।
सुन्ना जावत् तक ने होबय,
तावत् उपछैते रहू ।।
तावत् उपछैते रहू,
ने चुरुक भरि बाँचय कथू ।
पात्र नै अजबारबै तँ,
कोनाक' राखब कथू ।।
भरू गंगाजल अमिय,
धारू गुरुक उपदेश आबो ।
मौन थिर हो स्रोत पर,
भरि जै ने फेरो थाल-कादो ।।
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