नाटक टा भ' रहलै जगमे,
बूझथि क्यो नहि सत्य ।
असली बात बिसरि क' सब क्यो,
असते बूझथि सत्य ।।
असते बूझथि सत्य,
झूठमे लागल सब क्यो ।
कानि रहल अछि सत्य,
झूठ लेल पागल सब क्यो ।।
राति-दिन सब व्यस्ते,
मायालेल सब त्राटक ।
खुश रहबाक ने फ़ुरसति,
मुसकयबो थिक नाटक ।।
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